पांच राज्यों (मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान, म‍िजोरम, तेलंगाना) के व‍िधानसभा चुनावों का कार्यक्रम चुनाव आयोग ने घोष‍ित कर द‍िया है। 7 से 30 नवंबर के बीच इन राज्‍यों में मतदान होगा और 3 द‍िसंबर को एक साथ मतगणना होगी।

इन चुनावों में एक नया मुद्दा उभर कर सामने आ रहा है। कुछ समय पहले तक यह मुद्दा गौण था, लेक‍िन अब (खास कर मध्य प्रदेश, राजस्‍थान व छत्‍तीसगढ़ में) यह प्रमुखता से उठाया जा रहा है। मुद्दा है जात‍िगत सर्वे/जनगणना का। बिहार में जातिगत सर्वे के परिणाम घोषित होने के बाद यह चुनावी राज्यों में अहम मुद्दा बनते जा रहा है।

सोमवार (9 अक्टूबर, 2023) को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा “हिंदुस्तान के भविष्य के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है। जातिगत जनगणना के बाद विकास का एक नया रास्ता खुलेगा। कांग्रेस पार्टी इस काम को पूरा करके ही छोड़ेगी। याद रखिए.. जब हम वादा करते हैं, तो उसे तोड़ते नहीं हैं।” शनिवार को कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवारों पर विचार-विमर्श के दौरान यह निर्णय लिया कि पार्टी का मुख्य एजेंडा राज्य में जाति सर्वेक्षण कराना होगा।

बैठक के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान राज्य के प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “हमने तय किया है कि मध्य प्रदेश में जाति जनगणना कराना हमारा मुख्य एजेंडा होगा। हमारा मुख्य एजेंडा अपने ओबीसी, एससी और एसटी भाई-बहनों को न्याय दिलाना है। बैठक में कमलनाथ जी और मध्य प्रदेश कांग्रेस के अन्य साथियों ने कहा कि जाति जनगणना कांग्रेस का प्राथमिक एजेंडा होगा।”

शुक्रवार को प्रियंका गांधी ने कहा था कि अगर कांग्रेस छत्तीसगढ़ में फिर से सत्ता में आती है, तो राज्य में बिहार की तरह ही जाति जनगणना कराई जाएगी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी राज्य में जाति-आधारित जनगणना कराने की घोषणा कर चुके हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गांधी जयंती (2 अक्टूबर) के मौके पर जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए थे। उन आंकड़ों से पता चला कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27.12% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 36.01% है। यानी बिहार की कुल आबादी में सबसे बड़ा वर्ग संयुक्त पिछड़ा वर्ग (63%) है। इस खुलासे के बाद से देश भर में इसी तरह के सर्वेक्षण की मांग उठ रही है।

कांग्रेस क्यों बना रही है जाति जनगणना को मुद्दा?

हाल में जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम ‘आइडिया एक्सचेंज’ में शामिल हुए। उन्होंने जाति जनगणना पर बात करते हुए कहा, “आज कई राज्य इसी तरह की जनगणना की मांग कर रहे हैं। यह 2024 के चुनावों का एजेंडा बन गया है। जाति जनगणना कमंडल (भाजपा की हिंदुत्व) राजनीति पर हावी हो गई है।”

कांग्रेस के लिए भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति ही सबसे बड़ी चुनौती है। भाजपा की जीत हिंदू वोटों की एकजुटता से सुनिश्चित होती है। ऐसे में भाजपा हर उस कदम का विरोध करती है, जो हिंदुओं को राजनीतिक आधार पर बांट सकती है। दूसरी तरफ मंडल पॉलिटिक्स है जिसके तहत “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” की बात कही जाती है। क्षेत्रीय दलों की तरह कांग्रेस पॉलिटिक्स करने की कोशिश में है। जाति जनगणना उसी मंडल राजनीति का एक टूल है।

मध्य प्रदेश में कास्ट इक्वेशन

अन्य हिंदी भाषी राज्यों और भारत के कई अन्य हिस्सों की तरह ही मध्य प्रदेश में भी जाति चुनावी राजनीति में एक फैक्टर है। सीएसडीएस के हालिया अध्ययन के मुताबिक, एमपी में 65 फीसदी लोग जाति के आधार पर वोट करते हैं, जो देश में सबसे ज्यादा है। एमपी में भाजपा को परंपरागत रूप से उच्च जातियों और ओबीसी का समर्थन रहा है। भाजपा के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का संबंध ओबीसी समुदाय से है।

हालांकि सीएसडीएस के आंकड़ों से पता चलता है कि कांग्रेस का ओबीसी के बीच साल-दर-साल आधार बढ़ रहा है। 2003 के विधानसभा चुनाव में 50 प्रतिशत ओबीसी ने भाजपा और 26 प्रतिशत ओबीसी ने कांग्रेस को प्राथमिकता दी। 2008 के विधानसभा चुनाव में 41 प्रतिशत ओबीसी ने भाजपा और 27 प्रतिशत ने कांग्रेस को पसंद किया। 2012 के विधानसभा चुनाव में 44 प्रतिशत ओबीसी ने भाजपा और 35 प्रतिशत ने कांग्रेस को पसंद किया।

ओबीसी वोटिंग प्रेफरेंस (सोर्स- CSDS)

आम चुनाव: भाजपा की ओबीसी के बीच बढ़ी है पैठ

भाजपा की चुनावी सफलता के पहले (1996-2004) और दूसरे चरण (2014 के बाद) के बीच एक बड़ा अंतर पार्टी के सामाजिक आधार में आया है। पहले भाजपा को बनिया-ब्राह्मण पार्टी या शहरी उच्च जातियों और उच्च वर्गों की पार्टी के रूप में देखा जाता था। लेकिन अब पार्टी ने आदिवासियों और दलितों के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बीच भी पैठ बनाई है। साथ ही उच्च जातियों के बीच भी अपना आधार बरकरार रखा है।

लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 के आम चुनाव में भाजपा को 34% ओबीसी ने वोट किया था। 2019 में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत बढ़कर 44% हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पिछड़े वर्ग से हैं और माना जाता है कि बीजेपी ने हिंदी पट्टी में अत्यंत पिछड़ा वर्ग को एकजुट करने में सफलता हासिल कर ली है। विपक्ष अपनी जीत के लिए इसी को तोड़ना चाहेगा।

OBC
(सोर्स- CSDS)

आम चुनावों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का ओबीसी के बीच आधार कम हुआ है:

मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को 109 सीटें मिली थीं। हालांकि, बाद में केंद्रीय मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कई विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस सरकार गिर गई। मार्च 2020 में भाजपा सत्ता में लौट आई और शिवराज सिंह चौहान नए कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में एमपी विधानसभा में भाजपा के 127 विधायक हैं।