गीता प्रेस, गोरखपुर अपनी 100 वर्ष की यात्रा पूरी कर चुका है। अपने शताब्दी वर्ष में गीता प्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा सर्वसम्मति से 2021 के ‘गांधी शांति पुरस्कार’ के लिए चुना गया है। जब से इस पुरस्कार की घोषणा हुई है, तभी से गीता प्रेस चर्चा में बना हुआ है।
गीता प्रेस का संबंध विभिन्न महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ता है। मसलन, गांधी हत्या के बाद गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार को गिरफ्तार किया गया था। पत्रकार अक्षय मुकुल अपनी किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ में बताते हैं कि 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या किए जाने के बाद देश में 25,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें पोद्दार और गोयनका भी शामिल थे।
राम मंदिर के लिए बनाया माहौल
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘श्री भाईजी-एक अलौकिक विभूति’ नामक किताब में बताया गया है कि पोद्दार के गांधी के साथ बहुत करीबी संबंध थे। पोद्दार अक्सर अहमदाबाद स्थित गांधी के आश्रम जाते थे। वहीं महात्मा भी कई बार मुंबई स्थित पोद्दार के घर गए थे।
किताब में बताया है कि गीता प्रेस की पत्रिका कल्याण के संस्थापक संपादक पोद्दार ने राम जन्मभूमि आंदोलन में योगदान दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने कई ऐसे मुसलमानों को भी ढूंढ़ा था, जो खुद को इस्लाम का एक्सपर्ट बताते हुए यह साबित कर सकते थे कि मुसलमानों द्वारा राम जन्मभूमि को पूजा स्थल मानना इस्लाम के खिलाफ है।
किताब में लिखा है कि गीता प्रेस के पोद्दार ने राम जन्मभूमि आंदोलन के पक्ष में लहर पैदा करने के लिए इनमें से कुछ ‘विशेषज्ञों’ को अयोध्या भेजा था।
कैसे हुई गीता प्रेस की शुरुआत?
गोरखपुर रेलवे स्टेशन से बमुश्किल 4 किमी और राप्ती नदी से 500 मीटर की दूरी पर गीता प्रेस परिसर है। गीता प्रेस परिसर कई करीब 2 लाख वर्ग फुट में फैला हुआ है। पिछले साल वार्डों के परिसीमन में शेष नगर वार्ड का नाम बदलकर ‘गीता प्रेस नगर’ कर दिया गया था।
गीता प्रेस का मुख्य द्वारा मंदिर की तरह है, जिसका उद्घाटन साल 1955 में भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था। गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना जयदयाल गोयनका ने “त्रुटि-मुक्त भगवद गीता” के प्रकाशन के उद्देश्य से की थी। राजस्थान के चूरू के एक मारवाड़ी व्यवसायी गोयनका, बंगाल के बांकुरा में रहा करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वह गीता के ऊंचे आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति थे। गीता प्रेस की स्थापना से पहले वह कपास, मिट्टी के तेल, कपड़ा और बर्तनों का व्यापार किया करते थे।
उनका मानना था कि 700 श्लोकों वाले संस्कृत ग्रंथ (गीता) का अनुवाद किया जाना चाहिए और जनता के लिए सुलभ होना चाहिए। गोयनका भगवद गीता के इतने समर्पित पाठक थे कि जिन शहरों में वे काम के लिए जाते थे, वहां उन्होंने सत्संग (धार्मिक मंडली) का गठन किया था।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी कहते हैं कि गोयनका को जल्द ही एहसास हुआ कि उनके पास गीता का प्रामाणिक, त्रुटि रहित अनुवाद नहीं है। त्रुटि रहित गीता के प्रकाशन के लिए उन्होंने साल 1922 में कोलकाता के वणिक प्रेस से संपर्क किया। उन्हें आश्चर्य हुआ कि इस प्रयास के बावजूद त्रुटियां बनी रहीं।
तिवारी कहते हैं, “गीता का यह संस्करण भी त्रुटियों से भरा हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि जब गोयनका को यह पता चला, तो वह गुस्साए। इस पर प्रेस मालिक ने उनका मजाक उड़ाया और उन्हें अपनी खुद की प्रेस स्थापित करने के लिए कहा।”
इसके बाद गोयनका ने सत्संग में नियमित रूप से भाग लेने वाले घनश्यामदास जालान के सामने गोरखपुर में एक प्रेस स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। 29 अप्रैल, 1923 को 10 रुपये प्रति माह की किराये पर ली गई एक छोटी सी इमारत में, बोस्टन से लाई गई एक ट्रेडल प्रिंटिंग मशीन ने गीता की प्रतियां छापना शुरू कर दिया, जिसकी कीमत 1 रुपये थी।
गीता प्रेस की वेबसाइट के अनुसार प्रेस का ‘मुख्य उद्देश्य’ रियायती कीमतों पर आध्यात्मिक, नैतिक और चरित्र-निर्माण वाली किताबें और पत्रिकाएं” प्रकाशित करना है। जुलाई 1926 में प्रेस मौजूदा प्लॉट पर चला गया, जिसे 10,000 रुपये में खरीदा गया था।
आज कितना बड़ा हो चुका है गीता प्रेस?
