Shraddha Walker Murder Case: दिल्ली के रोहिणी स्थित अंबेडकर अस्पताल में श्रद्धा मर्डर केस में आरोपी आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट (Aftab Narco Test) जारी है। दिल्ली पुलिस गुरुवार की सुबह आफताब को तिहाड़ जेल से अंबेडकर अस्पताल लेकर गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस का कहना है कि आफताब पूछताछ में को-ऑपरेट नहीं कर रहा था। श्रद्धा के मोबाइल और शव को काटने में इस्तेमाल आरी की जानकारी नहीं दे रहा है।
क्या होता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट का इस्तेमाल पुलिस झूठ पकड़ने के लिए करती है। नार्को टेस्ट के लिए संदिग्ध को ट्रुथ ड्रग नाम से आने वाली एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगाया जाता है। ड्रग का डोज संदिग्ध के सेहत, उम्र और जेंडर को ध्यान रखकर तय किया जाता है। ड्रग शरीर में जाने के बाद व्यक्ति को अर्धबेहोशी की हालत में पहुंचा देता है।
अब सवाल उठता है कि इससे पुलिस झूठ कैसे पड़ती है? दरअसल इस वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित तकनीक के असर आने पर पुलिस संदिग्ध से एक तय पैटर्न से सवाल पूछती है। अर्धबेहोशी की वजह से संदिग्ध अपने दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल कर नहीं पाता, इसलिए वह जानबूझकर झूठ बोलने में पूरी तरह सक्षम नहीं होता है। इसी स्थिति का फायदा उठाकर सच निकलाने की कोशिश की जाती है।
कौन करता है नार्को टेस्ट?
अदालत की मंजूरी मिलने पर नार्को टेस्ट के लिए पूरी एक टीम तैयार की जाती है, फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि को मिलकर काम करना होता है। उम्रदराज, मानसिक रूप से कमजोर, गंभीर बीमारियों से ग्रस्त और नाबालिग पर यह टेस्ट नहीं किया जाता है। पहले भी कई मामलों में नार्को टेस्ट का इस्तेमा हो चुका है, उनमें से कुछ चर्चित मामले हैं- तेलगी केस, आरुषि हत्याकांड और निठारी केस।
नार्को टेस्ट असंवैधानिक – सुप्रीम कोर्ट
मई 2010 में भारत की सर्वोच्च अदालत ने अपने एक अहम फैसले में नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग को असंवैधानिक करार दे दिया था। कोर्ट का कहना था कि ड्रग के प्रभाव में अभियुक्त या संदिग्ध अभियुक्त का बयान लेना, उसकी निजता के अधिकार का हनन है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी भी व्यक्ति पर नार्को टेस्ट के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता। अगर कोई नार्को टेस्ट के लिए अपनी सहमति देता है, तब भी उसके बयान को अदालत में सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।