Diwali 2022: भारत के सम्पन्न व संभ्रांत वर्ग के बीच आतिशबाजी की परम्परा बहुत पुरानी है। त्योहार, विवाह उत्सव, खेल और युद्ध में पटाखों के इस्तेमाल के साक्ष्य 15वीं सदी से मिलने लगते हैं। यानी इस भू-भाग पर पटाखों का आगमन मुगलों से पहले हुआ था।

भारत में आतिशबाजी के इतिहास पर लिखी पीके गौड़ की किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ फायरवर्क्स इन इंडिया बिटवीन एडी 1400 एंड 1900’ से पता चलता है कि 1518 में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार की शादी में जोरदार आतिशबाजी की हुई।

इसी तरह अनेक सदियों पुरानी चित्रकारी में भी आतिशबाज़ी का दृश्य मिलता है। दारा शिकोह की बारात को दृश्यमान बनाती एक पेंटिंग बहुत मशहूर है। उस पेंटिंग में घोड़े पर बैठे दारा शिकोह, बाराती, स्वागतकर्ता और आतिशबाजी से आकाश में बनी आकृतियों को उकेरा गया है। हिंदू, मुस्लिम व अन्य धर्म के त्योहारों में भी इसका इस्तेमाल होता आया है।

लेकिन समय के साथ आतिशबाजी के मनोरम दृश्य प्रदूषण और बीमारी के पर्याय बन चुके हैं। आलम यह है देश की सर्वोच्च अदालत को कितनी बार आतिशबाजी पर नियंत्रण के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा है। सरकारों को प्रतिबंध और जुर्माने का ऐलान करना पड़ा है। चिकित्सकों को एडवाइजरी जारी करनी पड़ती है।

देश की राजधानी दिल्ली का वातावरण सर्दियों के शुरू होते हुए जहरीला होने लगता है। इसमें वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुए का दोष तो होता ही है। दशहरा और दिवाली की आतिशबाजी से स्थिति अधिक गंभीर हो जाती है।

कितना खतरनाक होता है आतिशबाजी का धुआं?

दीवाली के बाद बम-पटाखों-फुलझड़ियों का धुआं आसमान के रंग और हवा की गुणवत्ता दोनों को बिगाड़ देता है। वाहनों और फैक्ट्रियों से अटे शहरों में इसका असर अधिक नजर आता है। बावजूद इसके समाज का एक वर्ग आतिशबाजी को धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करने से जोड़ता है।

पटाखों में सल्फर डाइऑक्साइड, कैडमियम, कॉपर, लेड, नाइट्रेटक्रोमियम जैसे पदार्थों का इस्तेमाल होता है। उनसे फेफड़ों,  त्वचा, आंखों को गंभीर नुकसान होता है। श्वसन तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है।

कौन पटाखा कितना खतरनाक?

ध्वनि प्रदूषण के लिहाज से तीव्र ध्वनि पटाखे अधिक खतरनाक होते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण बिलकुल भी आवाज न करने वाले सांप की गोली से होता है। छोटे बच्चे सबसे ज्यादा सांप की गोली को ही जलाते हैं। उसमें से राख और धुआं निकलता है। इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सांप टैबलेट पीएम 2.5 के उच्चतम स्तर का उत्सर्जन करता है। एक सांप टैबलेट को जलाना 462 सिगरेट को पीने जितना नुकसान पहुंचाता है।

सिर्फ 9 सेकेंड तक जलने की क्षमता रखने वाला साँप टैबलेट सर्वोच्च स्तर के PM 2.5 (64,500 mcg/m3) का उत्सर्जन करता है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक से 2,560 गुना अधिक है। इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर लड़ी बम है। 1000 पटाखों से लैस लड़ी बम को जलाना 277 सिगरेट का सेवन करने के बराबर होता है। बच्चों को प्यार दिए जाने वाला एक फुलझड़ी 74  सिगरेट पीने के बराबर नुकसान पहुंचाता है। एक अनार 34 सिगरेट पीने जितना हानिकारक होता है।