खादिजा खान
समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मसले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दूसरा काउंटर एफिडेविट फाइल किया है। इस काउंटर एफिडेविट में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है। केंद्र सरकार ने अपने एफिडेविट में कहा है कि जो लोग सेम सेक्स मैरिज को लीगल करने की मांग कर रहे हैं, वे अर्बन एलीट (शहरी अभिजात्य) हैं और यह आम भारतीय की राय या भावना नहीं है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है।
CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच सुनेगी अर्जी
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह यानी सेम सेक्स मैरिज (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच गठित की है। इसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं। बेंच 18 अप्रैल से सुनवाई करेगी। इससे पहले 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को ‘ऐतिहासिक महत्व’ का बताते हुए संवैधानिक पीठ के पास भेजने का फैसला लिया था।
कौन हैं याचिकाकर्ता कपल?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं में एक याचिका हैदराबाद के समलैंगिक कपल सुप्रियो और अभय (Supriyo and Abhay) की है। दोनों साल 2012 में मिले थे। दोनों ने एक दूसरे को अपने अपने माता-पिता से मिलवाया। इसके बाद शादी करने का फैसला लिया लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि दोनों एक दूसरे को एक दशक से ज्यादा वक्त से जानते हैं और मजबूत रिलेशनशिप में है। इसके बावजूद शादीशुदा लोगों को जो अधिकार मिले हैं, उन्हें उन अधिकारों से वंचित रखा गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट बार-बार यह दोहराता रहा है कि कोई भी वयस्क व्यक्ति अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने और जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र है।
कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि सरोगेसी से लेकर, एडॉप्शन और टैक्स बेनिफिट जैसी कई सुविधाएं सिर्फ शादीशुदा लोगों को ही मिलती हैं। उन्हें भी इस तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए। कपल ने दलील दी है कि वह अंग प्रत्यारोपण एक्ट (Transplantation of Human Organs Act) का लाभ नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि इसमें कहा गया है सिर्फ करीबी संबंधी ही प्रत्यर्पण से जुड़े लाभ हकदार हैं।
Income Tax एक्ट का क्यों जिक्र?
कपल ने अपनी याचिका में आयकर यानी इनकम टैक्स एक्ट 1961 का भी जिक्र किया है। कहा है कि IT एक्ट के सेक्शन 80 के तहत कुल आय की गणना में छूट का लाभ खुद के अलावा जीवनसाथी को भी मिलता है। ऐसे में बिना कानूनी मान्यता के समलैंगिक कपल, इससे वंचित रह जाएंगे। सोसाइटी एक कपल को शादी के जरिए ही स्वीकार करती है और सम्मान देती है। समलैंगिक कपल को इस अधिकार से वंचित रखना असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट का पहले क्या स्टैंड रहा है?
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के साल 2006 के ‘लता सिंह वर्सेस स्टेट ऑफ यूपी’, साल 2018 के साफिन जॉन वर्सेस अशोकन केएम और 2011 के लक्ष्मीबाई चंदारानी बी. वर्सेस स्टेट ऑफ कर्नाटक’ का जिक्र किया गया है। जिसमें कहा गया था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत कोई भी वयस्क अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए स्वतंत्र है।
याचिका में साल 2017 ‘केएस पुट्टास्वामी वर्सेस यूनियन ऑफ़ इंडिया’ (KS Puttaswamy vs Union of India) केस में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा से अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को मान्यता देता रहा है। इस बहुचर्चित केस में उच्चतम न्यायालय की 9 जजों की बेंच ने कहा था कि एलजीबीटीक्यू समुदाय (LGBTQ) के लोगों के अधिकार को ‘तथाकथित अधिकार’ नहीं कहा जा सकता। वे भी संविधान में दिए गए अधिकारों के समान हकदार हैं।
पुट्टास्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
‘केएस पुट्टास्वामी वर्सेस यूनियन ऑफ़ इंडिया’ केस के सालभर बाद ही बहुचर्चित ‘नवतेज सिंह जौहर व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग संविधान द्वारा संरक्षित स्वतंत्रता और अधिकार के हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि यह किसी की व्यक्तिगत चॉइस है कि उसका पार्टनर कौन होता है या उसका सेक्सुअल ओरियंटेशन क्या है। सेम सेक्स मैरिज से जुड़ी याचिका में इस फैसले का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिस तरीके से देश भर की अदालतों ने एलजीबीटीक्यू कपल्स के अधिकारों को संरक्षित किया, वह नजीर बना।
सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों के अलावा याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 समेत तमाम कानून में समलैंगिक कपल को शामिल करने की मांग की गई है। स्पेशल मैरिज एक्ट में अभी जेंडर या सेक्सुअल ओरियंटेशन से जुड़ी कोई क्राइटेरिया नहीं है।
याचिका में किन कानून का हवाला दिया गया है?
याचिका में संविधान के आर्टिकल 14, आर्टिकल 15, आर्टिकल 19, और आर्टिकल 21 की जूडिशल रिव्यू की मांग की गई है। साथ ही पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट 1972, पेमेंट ऑफ वेजेस रूल्स 2009, ईपीएफ स्कीम 1952, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना 2008, इंडियन एविडेंस एक्ट 1872, जूविनाइल जस्टिस एक्ट 2015 और सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट 2021 जैसे कानूनों का हवाला दिया गया है। जिनके तहत सिर्फ कानूनी तौर पर शादीशुदा कपल को ही इनका लाभ मिलता है।