सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नज़ीर (Justice S Abdul Nazeer) को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। विपक्ष जस्टिस नज़ीर की नियुक्ति पर सवाल उठा रहा है, न्यायपालिका को खतरे में बता रहा है। जस्टिस नज़ीर अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई करने वाले पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे। पीठ ने साल 2019 में राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला सुनाया था।    

जस्टिस नज़ीर के अलावा पीठ में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (former CJI Ranjan Gogoi), न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे (Justice SA Bobde),न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (वर्तमान सीजेआई), न्यायाधीश अशोक भूषण (Justice Ashok Bhushan) थे। पांच जजों से चार (जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस बोबडे, जस्टिस भूषण और जस्टिस नज़ीर) अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। आइए जानते हैं कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाने वाले जज अब क्या कर रहे हैं?

रिटायर होने के 4 माह बाद राज्यसभा पहुंचे गोगोई

साल 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया तब जस्टिस रंजन गोगोई उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। साथ ही फैसला सुनाने वाली पांच सदस्यीय पीठ के हिस्सा भी थे। वह 17 नवंबर, 2019 को एक वर्ष से अधिक समय तक सीजेआई रहने के बाद सेवानिवृत्त हुए।

रिटायरमेंट के चार महीने बाद ही जस्टिस गोगोई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। जस्टिस गोगोई से पहले भी सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीश (पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्र, जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्ला और जस्टिस बहरुल इस्लाम) राज्यसभा में सांसद के रूप में बैठ चुके थे। लेकिन उन जजों और जस्टिस गोगोई के राज्यसभा जाने में फर्क है। क्योंकि जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के पहले ऐसे न्यायाधीश हैं, जिन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया।

केंद्र ने जस्टिस भूषण को बनाया NCLAT को अध्यक्ष

जस्टिस अशोक भूषण जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे। रिटायरमेंट के चार महीने बाद ही केंद्र सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) का अध्यक्ष बना दिया। उनकी नियुक्ति चार साल के लिए की गयी थी।

बता दें कि अशोक भूषण को 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था। उससे पहले वह केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे।

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं जस्टिस बोबडे

जस्टिस रंजन गोगोई के बाद जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे। वह भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश थे। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बोबडे का आठ साल का कार्यकाल रहा। वह 23 अप्रैल, 2021 को सेवानिवृत हुए थे।

रिटायर होने के बाद उन्होंने कोई आधिकारिक सार्वजनिक पद नहीं संभाला। वह मुंबई के महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और नागपुर के महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के चांसलर के रूप में कार्यरत हैं।

50वें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़

अयोध्या विवाद में फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने नवंबर 2022 में भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद संभाला था। सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल यानी नवंबर 2024 तक का है।

राज्यपाल बना दिए गए जस्टिस नज़ीर

जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे। रिटायरमेंट के महज एक माह बाद ही उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया है। रिटायरमेंट से ठीक पहले जस्टिस नज़ीर उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने 2016 की नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया था।

पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस नज़ीर के अलावा जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थीं। जस्टिस नागरत्ना के अलावा चार जजों ने नोटबंदी को सही ठहराया था।  

अरुण जेटली और नितिन गडकरी की राय

किसी जज को रिटायर होने के कितने दिन बाद पद दिया जाए, इस बारे में कोई कानून नहीं है लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी का मत है कि जजों के रिटायरमेंट और नई नियुक्ति के बीच दो साल का गैप होना चाहिए।

वहीं दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली का मानना था कि रिटायरमेंट के पहले दिए जाने वाले फैसले रिटायरमेंट के बाद की नौकरी से प्रभावित होते हैं। (पूरी खबर पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)