राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की सरकार में अयोध्या (Ayodhya) के विवादित स्थल का ताला खोला गया था। बाद में इस मुद्दे को भाजपा (BJP) ने लपक लिया और लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा की।

इसके बाद अगले तीन दशक यह मुद्दा भाजपा की राजनीति का धुरी रहा। इस बीच 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का एक गुंबद ढाह दिया गया। इस दौरान वहां लालकृष्ण आडवाणी, मूरलीमनोहर जोशी और उमा भारती जैसे बड़े भाजपा नेता मौजूद थे।

लेकिन दिलचस्प बात यहा है कि जिस ताले को राजीव गांधी सरकार में खोल गया था, उसे राजीव के नाना और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru Birthday) ने लगवाया था।

जब बाबरी में रखी गई राम की मूर्ति

साल 1949 की बात है। केंद्र में जवाहरलाल नेहरू की सरकार थी। तत्कालीन संयुक्त प्रांत और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत थे। 22-23 दिसंबर की सर्द रात में अचानक अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद में रामलला समेत कई हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां रख दी गईं। कहा जाता है कि यहीं से राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के विवाद को नया आयाम मिला।

यह वही दौर था, जब कश्मीर में भी भारी तनाव था। इस बीच अयोध्या में शुरु हुए इस विवाद से नेहरू चिंतित हो गए। पंत को लिखे 26 दिसंबर 1949 के पत्र में वह कहते हैं, ”मैं अयोध्या के घटनाक्रम से चिंतित हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि आप जल्द से जल्द इस मामले खुद दखल देंगे। वहां खतरनाक उदाहरण पेश किए जा रहे हैं, जिनके बुरे परिणाम होंगे।”

डीएम ने की सरकारी आदेश की अवहेलना

केंद्र सरकार चाहती थी कि बाबरी से मूर्तियों को जल्द हटा लिया जाए। खुद प्रधानमंत्री नेहरू इस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए थे। फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट को तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस ने मस्जिद से मूर्तियों को हटाने का आदेश जारी किया था। लेकिन 1930 बैच के आईपीएस और फैजाबाद डीएम के.के. नायर ने आदेश मानने से इनकार कर दिया था।

नायर ने कहा था कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसा आदेश नहीं लागू कर सकते क्योंकि इससे बेगुनाह जिंदगियों को तकलीफ होगी। उन्होंने सांप्रदायिक दंगा होने की आशंका व्यक्त की। बताया जाता है कि नायर ने नेहरू के निर्देशों की भी अनदेखी कर दी। इसके बाद नायर पर कार्रवाई करते हुए फैजाबाद डीएम के पद से हटा दिया गया।

अनुभवी गांधीवादी दार्शनिक केजी मशरुवाला को लिखे पत्र में नेहरू उन्हें बताते हैं, ”आपने अयोध्या की मस्जिद का जिक्र किया। यह वाकया दो या तीन महीने पहले हुआ और मैं इसको लेकर बहुत बुरी तरह चिंचित हूं। संयुक्त प्रांत सरकार ने इस मामले में बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन असल में किया बहुत कम। फैजाबाद के जिला अधिकारी ने दुर्व्यवहार किया और इस घटना को होने से रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया…”

नायर ने जनसंघ से लड़ा चुनाव

1952 में नायर ने सेवा से रिटायरमेंट ले लिया। 1967 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ (भाजपा का पुराना रूप) ने नायर को उत्तर प्रदेश के बहराइच से अपना उम्मीदवार बनाया। वह जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े और संसद पहुंचे।