Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। एक तरफ उच्चतम न्यायालय में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने की मांग वाली 20 याचिकाएं हैं। तो दूसरी तरफ, केंद्र सरकार से लेकर NCPCR और बार काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी संस्थाएं इसके खिलाफ है और कहा है कि संसद पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
इसी बीच LGBTQIA+ बच्चों के पैरेंट्स ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chanrachud) को एक मार्मिक चिट्ठी लिखी है। ‘स्वीकार’ (Sweekar) नाम के संगठन ने अपनी चिट्ठी में सीजेआई से मांग की है कि उनके बच्चों की याचिकाओं पर विचार किया जाए और समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए, ताकि उन्हें समाज में स्वीकार्यता मिले।
कौन हैं चिट्ठी भेजने वाले लोग?
‘स्वीकार’ की तरफ से लिखी चिट्ठी में बताया गया है कि यह LGBTQIA+ व्यक्तियों के 400 से ज्यादा पैरेंट्स का एक ग्रुप है। चिट्ठी में कहा गया है कि हमें उन लोगों से भी पूरी सहानुभूति है जो इसका विरोध कर रहे हैं। हमें यहां तक आने में और अपने बच्चों को स्वीकार करने में बहुत लंबा वक्त लगा। उनकी फीलिंग्स को समझने और उसे मान्यता देने में काफी समय लगा और हमारा मानना है कि जो लोग अभी समलैंगिक विवाह का विरोध कर रहे हैं, वो लोग भी धीरे-धीरे इस बात को समझेंगे। हमारा भारत के लोगों, संविधान और डेमोक्रेसी में पूरा भरोसा है।

2018 के फैसले का उदाहरण
चिट्ठी में सुप्रीम कोर्ट के 6 सितंबर 2018 के उस फैसले का भी जिक्र किया गया है, जिसके जरिए उच्चतम न्यायालय ने सेक्शन 370 को खत्म कर दिया था। ‘स्वीकार’ ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि 370 को गैर आपराधिक घोषित कर सुप्रीम कोर्ट ने यह किया था कि हमारे बच्चों के साथ समाज में भेदभाव नहीं होगा, उन्हें गरिमा और बराबरी की निगाह से देखा जाएगा। हम अपने बच्चों और उनके स्पाउस के रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिलते देखना चाहते हैं। हमारा मानना है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और बहुलतावादी देश में उनके लिए भी रास्ते खुलेंगे, ताकि अपने पंख फैला सकें।
बुजुर्ग हो रहे हैं, यही आखिरी इच्छा है…
इस चिट्ठी में पैरेंट्स ने अपनी उम्र का भी हवाला दिया है और कहा है कि हममें से तमाम लोग बुजुर्ग हो गए हैं। कुछ तो 80 के करीब हैं। और हमारी आखिरी इच्छा है कि हमारे बच्चों की शादी को कानूनी मान्यता मिले और हम इसे देख पाएं।
Same Sex Marriage सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ 18 अप्रैल से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इस बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही दिन यह साफ कर दिया था है कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना, यह देखेगी कि क्या साल 1954 के स्पेशल मैरिज एक्ट यानी विशेष विवाह क़ानून के ज़रिए समलैंगिकों को विवाह का अधिकार दिया जा सकता है।
क्या हैं पक्ष में दलीलें?
समलैंगिक विवाह के पक्ष में कुल 20 याचिकाएं हैं। सबसे चर्चित याचिका हैदराबाद के कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग की है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं मिलना संविधान में दिये गए समानता के अधिकार का उल्लंघन है। समलैंगिक कपल प्रॉपर्टी में नॉमिनी बनाने से लेकर एडॉप्शन, टैक्स बेनिफिट आदि से वंचित रह जाते हैं। याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव की मांग की गई है।
क्या हैं विपक्ष की दलीलें?
केंद्र सरकार से लेकर, एनसीपीसीआर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और कई धार्मिक संगठन समलैंगिक विवाह वाली याचिकाओं का विरोध कर रहे हैं। केंद्र की दलील है कि यह विधायी मसला है और इस पर कोई फैसला संसद ले सकती है। कानूनी मान्यता देने से एडॉप्शन से लेकर तलाक, भरण-पोषण, विरासत से जुड़े मुद्दों में कई दिक्कतें पैदा होंगी। तमाम कानून बदलने होंगे। साथ ही यह दलील भी दी जा रही है कि सेम सेक्स मैरिज पश्चिमी अवधारणा है, और इससे भारतीय परंपरा को नुकसान पहुंचेगा।