गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) में भाजपा (BJP) बंपर सीटों के साथ सत्ता में वापसी कर चुकी है। राज्य की सभी 182 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में से भाजपा ने 156 सीटों पर जीत हासिल की है। वहीं कांग्रेस (Congress) ने 17 और आप ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की है। आंकड़ों के विश्लेषण से निकले रहे निष्कर्ष के मुताबिक, भाजपा को गुजरात में हिंदू धर्म की सभी जातियों (All The Hindu Communities) के साथ-साथ मुसलमानों (Muslims) का भी वोट मिला है।

सभी वर्गों के बीच भाजपा के लिए समर्थन बढ़ा

2017 की तुलना में मुसलमानों को छोड़कर सभी वर्गों के बीच भाजपा के लिए समर्थन बढ़ा। CSDS-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे से पता चलता है कि, ओबीसी, पाटीदार और उच्च जातियां ने भाजपा को जमकर वोट किया है। पाटीदारों और सवर्ण मतदाताओं की तुलना में पार्टी को ओबीसी समुदाय का थोड़ा कम समर्थन मिला है।

‘द हिंदू’ पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा को सवर्णों का 62%, पाटीदारों का 64%, कोली का 59%, दलितों का 44% और आदिवासियों का 53% वोट मिला है। भाजपा को 14% मुसलमानों ने भी वोट किया है। हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार मुसलमानों ने भाजपा को 13% कम वोट दिया है। AAP को उच्च जातियों और पाटीदारों से क्रमशः 12% और 15% वोट मिले हैं। वहीं कोली समुदाय से 16% वोट मिले हैं।

कम्युनिटीकांग्रेस-एनसीपीभाजपाआप
उच्च जातियां25 (-11)62 (+6)12 (+12)
पाटीदार18 (17)64 (+3)15 (+15)
क्षत्रिय (ओबीसी)23 (-22)46 (+1)4 (+4)
कोली24 (-7)59 (+7)16 (+16)
ओबीसी वर्ग की अन्य जातियां24 (-17)58 (+5)11 (+11)
दलित32 (-21)44 (+5)17 (+17)
आदिवासी24 (-20)53 (+8)21 (+21)
मुसलमान64 (-1)14 (-13)12 (+12)
अन्य24 (-21)63 (+13)6 (+6)
सभी आंकड़े प्रतिशत में हैं। कोष्ठक में 2017 के गुजरात विधानसबा चुनाव में प्राप्त वोट प्रतिशत हैं।

भाजपा को कैसे मिला इतना बंपर वोट?

भाजपा अपनी सोशल इंजीनियरिंग के लिए जानी जाती है। पिछले चुनाव में अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व वाले ओबीसी संगठनों, हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाले पाटीदार आंदोलन और जिग्नेश मेवाणी के नेतृत्व वाले दलित आंदोलन सहित कई जाति-समर्थित सामाजिक संगठनों ने यह सुनिश्चित किया है कि जाति प्रासंगिक बनी रहे। उन आंदोलनों ने 2017 में भाजपा को नुकसान भी पहुंचाया।

तब भाजपा 100 से भी कम सीट पाकर सिमट गई थी। लेकन इस बार भाजपा ने यह सुनिश्चित किया कि जो भी समुदाय आंदोलन चला सकता है, उसके नेता पार्टी का समर्थन कर दे। ज्यादातर मामलों में ऐसा हुआ भी। आंदोलन चलाने वाले अलग-अलग समुदायों के नेताओं ने सिर्फ भाजपा को समर्थन दिया, बल्कि उसके टिकट पर चुनाव भी लड़ा। कई जीते भी। इस कदम ने संबंधित समुदायों को शांत किया और भाजपा को लाभ मिला।