सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े केसेज की जांच में प्रत्यर्पण निदेशालय यानी ED को मनमानी शक्तियां दे दी गई हैं और इस पर लगाम लगाने की जरूरत है। साल्वे रियल्टी फर्म M3M के डायरेक्टर्स की तरफ से एक मुकदमे में पेश हो रहे थे। M3M ग्रुप के डायरेक्टर बसंत बंसल और पंकज बंसल ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कोर्ट ने ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी में दखल देने से इनकार कर दिया था।

‘ED पर लगाम जरूरी’

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच के सामने सुनवाई के दौरान बंसल बंधुओं की तरफ से हरीश साल्वे के साथ सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी भी पेश हुए। साल्वे ने दलील दी कि ईडी को मनमानी शक्तियां दे दी गई हैं। अगर माननीय न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं करता है तो इस देश में कोई सुरक्षित नहीं रहेगा। साल्वे ने कहा- देखिए किस तरीके से गिरफ्तारी की गई, जब कि हम (बंसल बंधु) पूरी तरह सहयोग कर रहे थे। अब 14 दिनों से अंदर हैं। ऐसे में ईडी की शक्तियों पर लगाम लगाने की जरूरत है।

यह तो चूहे-बिल्ली का खेल…

हरीश साल्वे ने कहा कि अग्रिम जमानत याचिका की शर्तों के साथ किसी उल्लंघन की कोई भनक तक नहीं थी, जिसकी वजह से ईडी को ऐसी कार्रवाई करनी पड़ी हो। इस पर जस्टिस सुंदरेश ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘आप ठीक कह रहे हैं… यह तो चूहे बिल्ली का खेल है। वह भी (ED) कानून का इस्तेमाल कर रहे हैं’। आपको बता दें कि बंसल ब्रदर्स को ईडी ने 14 जून को गिरफ्तार किया था। इसके बाद हरियाणा की एक स्पेशल कोर्ट ने दोनों को 5 दिन की हिरासत में भेज दिया था। बंसल बंधुओं ने इसे चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में पिछले महीने जस्टिस केवी विश्वनाथन इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं।

पहली बार चर्चा में नहीं ED

यह पहला मामला नहीं है जब ईडी पर सवाल खड़े हुए हैं। हाल के दिनों में विपक्षी पार्टियां लगातार ईडी की कार्रवाई पर सवाल उठा रही हैं। चाहे नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया और राहुल गांधी से पूछताछ का मामला हो या फिर संजय राउत की गिरफ्तारी का। ईडी पर अपने अधिकारों के उल्लंघन का आरोप भी लगता रहा है। आइये जानते हैं कैसे बनी ईडी और क्या हैं इसके काम …

कैसे बनी ईडी, क्या है इतिहास?

ईडी की शुरुआत 1 मई 1956 को हुई थी। तब वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स में विदेशी मुद्रा अधिनियम, 1947 (FERA) से जुड़े मामलों को देखने के लिए एक प्रवर्तन इकाई (Enforcement Unit) बनाई गई। इसका मुख्यालय दिल्ली में था और कलकत्ता व बॉम्बे (अब मुंबई) में दो ब्रांच थीं। उस वक्त ईडी के डायरेक्टर लीगल सर्विस के अफसर हुआ करते थे। सालभर बाद साल 1957 में प्रवर्तन इकाई का नाम बदलकर डायरेक्टोरेट ऑफ एनफोर्समेंट या एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (Enforcement Directorate) रखा दिया गया और मद्रास (अब चेन्नई) में एक और ब्रांच खोली गई।

डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू के पास कंट्रोल

साल 1960 में ED का प्रशासनिक कंट्रोल डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स से डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू को दे दिया गया। फिलहाल दिल्ली स्थित मुख्यालय के अलावा ईडी के मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में कुल 5 क्षेत्रीय कार्यालय हैं। इसके अलावा 10 जोनल ऑफिस और 11 सब जोनल ऑफिस हैं।

किन कानून के तहत काम करती है ED?

ईडी मुख्य तौर पर आर्थिक अपराध, मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन से जुड़े मामलों को देखती है। ईडी जिन कानून के तहत काम करती है उनमें- फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (Fema), धन सोधन निवारण अधिनियम 2002 (PMLA), भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम 2018 (FEOA) और विदेशी मुद्रा का संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 (COFEPOSA) शामिल हैं।

ED के पास क्या शक्तियां हैं?

ED के पास PMLA से लेकर FEMA जैसे कानून के तहत आने वाले मामलों में छापा मारने से लेकर, गिरफ्तारी और संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। यदि किसी थाने में 1 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की हेराफेरी की FIR दर्ज होती है तो पुलिस, ED को इसकी जानकारी देती है। इसके बाद ईडी इसकी जांच शुरू कर सकती है। इसके अलावा ईडी खुद किसी मामले का संज्ञान लेकर भी जांच शुरू कर सकती है। ED के पास बगैर पूछताछ के भी संपत्ति जब्त करने का अधिकार है।