गुवाहाटी हाईकोर्ट ( Gauhati High Court) ने हाल ही में नागालैंड सरकार (Nagaland Government) के उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया, जिसमें प्रदेश में कुत्ते के मांस यानी डॉग मीट की खरीद-बिक्री पर रोक लगाई गई थी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2011 पर भी सवाल उठाए।
सरकार के किस नोटिफिकेशन पर विवाद?
नागालैंड सरकार ने 4 जुलाई 2020 को डॉग मीट पर बैन के लिए नोटिफिकेशन जारी किया। यह नोटिफिकेशन राज्य के चीफ सेक्रेटरी की तरफ से जारी किया गया था और कुत्ते के मांस की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। नोटिफिकेशन में कॉमर्शियल और रेस्टोरेंट्स जैसी जगहों पर भी डॉग मीट की बिक्री प्रतिबंधित की गई थी।
नागालैंड सरकार ने यह कदम फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के साल 2014 के उस सर्कुलर के बाद उठाया था, जिसमें कहा गया था कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड रेगुलेशन, 2011 (Food Products Standards and Food Additives) में जिन जानवरों का जिक्र है, उसके अलावा किसी अन्य प्रजाति के जानवर का वध पूरी तरह प्रतिबंधित है।
अधिनियम में क्या कहा गया है?
फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड रेगुलेशन, 2011 के नियम 2.5.1 (ए) में ”जानवर” को भेड़ परिवार (Ovines), बकरी परिवार (Caprines) सुअर परिवार (Suillines), मवेशी (Bovine), और कुक्कुट व मछली के रूप में परिभाषित किया गया है।
हाईकोर्ट ने क्या-क्या कहा?
हाईकोर्ट में जस्टिस मारली वानकुंग (Justice Marli Vankung) की सिंगल जज की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते कहा कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड रेगुलेशन, 2011 में डॉग यानी कुत्ते का नाम नहीं होना चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि पूर्वोत्तर भारत के कुछ इलाकों में ही डॉग मीट खाया जाता है। इस स्थिति में लिस्ट में इसका नाम शामिल करना अकल्पनीय होता।
हाईकोर्ट ने कहा कि नागा इलाकों में आज भी कुत्ते के मांस चाव से खाया जाता है और यह सदियों से चला आ रहा है। हाईकोर्ट ने The Angami Nagas, The AO Nagas और The Rengma Nagas जैसी किताब और दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि नागालैंड के तमाम जनजातीय समूहों में सदियों से डॉग मीट के सेवन का जिक्र मिलता है।
बचाव पक्ष ने क्या दलील दी?
सुनवाई के दौरान एनिमल्स एंड ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल/इंडिया ( Animals and Humane Society International/India ) की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि जिस तरीके से कुत्तों को तस्करी करके लाया जाता है वह चिंता का विषय है। कुत्तों के पैर बांध दिये जाते, मुंह पर भी रस्सी बांध दी जाती है और बोरी में भर दिया जाता है। कई-कई दिनों तक कोई खाना-पानी भी नहीं दिया जाता है। यह जानवरों से क्रूरता की श्रेणी में आता है।
हाईकोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया की संस्था की तरफ से कुत्तों के साथ बर्बरता की जो तस्वीरें साझा की गई थीं, उससे क्रूरता जाहिर हो रही है, लेकिन इससे डॉग मीट पर बैन को जायज नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जानवरों के खिलाफ बर्बरता के मामले में आईपीसी का सहारा लिया जा सकता है।