किस्सा 1969 का है। अभिनेता- निर्माता-निर्देशक मोहन कुमार कन्यादान (शशि कपूर-आशा पारेख) रिलीज कर चुके थे और अपनी नई फिल्म की तैयारियों में लगे थे। उन्होंने फिल्म के लिए दक्षिण भारत से आकर मुंबई में संघर्ष कर रही एक नवोदित अभिनेत्री को साइन किया था, जो उस समय कुछ और फिल्मों में भी काम कर रही थी। फिल्म के लिए हीरो उन्होंने दो साल पहले ही बुक कर लिया था, जो उनके मित्र का लड़का था। उसे दो साल के अभिनय का कोर्स करने के लिए पुणे फिल्म संस्थान भेजा गया था, जहां से वह अभिनय में गोल्ड मैडल लेकर लौटा था। मोहन सहगल उस हीरो के साथ दक्षिण से आई हीरोइन को लांच कर रहे थे। साथ में कुछ नए कलाकार भी थे।

फिल्म के संगीत पक्ष के लिए बैठकें होने लगी थीं। संगीत का जिम्मा चाचा-भतीजे सोनिक-ओमी की जोड़ी को सौंपा गया था। गीत लिखने का काम वर्मा मलिक का था। एक दिन शूटिंग के दौरान मोहन सहगल ने अपने संगीतकार और गीतकार को सिचुएशन बताते हुए कहा कि इस पर एक फड़कता हुआ नशीला गाना लिखना है। यह हीरोइन की तारीफ में लिखा जाने वाला गाना होगा। मोहन सहगल ने वर्मा मलिक और सोनी-ओमी से कहा कि अगर गाना लिखने में किसी तरह की प्रेरणा की जरूरत हो तो सेट पर हीरोइन है, जाकर मिल लें।
वर्मा मलिक को गाना लिखने के लिए हीरोइन को देखने की जरूरत नहीं थी। बावजूद इसके वह देखना चाहते थे कि सहगल किस हीरोइन का परिचय कराने जा रहे हैं और वह देखने में कैसी लगती है। दोनों सेट पर आए। इधर-उधर नजरें दौड़ाने के बावजूद दोनों को वहां हीरोइन नजर नहीं आई। सामान्य-सी नजर आने वाली एक लड़की जरूर सेट पर थी, मगर वह हीरोइन जैसी नहीं लग रही थी।

इसी बीच मोहन सहगल सेट पर आए, तो मलिक ने पूछा कि हीरोइन तो कहीं नजर नहीं आ रही है। सहगल ने आवाज देकर हीरोइन को बुलाया और उनसे परिचय करवाया। वह एक सांवली-सी लड़की थी, जिसे देखकर वर्मा मलिक को समझ नहीं आया कि इस हीरोइन से प्रेरणा लेकर वह फड़कता हुआ नशीला गीत कैसे लिखें। हीरोइन की कमर पर झूलनेवाली लंबी चोटी जरूर उनका ध्यान आकर्षित कर रही थी।  वर्मा मलिक लौटे तो उनके दिमाग में हीरोइन की कमर पर झूलती चोटी के अलावा कुछ और नहीं आ रहा था। इसी को आधार बना कर उन्होंनें गाना लिखा और वह गाना था- कान में झुमका चाल में ठुमका कमर पे चोटी लटके, हो गया दिल का पुर्जा पुर्जा लगे पचासी झटके ओ तेरा रंग है नशीला अंग अंग है नशीला…’

मोहन कुमार की यह फिल्म ‘सावन भादों’ नाम से रिलीज हुई। फिल्म में गाना नदी, खेत आदि मनोहारी लोकेशनों पर फिल्माया गया और वह इतना चर्चित हुआ कि लोग उस गाने को सुनने देखने के लिए फिल्म देखने जाने लगे। फिल्म ने पूरे देश में धूम मचा दी। लोगों की जुबान पर ‘लगे पचासी झटके…’ ऐसा चढ़ा कि उसके दम पर फिल्म ने 35 शहरों में सिल्वर जुबिली मनाई और इस फिल्म की सांवली-सी हीरोइन भानुरेखा गणेशन देखते-ही-देखते मुंबई फिल्मजगत में छा गई। पुणे फिल्म संस्थान से गोल्ड मैडल लेकर आए हीरो नवीन निश्चल ने इस पहली फिल्म ‘सावन भादो’ के दम पर छह फिल्में एक साथ साइन कर डालीं। सांवली-सी, मोटी नजर आने वाली अभिनेत्री रेखा समय के साथ इतनी आकर्षक और खूबसूरत बन गई कि वाकई उनसे प्रेरणा लेकर कोई गीतकार सुंदर गीत रच सके।