आज गीता प्रेस परिसर कुल 1.45 लाख वर्ग फुट में फैला हुआ है। शेष भाग में आवासीय इकाइयां और दुकानें हैं। गीता प्रेस की संपादकीय टीमें गोरखपुर और वाराणसी में स्थित हैं, जबकि इसके अनुवादक आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल आदि में स्थित हैं।
1923 से प्रेस ने 42 करोड़ किताबें प्रकाशित की हैं, जिनमें श्रीमद्भगवद गीता की 16 करोड़ प्रतियां शामिल हैं, जो इसकी बेस्टसेलर बनी हुई है। इसके अलावा गीता प्रेस भारी मात्रा में रामायण, पुराण, उपनिषद, भक्त-चरित्र आदि भी छापता है, जिससे यह “दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक” बन गया है।
इसकी वेबसाइट के अनुसार, गीता प्रेस के 450 कर्मचारी प्रतिदिन पुस्तकों की 70,000 प्रतियां छापने के लिए भारत में निर्मित ‘वेव ऑफसेट’ मशीन और जर्मनी, जापान और इटली के अन्य उपकरणों पर काम करते हैं।
2022-23 में, गीता प्रेस ने लगभग 111 करोड़ रुपये मूल्य की 2.40 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित कीं। गीता प्रेस की सबसे सस्ती किताब हनुमान चालीसा है, जिसकी कीमत सिर्फ 2 रुपये प्रति कॉपी है, इसकी कुछ किताबों की कीमत 2,500 रुपये भी है।
प्रधानमंत्री ने की गीता प्रेस की तारीफ
सात जुलाई (शुक्रवार) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 प्रमुख पुराणों में से एक शिव पुराण के एक विशेष संस्करण के विमोचन के लिए खुद गीता प्रेस पहुंचे। शिव पुराण लंबे समय से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।
पीएम मोदी द्वारा अनावरण किए गए विशेष संस्करण में शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की 225 से अधिक तस्वीरें हैं। 1,500 पेज के इस विशेष संस्करण की कीमत 1,500 रुपये रखी गई है। विशेष संस्करण की एक प्रति हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उपहार में दी गई थी।
गीता प्रेस की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “गीता प्रेस विश्व का ऐसा इकलौता प्रिंटिंग प्रेस है, जो सिर्फ संस्था नहीं, बल्कि जीवंत आस्था है। मानव मूल्यों को बचाने के लिए गीता प्रेस जैसी संस्थाएं जन्म लेती हैं। गीता प्रेस का कार्यालय करोड़ों-करोड़ लोगों के लिए किसी मंदिर से कम नहीं है। इसके नाम और काम में भी गीता है। जहां गीता है वहां साक्षात् कृष्ण भी हैं। वहां करुणा है, ज्ञान भी है। वहां विज्ञान का शोध भी है। यहां सब वासुदेवमय है।”
गीता प्रेस को क्यों दिया जा रहा है गांधी शांति पुरस्कार?
गीता प्रेस के लिए ‘गांधी शांति पुरस्कार’ की घोषणा करते हुए संस्कृति मंत्रालय ने 18 जून को एक ट्वीट किया था, जिसमें लिखा था, “माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले निर्णायक मंडल द्वारा वर्ष 2021 के Gandhi Peace Prize के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर का चयन किया गया है। सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा दे रही इस संस्था को पुरस्कार मिलने की शुभकामनाएं।”