चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की बेंच ने एक लॉ स्टूडेंट को कड़ी फटकार लगाई। छात्र की पीआईएल खारिज करते हुए बेंच ने कहा कि अगर वह छात्र नहीं होता तो सुप्रीम कोर्ट उसपर जुर्माना भी लगाती। दरअसल, सोमवार (4 जुलाई) को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच के सामने संवैधानिक प्रावधानों से ‘पुरुष’ शब्द हटाने की मांग वाली एक अर्जी पहुंची।
याचिकाकर्ता छात्र ने दलील दी कि संविधान में तमाम पदों के लिए ‘पुरुष’ पर्यायवाची शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जो लिंग के आधार पर भेदभाव है और मूलभूत अधिकारों का हनन भी करता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) इस तर्क से सहमत नहीं हुए। उन्होंने छात्र से सवाल किया, ‘यहां पीआईएल लगाने के बजाय आखिर लॉ स्कूल में पढ़ाई क्यों नहीं की?’
चेयरमैन की जगह चेयरपर्सन हो तो क्या महिलाएं योग्य नहीं?
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे संवैधानिक प्रावधानों से जेंडर स्पेसिफिक शब्द हटाने पर सवाल खड़ा किया और कहा कि अब तमाम संवैधानिक पदों के नाम में जेंडर न्यूट्रल शब्द जोड़े जा रहे हैं, जैसे चेयरपर्सन। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है, लोग समझते हैं कि चेयरमैन का मतलब सिर्फ पुरुष ही होता है…। इस पर सीजेआई ने ने कहा कि यदि चेयरमैन की जगह चेयरपर्सन कर दिया तो क्या इसका मतलब यह है कि महिलाएं इस पद के लिए योग्य नहीं हैं?
CJI ने सवाल किया- ‘क्या अब आप संवैधानिक प्रावधान खत्म कर देंगे? नए प्रावधान में चेयरपर्सन का जिक्र है। यदि पुराने प्रावधान में चेयरमैन है तो क्या इसका मतलब है कि किसी महिला की इस पद पर नियुक्ति नहीं होगी। इससे कौन से मूलभूत अधिकार का हनन हो रहा है? जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरसिम्हा की बेंच ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि अगर याचिकाकर्ता कानून का छात्र नहीं होता तो कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए उस पर जुर्माना भी लगाया जाता।
संविधान में ‘पुरुष’ सूचक शब्दों का क्या है मतलब?
भारतीय संविधान में तमाम संवैधानिक पदों या प्रावधान के लिए “पुरुष” सूचक शब्द (Male Pronoun) इस्तेमाल किये गए हैं। हालांकि, संविधान में लिंग से संबंधित शब्दों का प्रयोग व्यक्ति की जाति या लिंग से नहीं है। ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ (Duke University School of Law) में कानून के प्रोफेसर डैरेल एएच मिलर (Darrell A.H. Miller) अपने एक आर्टिकल में लिखते हैं कि दुनियाभर के संविधान में तमाम रूपक (Metaphors) इस्तेमाल किये गए हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि किसी रूपक का मतलब भी वही हो, जो लिखा गया है। उसके अलग-अलग संदर्भ हो सकते हैं।
एक शब्द के कई मतलब और अर्थ
उदाहरण के लिए संविधान में कई जगह आपको We, They, He जैसे शब्द मिलेंगे लेकिन इसका मतलब सपाट नहीं है, बल्कि ये हमारे संवैधानिक के चरित्र को दर्शाते हैं और प्रत्येक Constitutional Pronouns का संदर्भ भी अलग-अलग है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत ही ‘We The People of India…’ से होती है। यहां We का इस्तेमाल किसी स्पेसिफिक जेंडर के लिए नहीं हुआ है, बल्कि लोगों के समूह के लिए है।
भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार और सुरक्षा की गारंटी दी गई है, और यह बिना किसी लिंग, जाति, धर्म, स्थान या जन्म के आधार पर प्रदान किया गया है। इसी तरह, संविधान ने सभी नागरिकों के बुनियादी मूलभूत अधिकारों की रक्षा की है, जिसमें- जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, स्वतंत्रता के साथ सोचने, समानता, धर्मनिरपेक्षता जैसे अधिकार शामिल हैं। इनकी व्याख्या के क्रम में अलग शब्द इस्तेमाल किये गए हैं।