भारत को अमेरिका से 11 महत्वपूर्ण जेट इंजन टेक्नोलॉजी मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अमेरिका यात्रा के दौरान इस ऐतिहासिक समझौते की घोषणा हो सकती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मौजूदगी में भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और US की मल्टीनेशनल कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के बीच भारत में F414 इंजन निर्माण डील का ऐलान हो सकता है। ये इंजन भारत के हल्के लड़ाकू विमान तेजस MK2 में इस्तेमाल होंगे।
आपको बता दें कि इस महीने की शुरुआत में ही नई दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन के बीच इस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के समझौते को लेकर चर्चा हुई थी। इससे पहले फरवरी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और उनके अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन के बीच मीटिंग में भी इस मामला पर लंबी बातचीत हुई थी।
क्या है GE-414 इंजन?
यह टर्बोफैन इंजन, जनरल इलेक्ट्रिक के मिलिट्री एयरक्राफ्ट इंजन का हिस्सा है और अमेरिकन नेवी पिछले 30 सालों से ज्यादा वक्त से इसका इस्तेमाल कर रही हैं। जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस की वेबसाइट पर दिए ब्योरे के मुताबिक कंपनी अब तक 1,600 F414 इंजन डिलीवर कर चुकी है, जो अलग-अलग तरह के मिशन पर करीब 5 मिलियन यानी 50 लाख घंटे की उड़ान पूरी कर चुके हैं।
क्यों खास है GE-414 इंजन?
ये टर्बोफैन इंजन सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी और फीचर्स से लैस हैं। उदाहरण के तौर पर इसमें फुल अथॉरिटी डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल (FADEC) सिस्टम लगा है। साथ ही लेटेस्ट एयरक्राफ्ट इग्नीशन सिस्टम और इंजन कंट्रोल सिस्टम भी लगा है। इस इंजन की परफॉर्मेंस डिजिटली कंट्रोल की जा सकती है। साथ ही इस इंजन में जिस तरह का कूलिंग मैटेरियल और दूसरी चीजें इस्तेमाल की गई हैं, उससे इंजन की परफॉरमेंस और लाइफ भी कई गुना बढ़ जाती है।
किसके पास है ये टेक्नोलॉजी?
अभी कुल 8 देशों के पास F414 इंजन से लैस एयरक्राफ्ट या तो ऑपरेशनल हैं या लाने की तैयारी में हैं। अमेरिका की बात करें तो US नेवी के बोइंग F/A-18E/F Super Hornet और EA18G Growler इलेक्ट्रिक अटैक एयरक्राफ्ट में F414-GE-400 इंजन लग हैं। भारत की बात करें तो DRDO की एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) ने हल्के लड़ाकू विमान तेजस mk2 के लिए F414-INS6 इंजन का चुनाव किया है। अभी तेजस में सिंगल GE-404-IN20 इंजन लगा हुआ है। यह एक तरीके तरीके से F414 का बहुत बेसिक डिजाइन है, जो 70 के दशक में डेवलप किया गया था।
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है डील?
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है डील?
अभी कुछ चुनिंदा देशों के पास ही लड़ाकू विमानों के लिए इस तरह के इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी है। इसमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं। भारत ने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन जैसी टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता तो हासिल कर ली है, लेकिन इस लिस्ट से बाहर है। जिन देशों के पास यह टेक्नोलॉजी है वे इसे दूसरे देशों से साझा करने से इनकार करते रहे हैं। ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच F414 की डील न सिर्फ सामरिक नजरिये से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक भी है।
नहीं सफल हो पाया DRDO
आपको बता दें कि डीआरडीओ के गैस टरबाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (GTRE) ने पहली बार हल्के लड़ाकू विमानों के लिए GTX-37 इंजन तैयार करने पर काम शुरू किया था। बाद में साल 1989 के आखिर में महत्वाकांक्षी ‘कावेरी इंजन परियोजना’ शुरू हुई थी। इस परियोजना के तहत 9 प्रोटोटाइप इंजन और 4 कोर इंजन तैयार किए गए और 3217 घंटे की टेस्टिंग भी हुई, लेकिन ये इंजन लड़ाकू विमानों के लिए उपयुक्त नहीं पाए गए।
CAG भी उठा चुका है सवाल
साल 2011 में कैग (CAG) ने अपनी ऑडिट में भारी-भरकम खर्च के बावजूद हल्के लड़ाकू विमानों के लिए इंजन तैयार करने की विफलता के लिए GTRE पर तीखे सवाल भी उठाए थे। साल 2021 में सरकार ने संसद में बताया था कि कावेरी परियोजना के तहत जो इंजन तैयार किए गए हैं या जिन टेक्नोलॉजी पर काम किया गया, उनका इस्तेमाल ड्रोन में किया जा सकता है।