सुनील दत्त ने हिंदी फ़िल्म जगत को एक से बढ़कर एक फिल्में दी। 1963 में आई फिल्म ‘मुझे जीने दो’ भी उन्हीं में एक थी। इस फिल्म में उन्होंने ठाकुर जरनाल सिंह डाकू का रोल किया था। फिल्म की शूटिंग चंबल के बीहड़ों में हुई जहां अक्सर डाकुओं का डर लगा रहता था। इसलिए सुनील दत्त फ़िल्म के सभी कास्ट को कहीं आने जाने से अक्सर डांटते रहते थे। फिल्म में काम कर रहीं अभिनेत्री वहीदा रहमान ने इस बात की शिकायत उनकी पत्नी नरगिस से कर दी थी कि ये हिटलर बन गए हैं।
वहीदा रहमान ने इस दिलचस्प किस्से का जिक्र जी टीवी के शो ‘जीना इसी का नाम है’ में किया था। उन्होंने बताया था, ‘हमें वहां टेंट में रहना पड़ रहा था। तो ये जनाब (सुनील दत्त) ठाकुर जरनाल सिंह का रोल क्या कर रहे थे लाइफ में भी वही बन गए थे। न कभी मुस्कुराना न हंसना। कौन कहां गया, कहां आया, हमेशा उसी जोश में रहते थे।’
कुछ समय बाद नरगिस 2 साल के संजय दत्त को लेकर फिल्म के सेट पर आ गईं थीं। तब उनसे वहीदा रहमान ने शिकायत की थी। उन्होंने बताया था, ‘आते ही मैंने उनसे शिकायत की- नरगिस जी, जरा अपने मियां को समझाइए। डाकू का क्या रोल कर रहे हैं, लाइफ में भी हिटलर बन गए हैं। फिर नरगिस कहने लगीं नहीं, नहीं। बॉम्बे में सब कह रहे हैं डाकुओं का इलाका है आप कहां पूरी यूनिट को लेकर चले गए। बेचारे! तुम्हें समझना चाहिए।’
नरगिस दत्त आजीवन अपने पति को इसी तरह समझती रहीं, हर मोड़ पर उनका साथ दिया और उन्होंने अपने बेटे को खूब लाड़-प्यार दिया। कहा जाता है कि इसी प्यार के कारण संजय दत्त कम उम्र में ही बुरी आदतों के शिकार हो गए थे। वो बहुत छोटी उम्र से ही सिगरेट पीने लगे थे और बड़े होते-होते सभी तरह के ड्रग्स भी करने लगे थे।
संजय दत्त को इसके बाद अमेरिका के नशा मुक्ति केंद्र भेज दिया गया था। नरगिस की बहुत इच्छा थी कि वो अपने बेटे की पहली फिल्म देखें लेकिन बीमारी के कारण फिल्म रिलीज से कुछ दिनों पहले ही उनका निधन हो गया।
नरगिस जब कैंसर से जुझ रही थीं और विदेश में उनका इलाज चल रहा था तब एक वक्त ऐसा आया जब उनके बचने की कोई उम्मीद बाकी नहीं रही। डॉक्टर्स ने सुनील दत्त से कहा कि उनका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा दिया जाए क्योंकि अब वो नहीं जी सकतीं। लेकिन सुनिल दत्त ने डॉक्टर्स की बात नहीं मानी और नरगिस उसी हालत में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रहीं। 3 मई 1981 को नरगिस का निधन हो गया था।