मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त (सीईसी) की न‍ियुक्‍त‍ि के ल‍िए केंद्र सरकार ने प‍िछले साल जो कानून बनाया था, वह सुनवाई के ल‍िए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कांग्रेस नेता जया ठाकुर और संजय नारायणराव मेश्राम ने इस कानून पर तत्‍काल स्‍टे की मांग करते हुए इसे चुनौती दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 जनवरी, 2024) को स्‍टे लगाने से मना करते हुए याच‍िका को सुनवाई के ल‍िए मंजूर कर ल‍िया। नए कानून में मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त व अन्‍य चुनाव आयुक्‍तों की न‍ियुक्‍त‍ि करने वाली कम‍िटी से सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश (सीजेआई) को बाहर रखा गया है। यह कानून द‍िसंबर, 2023 के शीतकालीन सत्र में पार‍ित हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट ने अनूप बर्नवाल बनाम केंद्र सरकार केस में फैसला देते हुए कहा था क‍ि चुनाव आयुक्‍तों या मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त न‍ियुक्‍त करने के ल‍िए बनने वाली कम‍िटी में सीजेआई को भी रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इलेक्‍शन कमीशन जजमेंट के नाम से ज्‍यादा जाना जाता है। कोर्ट ने कहा था क‍ि जब तक सरकार आर्ट‍िकल 324 (2) के तहत कानून नहीं बनवा लेती है, तब तक चुनाव आयुक्‍तों व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की न‍ियुक्‍त‍ि एक सम‍ित‍ि के जर‍िए और राष्‍ट्रपत‍ि की सलाह से की जाए। इस सम‍ित‍ि में प्रधानमंत्री, नेता प्रत‍िपक्ष (ज‍िनके नहीं होने की स्‍थ‍ित‍ि में लोकसभा में सबसे बड़ी व‍िपक्षी पार्टी का नेता) और भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश को रखा जाए। 

Ashwani Kamar
किताब विमोचन की तस्वीर

यूपीए सरकार के कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया गलत 

यूपीए सरकार में कानून मंत्री रहे और वर‍िष्‍ठ वकील अश्‍व‍िनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई सवाल उठाए हैं। उन्‍होंने अपनी हाल‍िया क‍िताब A Democracy in Retreat Revisiting the Ends of Power में ल‍िखा है क‍ि इस फैसले पर सवाल उठाने के कई आधार बनते हैं।

अश्‍वि‍नी कुमार की राय में सुप्रीम कोर्ट ने आर्ट‍िकल 324 (2) के संदर्भ में संव‍िधान सभा में हुई बहस की मूल संवैधान‍िक भावना को समझने में गलती की। उनके मुताब‍िक संव‍िधान में ल‍िखि‍त शब्‍दों के ऊपर कानून बनाने के क्रम में हुई बहस को ज्‍यादा तरजीह द‍िया जाना सही नहीं है। संव‍िधान के अनुच्‍छेद 324 (2) में कहा गया है क‍ि संसद द्वारा कानून बनाए जाने तक चुनाव आयुक्‍तों और मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की न‍ियुक्‍त‍ि मंत्र‍िपरिषद की मदद व सलाह से राष्‍ट्रपत‍ि करेंगे।

क‍िताब में अश्‍व‍िनी कुमार यह भी बताते हैं क‍ि सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक तरह से उसके द्वारा गलत क्षेत्राध‍िकार में प्रवेश करने का भी मामला है। उनकी राय में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भव‍िष्‍य में बनने वाले एक कानून के ल‍िए न्‍यायपाल‍िका की ओर से एक तरह का अप्रत्‍याश‍ित द‍िशान‍िर्देश था, जो संसदीय लोकतंत्र के ल‍िहाज से सही नहीं है क्‍योंक‍ि कानून बनाना पूरी तरह व‍िधाय‍िका का व‍िशेषाध‍िकार है।

अश्‍व‍िनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक तरह से संव‍िधान के अनुच्‍छेद 324 (2) को नए स‍िरे से ल‍िखा जाना बताया है और कहा है क‍ि ऐसे कदम से संस्‍थानों के बीच टकराव की स्‍थ‍ित‍ि बनने का खतरा हो सकता है। 

क्‍या है नए कानून में 

1991 के कानून की जगह लाए गए इस कानून के मुताब‍िक चुनाव आयुक्‍त या मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की न‍ियुक्‍त‍ि एक चयन सम‍ित‍ि की स‍िफार‍िश के आधार पर राष्‍ट्रपत‍ि द्वारा की जाएगी। चयन सम‍ित‍ि में प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री, नेता प्रत‍िपक्ष (या लोकसभा में सबसे बड़ी व‍िपक्षी पार्टी का नेता) होंगे।

इस सम‍ित‍ि के सामने एक सर्च कम‍िटी की ओर से संभाव‍ित उम्‍मीदवारों के नाम पेश क‍िए जाएंगे। सर्च क‍िमटी की अध्‍यक्षता कैब‍िनेट सच‍िव करेंगे। उम्‍मीदवार वही हो सकते हैं जो कैब‍िनेट सच‍िव के बराबर रैंक के पद पर हों या रह चुके हों। एक सदस्‍य की गैर मौजूदगी में भी कम‍िटी द्वारा की गई स‍िफार‍िश मान्‍य होगी। चुने गए उम्‍मीदवारों का वेतन भी कैब‍िनेट सच‍िव के बराबर होगा। पहले यह सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर हुआ करता था।

आपत्‍त‍ि क्‍या है 

नए कानून पर व‍िरोध जताने वालों का तर्क है क‍ि चयन में पूरी तरह सरकार हावी रहेगी। और कुछ हद तक बाद में भी, क्‍योंक‍ि क्‍योंक‍ि कैब‍िनेट सच‍िव का वेतन सरकार तय करती है, जबक‍ि जजों का वेतन संसद में बने कानून से तय होता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा-शर्तें और कार्याकाल) विधेयक, 2023 की धारा 7 और 8 को चुनौती देने वाले कांग्रेस नेताओं का भी यही तर्क है क‍ि नए कानून में चुनाव आयुक्‍तों व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की न‍ियुक्‍त‍ि के मामले में केंद्र सरकार को ज्‍यादा अध‍िकार दे द‍िए गए हैं जो चुनाव आयोग की स्‍वायत्‍तता को प्रभाव‍ित करेगी। उन्‍होंने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्‍लंघन भी बताया है। अब सुप्रीम कोर्ट अप्रैल में इस पर सुनवाई करेगा।