3 मई, 2023। बुधवार। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला था। इसी मार्च के दौरान मणिपुर में जगह-जगह हिंंसा भड़क गई। उस दिन भड़की हिंसा (Manipur Violence) की आग ढाई महीने बाद भी शांत नहीं हो सकी है। डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी नहीं।
हिंंसा शुरू होने के अगले ही दिन ऐसा हुआ कि इंसानियत दम तोड़ गई। मानवीयता मर गई। 4 मई को दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया गया, पीटा गया, एक से सामूहिक बलात्कार किए जाने के भी आरोप हैं। हैवानियत करने वालों को पकड़ने और महिलाओं को सुरक्षा का यकीन दिलाने के बजाय घटना छिपा ली गई।
करीब ढाई महीने बाद जब वीडियो वायरल होने लगा तब दुनिया को मणिपुर में इंसानियत के मरने की खबर मिली। सुप्रीम कोर्ट ने चेताया- कुछ करिए, वरना हम करेंगे। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पहली बार (79वें दिन, 20 जुलाई को) मणिपुर हिंसा पर चुप्पी तोड़ी। राज्य सरकार ने भी महिलाओं से दरिंंदगी करने वालों को पकड़ने की सक्रियता दिखाई।
पहले सुनिए, पीएम ने क्या कहा:
अब एक-एक कर हर बात को समझिए। सबसे पहले जानिए, जिस मार्च से 3 मई को हिंसा की शुरुआत हुई, वह क्यों बुलाया गया था।
Manipur Violence शुरू कराने वाला मार्च क्यों
मणिपुर में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग लंबे समय से चल रही है। राज्य का जनजातीय समुदाय इसका विरोध करता रहा है। 14 अप्रैल को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि इस मांग पर कार्रवाई कीजिए और केंद्र सरकार को इस संबंध में प्रस्ताव भेजिए। 3 मई का मार्च मैइती सुमदाय की मांग और कोर्ट के आदेश के विरोध में बुलाया गया था।
मैतेई समुदाय क्यों चाहता है एसटी का दर्जा
मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की लिस्ट में शामिल किए जाने की मांग एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है। 2012 में बने The Scheduled Tribe Demand Committee of Manipur (STDCM) नाम के संगठन ने लगातार इसके लिए सरकार पर दबाव डाला। 2022 में बने मैतेई ट्राइब यूनियन ने इसके लिए हाईकोर्ट में अर्जी दी। अर्जी में तर्क दिया था कि 1949 में भारत सरकार में मणिपुर राज्य के विलय के पहले मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। विलय के बाद उनकी यह पहचान खत्म हो गई। समुदाय को बचाने, पुश्तैनी जमीन, परंपरा और भाषा को बचाने के लिए हमें एसटी दर्जा दिया जाए। कोर्ट ने सरकार को आदेश दे दिया कि वह केंद्र सरकार को इस संबंध में प्रस्ताव भेजे।
कुकी क्यों करता है मैतेई को एसटी दर्जा दिए जाने का विरोध
जनजातीय समुदाय का कहना है कि मैतेई समुदाय आबादी में भी ज्यादा है और राजनीति में भी उसका दबदबा है। बता दें कि मणिपुर विधानसभा के 60 में से 40 विधायक मैतेई हैं। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंंह भी मैतेई समुदाय से ही हैं। ऐसे में कुकी व अन्य जनजातीय समुदायों को यह डर सताता है कि नौकरी, संसाधनों, सरकारी सुविधाओं , सबमें मैतेई समुदाय की भागीदारी बढ़ जाएगी, अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिल गया तो।
कुकी समुदाय का कहना है कि जनजातीय दर्जा मिलने से पहले से ताकतवर मैतेई और मजबूत हो जाएंगे। उन्हें कुकी बहुल इलाकों में जमीन खरीदने और वहां सेटल होने का अधिकार भी मिल जाएगा। यह उनकी संप्रभुता के लिए खतरा हो
एक तर्क यह भी है कि मैतेई की भाषा मणिपुरी संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज है। वे मुख्य रूप से हिंदू हैं। उन्हें अनुसूचित जाति (एससी) या अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) कैटेगरी में रखा गया है। इन कैटेगरीज से जुड़ी सुविधाओं का लाभ उन्हें पहले से मिल रहा है।
वैध-अवैध नागरिक होने का दावा भी हिंंसा का कारण
मणिपुर की सीमा म्यांमार से लगती है। सरकार मानती है कि यहां अवैध रूप से बड़ी संख्या में लोग रह रहे हैं। अगस्त 2022 में सरकार ने एक नोटिस भी जारी किया था। इसमें कहा गया था कि चुराचंदपुर-खोपुम संरक्षित वन क्षेत्र के 38 गांवों में लोगों ने अवैध रूप से बस्तियां बसा रखी हैं और वे अतिक्रमणकारी हैं। सरकार ने इन बस्तियों को खाली करने का अभियान भी चलाया था। कुकी समुदाय इसे अपने ऊपर हमला मानता है।
कौन हैं मैतेई और कुकी? (Who are the Kuki and Meitei)
मणिपुर की आबादी करीबन 33 लाख है। जिसमें से 64.6 फीसदी लोग मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जबकि 35.40 फीसदी आबादी कुकी, नागा और दूसरी जनजातियों की है। राज्य में 34 जनजातियां रहती हैं। मैतेई समुदाय की बात करें तो इस समुदाय के लोग मणिपुर के अलावा म्यांमर और आसपास के राज्यों में भी फैले हैं। मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बहुसंख्यक लोग हिंदू धर्म को फॉलो करते हैं। कुछ लोग सनमाही धर्म को भी मानते हैं।
कहां रहते हैं मैतेई और कुकी?
