भगत सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी। वह चाहते थे कि उनकी शहादत से देश में आजादी का आंदोलन तेज हो जाए। अपनी शहादत के असर को बढ़ाने के लिए उन्होंने फांसी से तीन दिन पहले 20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को एक खत लिखकर फांसी की जगह गोली से उड़ा की सजा मांगी थी।
अंग्रेजों ने भगत सिंह की शहादत को इवेंट बनन से रोकने के लिए तय दिन से पहले ही अपमानजनक तरीके से फांसी दे दी। इससे लोगों में गुस्सा और बढ़ गया। भगत सिंह की शहादत के असर में युवाओं एक बार फिर अंग्रेजों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी।
भगत सिंह की शहादत का असर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक रहे मधुकर दत्तात्रेय देवरस पर भी जवानी के दिनों में पड़ा था। उन्होंने अपनी किताब ‘हिंदू संगठन और सत्तावादी राजनीति’ में इसका जिक्र भी किया है।
भगत सिंह से प्रभावित थे देवरस
वह अपनी किताब में बताते हैं कि उस दौरान कॉलेज जाने वाले ज्यादातर युवाओं के आदर्श भगत सिंह थे। सभी भगत सिंह की तरह कुछ-न-कुछ वीरतापूर्ण कार्य करना चाहते थे। देवरस स्वीकार करते हैं कि संघ में रहते हुए भी वह वामपंथी भगत सिंह से प्रभावित थे। उन्होंने लिखा है, ”प्रचलित राजनीति, क्रान्ति आदि की युवक हृदय को आकर्षित करने वाली चर्चा संघ में प्रायः कम होती थी, इसलिए हम युवकों को संघ के प्रति आकर्षण कम ही रहता था। भगत सिंह और उनके साथियों को जब फांसी दी गयी, उस समय तो हमारे हृदयों में ऐसी उत्तेजना उत्पन्न हुई कि प्रत्यक्ष कुछ-न-कुछ करने की भयंकर योजना बनाकर उसे सफल बनाने के लिए घर से भाग जाने का हम कुछ मित्रों ने निश्चय कर लिया।”
देवरस भगत सिंह की शहादत से इतने आक्रोश में थे, वह भी अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ कुछ भयानक करना चाहते थे। लेकिन इतना बड़ा कदम उठाने से पहले वह संघ संस्थापक डॉ० हेडगेवार को सूचित करना चाहते थे। मित्र मंडली ने योजना को हेडगेवार के समक्ष रखने की जिम्मेदारी देवरस को सौंपी।
डॉ० हेडगेवार ने ली बैठक
देवरस लिखते हैं, ”हम सब मिलकर डाक्टरजी के पास गए। बहुत साहस बटोरकर मैंने अपना मन्तव्य डाक्टर जी के सम्मुख प्रकट किया। हमारी योजना सुनकर डाक्टरजी ने हमें इस विचार से बदलने और संघ-कार्य की श्रेष्ठता समझाने के लिए हमारी बैठक ली।”
इसके बाद लगातार अगले सात दिन तक हेडगेवार ने देवरस के साथ बैठक की। वह लिखते हैं, ”यह बैठक लगातार सात दिन, रात्रि के दस बजे से तीन बजे तक चलती रही। डाक्टरंजी के तेजस्वी विचार और अमूल्य मार्गदर्शन से हमारे विचारों में और जीवन आदर्श के सम्बन्ध में आमूलाग्र परिवर्तन हुआ। उस दिन से वैसी योजनाएं छोड़कर हमारे जीवन को नई दिशा प्राप्त हुई और बुद्धि संघ-कार्य में स्थिर हुई।”
देवरस और आरएसएस?
मधुकर दत्तात्रेय देवरस का जन्म 11 दिसम्बर 1915 को नागपुर में में हुआ था। 11-12 वर्ष की आयु में संघ के स्वयंसेवक बने देवरस को बाद में बालासाहब देवरस नाम से जाना गया। देवरस 1962 में सहसरकार्यवाह, 1965 में सरकार्यवाह और 1973 में सरसंघचालक बने थे। हेडगेवार और गोलवलकर के बाद देवरस तीसरे सरसंघचालक थे। इन्हीं के सरसंघचालक काल में आरएसएस पर दो बार प्रतिबंध लगा था। एक बार 1975 में आपातकाल के दौरान, दूसरी बार अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद।