Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कुछ ही दिनों में मतदान होना है। चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। 29 अक्टूबर को अशोक नगर जिला में ग्वालियर के पूर्व शाही परिवार के 52 वर्षीय वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, “मेरा सेनापति अपना किला का हिफाजत करेगा।”

यह ऐसा लग रहा था, मानो ‘ग्वालियर के महाराजा’ ने युद्ध के लिए अपने सैनिकों को एकत्रित किया हो। सिंधिया ने भीड़ में एक पार्टी कार्यकर्ता को पानी पीते हुए देखकर, उन्हें सीधे संबोधित करते हुए कहा, “मेरे कमांडर, आप बाद में पानी पी सकते हैं; अभी युद्ध का समय है।”

अशोक नगर के पिपरई गांव से लगभग 250 किमी दूर, एक पहाड़ी के ऊपर, राघौगढ़ किला है। वहां ग्वालियर शाही परिवार के पारंपरिक विरोधियों ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से सिंधिया और सत्तारूढ़ भाजपा को सत्ता से बाहर करने की योजना बनाई है।

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के 37 वर्षीय बेटे और तत्कालीन राघोगढ़ रियासत के ग्वालियर रेजीडेंसी के उत्तराधिकारी जयवर्धन सिंह अपने हाथ में वॉकी-टॉकी पकड़कर उन सीटों का सर्वेक्षण करने में व्यस्त हैं। वह कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने वाली सभी पहलुओं पर नजर बनाए हुए हैं, एक पहलू कांग्रेस के बागी उम्मीदवार भी हैं।  

इंडियन एक्सप्रेस से बात करने के लिए अपना वॉकी-टॉकी बंद करते हुए जयवर्धन कहते हैं, “हमारी मुख्य रणनीति ग्वालियर-चंबल के हर घर तक यह संदेश पहुंचाना है कि सिंधिया ने लोगों के जनादेश की पीठ में छुरा घोंपा है, जो सबसे बड़ा पाप है।”

चंबल से छिंदवाड़ा तक, इंडियन एक्सप्रेस की 790 किमी की यात्रा

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले चुनावों से पहले इंडियन एक्सप्रेस ने 790 किमी से अधिक की यात्रा की, जो ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से शुरू हुई, जहां राजघरानों की यह लड़ाई चल रही है, और छिंदवाड़ा में समाप्त हुई, जो कि कमलनाथ का होम ग्राउंड है। कमलनाथ अब भी कांग्रेस के सबसे प्रभावी लड़ाके में से एक हैं। कांग्रेस के यह वरिष्ठ 2020 में सिंधिया द्वारा किए ‘विश्वासघात’ से उबरते हुए अपनी सीट दोबारा हासिल करने का इंतजार कर रहे हैं।

पिछले चुनावों में 2018 में कांग्रेस 230 सीटों में से 114 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। वहीं भाजपा, शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में तीन बार सत्ता में रहने के बाद, 109 सीटों पर सिमट गई थी। लेकिन जल्द ही स्थिति बदल गई। सिंधिया के नेतृत्व में कई कांग्रेस नेता भाजपा के खेमे में चले गए और पार्टी सत्ता में वापस आ गई। अब, तीन साल बाद, कांग्रेस के पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, जिन्होंने खुद को 1975 की क्लासिक शोले का ‘जय’ और ‘वीरू’ बताया है, ‘बदला’ लेने पर उतारू हैं।

दूसरी तरफ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है और सत्ता बचाने के लिए तीन केंद्रीय मंत्रियों, चार सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव सहित अपने दिग्गजों को उतार दिया है। यह चुनाव, मध्य प्रदेश में एक चौतरफा युद्ध है।

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र: 34 सीटों पर सिंधिया की परीक्षा!

4 सितंबर को राज्य भर में सूखे की आशंका से चिंतित होकर सीएम चौहान उज्जैन के महाकाल मंदिर पहुंचे। सीएम ने जनता से बिजली बचाने और अच्छी बारिश के लिए प्रार्थना करने की अपील की। क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र ने कहा कि राज्य के 52 जिलों में से लगभग 20 में अगस्त में कम बारिश हुई और इसका फसलों पर असर पड़ा। चुनावी वर्ष में सूखा, सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बुरी खबर है, कृषि प्रधान ग्वालियर-चंबल बेल्ट में इसका असर देखने को मिल रहा है।

भाजपा ने इस क्षेत्र में पारंपरिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। पार्टी 2008 में यहां 34 में से 16 सीटें और 2013 में 20 सीटें जीती थी। लेकिन 2018 के चुनावों में उसे झटका लगा। उस चुनाव में कांग्रेस कृषि ऋण माफी के अपने वादे और लोगों की उम्मीदों पर सवार होकर कि सिंधिया सीएम बनेंगे, 26 सीटों के साथ जीत गई। लेकिन जैसे ही 2020 में 22 विधायकों और कुछ समर्थकों के साथ सिंधिया भाजपा में गए, पार्टी की 16 सीटें बढ़ गईं और उसकी सत्ता में वापसी हो गई। इस चुनाव में सिंधिया को कांग्रेस से बचना है।

भाजपा नेताओं का कहना है कि वे इस क्षेत्र में वापसी को लेकर आश्वस्त हैं। क्षेत्र के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “सभी शीर्ष नेता अब भाजपा के साथ हैं। कांग्रेस को अपना संगठन फिर से बनाना होगा।” लेकिन पार्टी नेता स्वीकार करते हैं कि इन गणनाओं से परे, अन्य कारक भी हो सकते हैं – उदाहरण के लिए सूखा।

गुना के एक भैंस बाजार में, एक नवजात बछड़े को उठाकर उसकी मां के करीब लाते हुए, 32 वर्षीय पशु व्यापारी फूल सिंह कहते हैं, “हम बचपन से ही भाजपा को वोट देते आ रहे हैं। लेकिन अब हमें बदलाव की जरूरत है। युवा खून को मौका दिया जाना चाहिए, यही जीवन है।”

सूखे का मतलब है कि पास के जिलों पिछोर, गुना, राघौगढ़ और शिवपुरी के गांवों के कई किसानों को अपनी भैंस बेचनी पड़ी है, ताकि वे उन पैसों से ट्यूबवेल लगवा सके। ये जिला सिंधिया के गढ़ रहे हैं।

35 वर्षीय किसान दौलत राम, जिन्होंने 30,000 रुपये से अधिक में अपनी भैंस और उसका बछड़ा बेचा है, कहते हैं, “पानी यहां सबसे कीमती संसाधन है। आप उन राजनेताओं और राजाओं पर निर्भर नहीं रह सकते जो अब हमारे दरवाजे पर भीख मांगने आये हैं।” 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से अपने पूर्व वफादार केपी यादव से 1,25,549 वोटों के भारी अंतर से हार गए थे।

राज्य भाजपा सचिव रजनीश अग्रवाल सूखे से पार्टी को नुकसान पहुंचने की आशंकाओं को खारिज करते हैं। वह कहते हैं, “किसानों को प्रति माह 12,000 रुपये का वजीफा मिलता है (सीएम और पीएम प्रत्येक से 6,000 रुपये का वजीफा) और हमने सिंचाई प्रणाली का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत की है। किसान संकट एक क्षणिक मुद्दा है।”

भाजपा सरकार ने ग्वालियर पर बहुत ध्यान दिया है। एक नए हवाई अड्डे से लेकर एक एलिवेटेड रोड, 1,000 बिस्तरों वाला अस्पताल, स्कूल और कॉलेज तक। हालांकि इन सब के बावजूद पटवारी भर्ती परीक्षा की अब भी चर्चा है। परीक्षा का एक केंद्र एनआरआई कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट (ग्वालियर) में भी बनाया गया था। परीक्षा के 10 में से सात टॉपर इसी केंद्र से निकले थे। इसके बाद यह केंद्र विवादों में आ गया था और कांग्रेस ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इस विवाद ने सरकार को पटवारी भर्तियों को रोकने के लिए मजबूर कर दिया, जिससे राज्य भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

25 साल की रचना तोमर उन लोगों में से हैं जो नाराज़ और परेशान हैं। वह कहती हैं, “इस राज्य में ऐसा ही है। हम वर्षों तक पढ़ाई करते हैं, परीक्षा देते हैं, कुछ घोटाला होता है, भर्तियां रोक दी जाती हैं और हम नौकरियों का इंतजार करते-करते बूढ़े हो जाते हैं।”

बुंदेलखंड क्षेत्र: 26 सीटें और जातियों का समीकरण

गुना-चंबल क्षेत्र के चंदेरी से दो बार के कांग्रेस विधायक गोपाल सिंह चौहान उर्फ ‘दग्गी राजा’ को सीट पर कड़ा मुकाबला मिल रहा है।  दग्गी राजा का संबंध बुंदेलखंड के एक सामंती परिवार से है। चौहान को हाल ही में एक वीडियो में अपना कुर्ता फैलाते हुए देखा गया था जैसे कि वह भीख मांग रहे हों और अनुरोध कर रहे हों कि चुनाव में “कुछ भी गलत नहीं होना चाहिए”।

