राजीव सक्सेना
ओटीटी मंच पर प्रसारित हो रहीं वेब शृंखलाओं और फिल्मोंं के कथानक में नएपन के साथ ही प्रस्तुति की रोचकता भी दर्शकों को लगातार आकर्षित कर रही है। सीरीज ‘गान गेम’ का नया भाग, नई सीरीज ‘डा अरोड़ा’ और फिल्म ‘अर्ध ’ ने विगत दिनों ओटीटी पर एक बार फिर विविधता की परिभाषा रची है।
डा अरोड़ा
सोनी लिव पर इस सप्ताह प्रदर्शित वेबसीरीज ’ डा अरोड़ा ’, भारतीय समाज में वर्जित माने जाने वाले विषय से जरूर जुड़ी हुई है लेकिन सहज-सरल प्रस्तुति ने, वर्जनाओं को ध्वस्त करने में योगदान दिया है। शहरों, गांवों, कस्बों में आम यौन समस्याओं के समाधान के लिए कई बरस से खास चिकित्सकों के दवाखाने लोगों का ध्यान खींचते रहे हैं। अमूमन इस तरह के दवाखानों के इश्तेहार, शहरों में रेल पटारियों के आसपास की दीवारों पर पेंटिंग से लेकर सार्वजानिक शौचालयों, सिनेमाघरों के आसपास अधिकतर देखे जाते रहे हैं।
कहानी उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सप्ताह के अलग-अलग दिन क्लिनिक चलाने वाले डा अरोड़ा की है, जिन्हें मरीज बतौर ग्राहकों की कभी कमी नहीं रहती। खुद डाक्टर साहब की निजी जिंदगी भी यौन असंतुष्टि से पीड़ित रही है। लिहाजा वे इसी के निराकरण को पेशा बनाने का फैसला लेते हैं। साजिद अली और अर्चित कुमार के निर्देशन में सबसे प्रभावशाली भूमिका है राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित अभिनेता कुमुद मिश्रा की। दूसरों के जीवन में खुशियां लाने वाले स्वयं प्यार से वंचित चिकित्सक के किरदार को कुमुद मिश्रा ने शिद्दत से जिया है। विद्या मालवड़े, संदीपा धर, विवेक मुशरान, अजितेश गुप्ता और राज अर्जुन की भूमिका भी उल्लेखनीय हैं। इस शृंखला को रोचक बनाने में इम्तियाज़ अली और साजिद अली के साथ ही हिंदी के सुपरिचित लेखक दिव्यप्रकाश दुबे और दिव्या जोहरी का भी योगदान ज़िक्र के काबिल है।
गान गेम
कोरोना काल में प्रदर्शित हुई वूट की वेबसीरीज ‘गान गेम’ का दूसरा भाग भी पहले भाग की तरह दिलचस्प कथानक को खूबसूरत तरीके से पेश करता है। हालांकि पटकथा में कई जगह अचानक आते-जाते रहे भटकाव ने दर्शकों को उलझन में डालने में कसर नहीं छोड़ी है। गुजराल परिवार का चश्मोचिराग साहिल एक घोटाले में फंस कर शहर छोड़ने में कामयाब जरूर हो जाता है, लेकिन उसे बचाने में, उसके पिता व्यवसायी राजीव गुजराल की तकरीबन हर चालाकी नाकाम होती दिखाई देती है। राजीव गुजराल, बेटे की हत्या का शिगूफा छोड़कर, आरोप उसी की पत्नी पर मढ़ने से नहीं चूकता। गुजराल परिवार की बहू से सच्चाई जानकर सीबीआइ अधिकारी, बहू सुहानी गुजराल की हत्या का सुनियोजित ड्रामा गढ़ती है और उसके संदेह में पूरे गुजराल परिवार को जाँच की जद में रखती है।
राजीव गुजराल और उसकी बेटी अमारा पर शक की सुई घुमाई जाती है। पिता बेटी और खुद को बचाने की गर्ज़ से बेटे साहिल के जिंदा होने की बात कुबूल कर लेता है और इस तरह मामले का अंत होता है। एक भगोड़े मुजरिम को पकड़ने के लिए, किसी की बाकायदा हत्या का नाटक रचा जाना, तमाम सबूत बनाना गले नहीं उतरता पर रोचकता बनी रही इसकी तारीफ जरूर की जा सकती है। संजय कपूर का फिल्मी सफर कोई खास उल्लेखनीय नहीं रहा, लेकिन वेब शृंखला के ज़रिये ये उनकी सुखद वापसी मानी जा सकती है। मुख्य भूमिकाओं में उनके अलावा श्रिया पिलगांवकर, श्वेता त्रिपाठी, हरलीन सेठी, दिव्येन्दु भट्टाचार्य, अर्जुन माथुर, इंद्रनील सेनगुप्ता, रुखसार और लुबना सलीम का अभिनय प्रसंशनीय है।
अर्ध
अभिनेता राजपाल यादव ने जी फाइव पर प्रदर्शित फिल्म ‘अर्ध’ के माध्यम से एक बार फिर खुद को बहुमुखी कलाकार साबित कर दिखाया है। कुछ बरस पहले फिल्म ‘अंडरट्रायल’ में ज़बरदस्त भूमिका के बाद उनकी भूमिका इस फिल्म में भी चुनौती से कम नहीं रही। मुंबई की तंगहाल बस्ती में रहकर सिनेमा की दुनिया में किसी तरह खुद की अभिनेता बतौर पहचान बनाने के लिए संघर्षरत कलाकार का विफलता के कारण, एक बड़ा लेकिन जोखिम भरे निर्णय लिए जाने की कहानी नयापन लिए हुए है।
28 वर्ष के पलाश मुछाल ने एक समर्थ अभिनेता का चयन करके सर्वथा अनूठा कथानक रचा है, जिसमें, कई सारी चयन प्रक्रियाओं में विफल होने पर राजपाल पत्नी की सहमति और मदद से मुंबई की सड़कों के ट्रैफिक सिग्नल पर घूम-घूम कर पैसा कमाने वाले नकली किन्नर का काम अपना लेता है। अड़ोस-पड़ोस में, किसी फिल्म में किन्नर की भूमिका मिलने का प्रचार कर राजपाल, असली किन्नरों से खुद को बचाते हुए, अंतत: स्वयं के उसी अर्ध स्वरूप को नियति और ज़िंदगी की गाड़ी खींचने का आधार मानने को मजबूर होते हैं।
अभिनेत्री रुबीना दिलेक और हितेन तेजवानी की भूमिका उम्दा रही है। पार्श्वगायिका पलक मुछाल के भाई, बचपन से उनके साथ चेरिटी शो करने वाले पलाश को लेखन और निर्देशन में पाकर हैरत होती है। उनके संगीतबद्ध किए गीत और संगीत प्रभावित करते हैं।
