सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने तलाक पर अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि यदि पति-पत्नी के बीच सुलह की कोई गुंजाइश ना बची हो तो संविधान के आर्टिकल 142 के तहत वह अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए तलाक को मंजूरी दे सकता है। ऐसी स्थिति में मामले को फैमिली कोर्ट भेजना और 6 से 18 महीने का वेटिंग पीरियड भी अनिवार्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे फैक्टर्स भी तय किये हैं, जिसके आधार पर शादी को सुलह से परे माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि अदालत के लिए संभव है कि यदि विवाह में सुलह की कोई गुंजाइश ना बची हो तो इसे भंग कर सकती है। यह मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला ‘शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन’ केस में दिया है। दोनों ने साल 2014 में उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी और संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक की मांग (Divorce Application) की थी।

तलाक के क्या प्रावधान हैं?

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 (Hindu Marriage Act) के सेक्शन 13बी में आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान है। सेक्शन 13बी (1) में कहा गया है कि पति-पत्नी तलाक के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकती हैं। इसका आधार यह होना चाहिए कि दोनों साल भर या इससे ज्यादा वक्त से अलग रह रहे हों, या साथ रहना संभव न हो, अथवा दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला लिया हो।

इसी तरह हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13बी (2) में कहा गया है दोनों पक्षों को तलाक की अर्जी दाखिल करने की तिथि से 6 से 18 महीने के बीच इंतजार करना होगा। यह वक्त (कूलिंग पीरियड) इसलिए दिया गया है, ताकि यदि दोनों पक्ष यदि राजी हों या इस बीच मन बदल जाए तो अपनी अर्जी वापस ले सकें। निर्धारित वेटिंग पीरियड बीतने के बाद और दोनों पक्षों को सुनने के बाद यदि कोर्ट को लगता है तो वह जांच कर तलाक को मंजूरी दे सकती है। हालांकि यह प्रावधान तभी लागू होता है, जब विवाह को कम से कम एक साल बीत चुका हो।

किस आधार पर ले सकते हैं तलाक?

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 (Hindu Marriage Act) के मुताबिक पति-पत्नी में से कोई तलाक की अर्जी दाखिल कर सकता है। इसके लिए एडल्ट्री (व्यभिचार), घरेलू हिंसा, जबरन धर्म परिवर्तन, परित्याग, कुष्ठ रोग, यौन रोग और मृत्यु की संभावना जैसे ग्राउंड हो सकते हैं।

क्या शादी के सालभर के अंदर नहीं ले सकते तलाक?

हिंदू मैरिज एक्ट में कहा गया है कि किसी असाधारण स्थिति या कठिन परिस्थिति में विवाह के साल भर के अंदर भी तलाक की अर्जी दी जा सकती है। इसके लिए धारा 14 में प्रावधान किया गया है। इसी तरह असाधारण परिस्थितियों में धारा 13बी (2) से छूट (कूलिंग अथवा वेटिंग पीरियड से छूट) के लिए भी फैमिली कोर्ट में अर्जी दी जा सकती है।

साल 2021 के बहुचर्चित ‘अमित कुमार वर्सेस सुमन बेनीवाल’ केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ”यदि किसी रिश्ते में दोबारा समझौते की जरा सी भी गुंजाइश बची हो तो तलाक की अर्जी दाखिल करने की तिथि से अगले छह महीने का कूलिंग पीरियड अनिवार्य है। लेकिन यदि ऐसा लगता है कि समझौते की जरा सी गुंजाइश नहीं है, तब कूलिंग पीरियड को लागू करना दोनों पक्षों के लिए पीड़ादायक है”।

तलाक की मौजूदा प्रक्रिया से क्या दिक्कत?

तलाक की जो मौजूदा प्रक्रिया है वह बहुत लंबी और थकाऊ है। दोनों पक्ष पहले फैमिली कोर्ट जाते हैं। चूंकी फैमिली कोर्ट में तलाक के इतने मामले पेंडिंग हैं, ऐसे में फैसला आने में लंबा वक्त लग जाता है। हालांकि यह व्यवस्था पहले से है कि यदि दोनों पक्ष जल्दी तलाक चाहते हैं तो आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं। आर्टिकल 142 का उपखंड (सब-सेक्शन) एक कहता है कि ‘यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि दोनों पक्षों के न्याय के लिए यह जरूरी है, तो वह जरूरी आदेश अथवा डिक्री पारित कर सकता है…’।