चौहान ने कहा, “मेरा सम्मान दांव पर है, मैं आपसे विनती कर रहा हूं।” इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए विधायक ने बहादुरी का परिचय दिया। कहा, “मैं राजपूत समुदाय से बात करने गया और उनसे विनती की। मैं एक जागीरदार (सामंती स्वामी) हो सकता हूं, लेकिन मैं एक नौकर हूं। कोई सत्ता-विरोधी लहर नहीं है; मैं रिकॉर्ड अंतर से जीतूंगा।”

लेकिन चौहान के पास चिंता करने की वजहें हैं। राज्य में किसानों छाए संकट के बादल का असर चंदेरी के साड़ी और चूड़ी व्यापारियों पर पड़ा है। उनकी बिक्री में गिरावट आई है। चंदेरी के साड़ी विक्रेता 47 वर्षीय अभिनव पटेरिया कहते हैं, “इस साल बिक्री आधी है। अधिकांश व्यवसायियों को भारी घाटा हुआ है। दग्गी राजा हम लोगों की पहुंच से बाहर हैं और उन्होंने कभी हमारा दर्द साझा नहीं किया।”

बुन्देलखण्ड क्षेत्र एक भयावह विरोधाभास से जूझ रहा है। हालांकि यह बहुमूल्य खनिजों से समृद्ध है। यहां हीरे का खदान (पन्ना में) है। लेकिन बावजूद इसके यह राज्य के सबसे गरीब और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में से एक है।

इस क्षेत्र में 26 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें छह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। भाजपा का गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में कांग्रेस की सात सीटों की तुलना में पार्टी के पास 18 सीटें हैं।

लेकिन इस चुनाव में, कांग्रेस ने सत्ता में आने पर जाति जनगणना कराने के अपने वादे से हलचल मचा दी है। राज्य भर में अपनी रैलियों में, वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी जाति जनगणना का वादा कर रहे हैं – जिसे कई लोग ओबीसी को अपने पक्ष में लाने की पार्टी की कोशिश के रूप में देखते हैं क्योंकि यह भाजपा की आक्रामक हिंदुत्व राजनीति का मुकाबला करती है।

राज्य में ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत है और उन्हें भाजपा की मुख्य ताकत माना जाता है। भाजपा ने अपने तीन ओबीसी नेताओं को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया है, उमा भारती, बाबू लाल गौर और शिवराज सिंह चौहान। भारती तो बुंदेलखंड से हैं।

सागर में एक भाजपा कार्यकर्ता को उम्मीद व्यक्त करते हैं, “हमें उम्मीद है कि इसे (जाति जनगणना) मतदाताओं का समर्थन नहीं मिलेगा। अगर ऐसा हुआ तो इससे हमें गंभीर नुकसान हो सकता है।”

भाजपा इस क्षेत्र में अपनी विकास परियोजनाओं पर भरोसा कर रही है, जिसमें 44,605 करोड़ रुपये की केन-बेतवा लिंक परियोजना (केबीएलपी) को दी गई मंजूरी भी शामिल है। 14 सितंबर को पीएम मोदी ने बीना शहर में 50,700 करोड़ रुपये की औद्योगिक परियोजनाओं का उद्घाटन किया, जिसमें 49,000 करोड़ रुपये का पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स भी शामिल था।

प्रधानमंत्री मोदी ने अगस्त में बडतूमा गांव में 100 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले संत रविदास मंदिर की नींव रखी थी। मंदिर स्थल के पास मौजूद दो युवा भाजपा विधायक के किए काम से खुद को खुश बता रहे हैं। एक का नाम रोशन अहिरवार और दूसरे का नाम अजय अहिरवार है। दोनों स्नातक हैं और उनकी उम्र 20 वर्ष के आसपास है और दोनों बेरोजगार हैं।  

रोशन कहते हैं, “भाजपा विधायक ने यहां बहुत सारे काम किए हैं, जिसमें यह स्ट्रीट लाइट लगाना भी शामिल है। लेकिन बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है। मेरे क्षेत्र का हर युवा भाजपा को वोट देगा।”

महाकोशल क्षेत्र: 38 सीटें और महत्वपूर्ण आदिवासी वोट

महाकोशल क्षेत्र के जबलपुर में सीएम ने लाडली बहना योजना की पहली किस्त जारी की थी। इस योजना के तहत 21 से 60 वर्ष की आयु की महिला मतदाताओं को 1,250 रुपये का मासिक वजीफा मिलता है। इस कदम के अपने राजनीतिक निहितार्थ भी हैं।

जबलपुर से महाकोशल क्षेत्र की आदिवासी सीटों की शुरुआत होती है। इस चुनावी मौसम में एक प्रमुख युद्ध का मैदान बन गया है। राज्य की आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से अधिक है। 47 विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं।

कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा की सात सीटों सहित 38 विधानसभा सीटों के साथ महाकोशल क्षेत्र में शानदार चुनावी मुकाबला देखने को मिल सकता है। हर चुनाव में इस क्षेत्र के रुख बदलने की संभावना रहती है।

2018 में इस क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ था क्योंकि उसने यहां भाजपा की 13 सीटों की तुलना में 24 सीटें जीती थीं। 2013 में स्क्रिप्ट उलट गई – भाजपा ने 24 सीटें जीती जबकि कांग्रेस 13 सीटों पर सिमट गई।

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के गढ़ नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र में उत्साह का माहौल है। पटेल को उनके भाई और मौजूदा विधायक जालम पटेल की जगह दिल्ली से लाया गया है। जिले में अनाज का अधिक उत्पादन होता है और इसके किसान ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड क्षेत्रों के किसानों से समृद्धि के मामले में तुलनात्मक रूप से आगे हैं।

भैसा गांव के एक गन्ने के खेत में 32 वर्षीय प्रमोद यादव को उम्मीद है कि दिवाली तक एक लाख रुपये से अधिक की कमाई (फसल से) होगी। वह कहते हैं, “यहां के किसान बेहतर स्थिति में हैं और अधिक शिक्षित हैं। हमारे पास आर्थिक समर्थन भी अधिक है, इसलिए यहां राजनेताओं के खिलाफ ज्यादा गुस्सा नहीं है।”

भाजपा को अमरवाड़ा में लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है। वहां हर्रई आदिवासी शाही परिवार से दो बार के कांग्रेस विधायक कमलेश शाह का मुकाबला पार्टी की मोनिका बट्टी से है, जो दिवंगत मनमोहन शाह बट्टी की बेटी हैं। मनमोहन शाह बट्टी, अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी (एबीजीपी) के अध्यक्ष थे।

अमरवाड़ा में पानी के पाइप से भरे तेज रफ्तार ट्रकों पर खतरनाक तरीके से लटकते हुए आदमी एक दृश्य आम है। 35 वर्षीय आदिवासी किसान दारा राम कुंबरे ने बताते हैं, “सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है। हमें जल आपूर्ति की व्यवस्था स्वयं ही करनी होगी। सरकार ने कुछ नहीं किया है।” कुंबरे को अपने गेहूं के खेतों की सिंचाई के लिए 11,000 रुपये खर्च करना पड़ा है।

नरसिंहपुर से 100 किमी से अधिक दूरी पर छिंदवाड़ा है। यह कमलनाथ का गृह क्षेत्र है। 101 फुट ऊंची हनुमान की प्रतिमा चुनावी माहौल पर हावी है। यह इस चुनावी मौसम में नाथ के लिए प्रमुख हथियार हैं।

सत्ता खोने के बाद से नाथ ने खुद को हनुमान भक्त के रूप में प्रचारित किया है, कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है, भोपाल में अपने घर पर हनुमान चालीसा पाठ आयोजित किया है, और कांग्रेस के साथ बजरंग सेना नामक हिंदुत्व संगठन के विलय का भी काम किया।

नाथ का असल पूरे छिंदवाड़ा पर नजर आता है। यहां की ज्यादातर आदिवासी आबादी नाथ के प्रति पूरी तरह से वफादार है, जिन्होंने 1980 के बाद से यहां से हर चुनाव जीता है। घने जंगलों के बीच बसे एक पठार के ऊपर स्थित, यह रेल कनेक्टिविटी के साथ आदिवासी बेल्ट के सबसे विकसित जिलों में से एक है। क्षेत्र में चिकनी सड़कें हैं, कौशल विकास संस्थानों की पूरी एक श्रृंखला है और रेमंड व यूनिलीवर सहित कई कारखाने हैं।

लाल दुआन गांव में कई आदिवासी महिलाएं एक निर्माण स्थल पर ले जाने के लिए एक पिक-अप ट्रक का इंतजार करती हैं जहां वे मजदूर के रूप में काम करती हैं। उनमें से तीन बीए की पढ़ाई कर रही हैं और उम्मीद कर रही हैं कि वे अपने गांव से स्नातक करने वाली पहली महिला होंगी।

18 वर्षीय अंजना उइके कहती हैं, “हमारे गांव की सड़कें टूटी हुई हैं, हमारे पास काम करने के लिए खेत नहीं हैं इसलिए जिंदा रहना मुश्किल है। मुख्यमंत्री से मिलने वाला मासिक वजीफा हमारे परिवारों की मदद करता है, लेकिन कमलनाथ सरकार में हमें कभी बिजली कटौती या पानी की कमी नहीं हुई।”