सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज एम. फातिमा बीवी का 23 नवंबर, 2023 को केरल के कोल्लम स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में निधन हो गया। वह 96 वर्ष की थीं। उनकी नियुक्ति ने महिलाओं को कानूनी पेशे को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया था। वह महिला सशक्तिकरण की प्रतीक रही हैं। उन्होंने कानूनी पेशे और अन्य क्षेत्रों में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने अपने शोक संदेश में कहा कि न्यायमूर्ति बीवी का जीवन केरल में महिला सशक्तिकरण के उल्लेखनीय अध्यायों में से एक था। उनकी वजह से केरल ने देश को पहली महिला न्यायाधीश देने वाले राज्य के रूप में पहचान हासिल की है।

सीएम विजयन ने कहा कि “न्यायमूर्ति बीवी में जीवन की सभी बाधाओं को पार करने की अद्वितीय शक्ति थी। उनका जीवन पूरे समाज, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणा है। संवैधानिक मामलों में उनकी विद्वता तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान देखी गई थी।” बता दें कि जस्टिस एम. फातिमा बीवी 1997 से 2001 तक तमिलनाडु की राज्यपाल रही थीं।

अन्ना चांडी की कहानी से प्रेरित होकर पिता ने करवाई लॉ की पढ़ाई

जस्टिस एम. फातिमा बीवी का जन्म 1927 में पथानमथिट्टा (केरल) में हुआ था। उनके पिता का नाम अन्नवीटिल मीरा साहिब और मां का नाम खदीजा बीवी था। वह अपने माता-पिता की आठ संतानों में सबसे बड़ी थीं। जस्टिस बीवी के पिता अन्नवीटिल मीरा साहिब एक सरकारी कर्मचारी थे। वह पंजीकरण विभाग में काम करते थे। साहिब ने उस समय अपने बच्चों, विशेषकर अपनी छह बेटियों को शिक्षा हासिल करने के लिए भरपूर प्रोत्साहन दिया था।

फातिमा बीवी ने स्कूली शिक्षा पथानामथिट्टा के कैथोलिक स्कूल से ली थी। इसके बाद महिला कॉलेज से केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया। ये वो वक्त था जब मुस्लिम लड़कियां उच्च शिक्षा से दूर थीं। बावजूद इसके फातिमा बीवी केमिस्ट्री ही मास्टर्स करना चाहती थीं। लेकिन उनके पिता तत्कालीन त्रावणकोर राज्य की पहली महिला न्यायिक अधिकारी अन्ना चांडी की कहानी से प्रेरित थे, इसलिए उन्होंने फातिमा बीवी को लॉ करने के लिए कहा।

बार काउंसिल की परीक्षा में पाया स्वर्ण पदक

साहिब ने अपनी बेटी को समझाया कि केमिस्ट्री में मास्टर्स  उन्हें शिक्षण करियर में ले जाएगा। लेकिन कानून की पढ़ाई उन्हें अलग ऊंचाई तक ले जाएगा। फातिमा बीवी ने तिरुवनंतपुरम के एक सरकारी लॉ कॉलेज में कानून की पढ़ाई की। लॉ का रास्ता चुनने के बाद उन्होंने कई स्तर पर इतिहास रचा। 1949-50 में जब उन्होंने लॉ स्टूडेंट के रूप में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, तो वकील के रूप में नामांकित होने के लिए बार काउंसिल द्वारा आयोजित एक परीक्षा पास करना अनिवार्य था। 1950 में बीवी बार काउंसिल से स्वर्ण पदक पाने वाली पहली महिला लॉ ग्रेजुएट बनीं।

इसके बाद उन्होंने कोल्लम जिला अदालत में जूनियर वकील के रूप में दाखिला लिया। वह हिजाब पहन अदालत जाती थीं। एक मुस्लिम महिला का कोर्ट में जाना मुस्लिम समुदाय के रूढ़िवादियों को रास नहीं आ रहा था। लेकिन फातिमा बीवी ने कभी इसकी परवाह नहीं की और आगे बढ़ती रहीं।

आठ साल के बाद फातिमा बीवी ने तत्कालीन सरकार द्वारा आयोजित एक प्रतियोगी परीक्षा को पास किया और बतौर मुंसिफ ज्यूडिशियल सर्विस को ज्वाइन किया। 1974 में वह जिला सत्र न्यायाधीश बन गईं।

हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और राजभवन तक

जस्टिस बीवी को 1983 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और 1989 में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। 1989 से 1992 तक सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस फातिमा बीवी का कार्यकाल शानदार रहा।

एक न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति बीवी महत्वपूर्ण मामलों में समानता के पक्ष में रहीं। शीर्ष अदालत से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य और तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया।

राजीव गांधी के हत्यारों की दया याचिका की खारिज, लेकिन…

तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में वह राजीव गांधी हत्या मामले में दोषियों की दया याचिका खारिज करने के बाद सुर्खियों में आई थीं। राजीव गांधी हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में नलिनी, मुरुगन, संथन और पेरारिवलन को मौत की सजा सुनाई थी। तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में बीवी ने नलिनी को दी गई मौत की सजा को इस आधार पर बदल दिया कि वह एक महिला हैं और उनकी एक बेटी है। हालांकि, राज्यपाल ने अन्य तीन आरोपियों की क्षमादान याचिका को खारिज कर दिया।

तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल एक अन्य वजह से चर्चा में रहा। तमिलनाडु में 2001 के विधानसभा चुनावों में, जे जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक ने बहुमत हासिल किया था, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। लेकिन बीवी ने जयललिता को न सिर्फ सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, बल्कि वह उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए भी तैयार थीं।

बीवी का विचार था कि बहुमत दल ने उन्हें (जयललिता) अन्नाद्रमुक के संसदीय दल का नेता चुना है। हालांकि केंद्र सरकार को यह पसंद नहीं आया। केंद्र ने राज्यपाल को इस आधार पर हटाने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश की कि राजभवन अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहा है। इसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया।

सालों बाद केरल वापस आने पर जस्टिस बीवी ने कहा, “मैंने बंद दरवाज़ा खोल दिया था। मैं सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाली पहली महिला हूं। ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाली सक्षम महिलाओं की कोई कमी थी। सक्षम व्यक्ति भी थे, महिलाएं भी थीं। लेकिन ऐसा करना कार्यपालिका का काम था।”

2001 में जयललिता को सरकार का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित करने के अपने निर्णय के संबंध में, न्यायमूर्ति बीवी ने कहा, “उस समय, उन्हें बरी कर दिया गया था और कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ था। मैंने फैसले से पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से परामर्श किया था और वे सभी मुझसे सहमत थे।”

उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति लेना गलत नहीं लगता है। हालांकि उन्होंने चेतावनी दी था कि, “उन्हें (नियुक्ति लेने वाले) सही ढंग से कार्य करना चाहिए। भटकना नहीं चाहिए और किसी भी हित से जुड़ना नहीं चाहिए।”