वहीं, कुकी समुदाय के लोग मणिपुर के अलावा पूर्वोत्तर दूसरे राज्यों में भी फैले हैं। खासकर मणिपुर के कुकी समुदाय की जड़ें म्यामार से भी जुड़ी हैं। कुकी समुदाय के बहुसंख्यक लोग ईसाई धर्म को फॉलो करते हैं। मणिपुर में मैतेई समुदाय के लोग ज्यादातर इंफाल घाटी और आसपास के इलाकों में रहते हैं। यह इलाका राज्य की दस फीसदी जमीन तक ही सीमित है। कुकी समुदाय के लोग तमाम पहाड़ी इलाकों में फैले हुए हैं। मणिपुर का 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है।

मणिपुर में कैसे शुरू हुई हिंसा? (Manipur Violence Reason)
मणिपुर में हिंसा की शुरुआत करीब 3 महीने पहले मई में हुई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अब तक (20 जुलाई) हिंसा में 130 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 400 से ज्यादा लोग घायल हैं। 60000 से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर पलायन कर चुके हैं। हिंसा में सैकड़ों गांव तबाह हो चुके हैं। मंदिर और चर्च नष्ट कर दिये गए हैं। यहां तक कि उपद्रवियों ने थाने और पुलिस के हथियार तक लूट लिये। इनकी बरामदगी अभी तक पूरी नहीं हो सकी है।
क्या है अफीम की खेती का कनेक्शन?
हालांकि मैतेई और कुकी के बीच संघर्ष की यह इकलौती वजह नहीं है। कुकीज समुदाय का आरोप है कि मैतेयी की अगुवाई वाली राज्य सरकार नशे के खिलाफ अभियान के नाम पर जानबूझकर उन्हें परेशान कर रही है। आपको बता दें कि कुकी समुदाय के लोग लंबे वक्त से अफीम की खेती करते आ रहे हैं। कुछ महीने पहले राज्य सरकार ने नशे के खिलाफ अभियान शुरू किया और अफीम की फसलों को नष्ट करना शुरू किया। इससे कुकी समुदाय के लोग खासे नाराज हो गए।

मणिपुर में संघर्ष कोई नई बात नहीं है। मैतेई, कुकी और नागा समुदाय के लड़ाके दशकों से एक-दूसरे से जमीन से लेकर धार्मिक मुद्दों पर लड़ते रहे हैं। इन तीनों समुदाय का भारतीय सेना के साथ भी संघर्ष हो चुका है। लेकिन मौजूदा हिंसा सिर्फ और सिर्फ दो समुदाय, मैतेई और कुकी के बीच की है।
तो सरकार क्या कर रही है?
केंद्र सरकार मणिपुर में अबतक पैरामिलिट्री फोर्स के 40000 जवानों को भेज चुकी है। पिछले महीने ही राज्य के डीजीपी पी. डोंगल (P. Doungel) को हटाकर राजीव सिंह (IPS Rajiv Singh) को नया DGP बनाया गया था। इससे पहले मई में सीआरपीएफ के पूर्व प्रमुख कुलदीप सिंह को मणिपुर सरकार ने अपना सुरक्षा सलाहकार बनाया था। हालांकि इन तमाम कवायद के बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह भी दो दिन के लिए मणिपुर दौरे पर गए थे। पर, इसका कुछ खास असर नहीं हुआ।