राजीव सक्सेना
सिनेमा और टेलीविजन धारावाहिकों के तकरीबन संक्रमण काल में ओटीटी की वेब शृंखलाएं यकीनन आम दर्शकों के लिए ही नहीं, निर्माताओं और अभिनेताओं के लिए भी रामबाण या संजीवनी बूटी साबित हो रही हैं। महानगरों की व्यस्त जिंदगी, आपराधिक गतिविधियों से इतर, मझोले शहरों के मध्यवर्गीय परिवारों से जुड़ीं कहानियां, दर्शकों को अपनी-सी लगती हुई लगातार आकर्षित कर रही हैं।
घर वापसी : अपने आंगन की कहानी
शहरी और कस्बाई राजनीति, अपराध से जुड़ीं बातें, रोमांच-रोमांस की चरम परिणति से कुछ अलहदा किस्म की कहानियां दर्शकों के एक बड़े वर्ग को हमेशा से अपनी ओर खींचती रही हैं।सिनेमा और टेलीविजन के पर्दे पर भी इस तरह के प्रयोग सफल ही हुए हैं। अब ओटीटी की वेब शृंखलाओं में भी नवोदित फिल्मकार देश के छोटे और मध्यम शहरों पर आधारित आम जनजीवन से जुड़े कथानक को तवज्जो दे रहे हैं। गुल्लक, सुतलियां जैसी शृंखलाओं के बाद 12 से अधिक वेब सीरीज इस तरह के विभिन्न ओटीटी मंचों पर दिखाई जाती रहीं। विगत माह डिज्नी हाटस्टार पर प्रदर्शित शृंखला घर वापसी इसी तर्ज पर एक बेहतर प्रस्तुति सिद्ध हुई है।
तीन-चार दशक से अधिक समय हुआ, छोटे शहरों के मध्यवर्गीय परिवार के पढ़े लिखे बेरोजगार नौजवानों का नौकरी के सिलसिले में बंगलुरू, पूना, चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई जैसे महानगरों में जाने का क्रम जारी है। खास कर तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले लड़के-लड़कियों को अपने मध्यम दर्ज़े के शहर में माकूल नौकरी मिलना मुश्किल ही रहा है।
घर वापसी ऐसे ही नौजवान शेखर त्रिवेदी की कहानी है, जो बंगलुरू में अपनी अच्छी खासी नौकरी किसी कारण छूट जाने पर अपने घर आने को मजबूर होता है। सेवानिवृत्ति के बाद ट्रेवल एजंसी के माध्यम से परिवार की ज़िम्मेदारी उठा रहे त्रिवेदी जी का बड़ा बेटा शेखर दो साल बाद अचानक घर आता है तो इसे सहज रूप में अवकाश बिताने का शगल माना जाता है, लेकिन परिवार के सदस्यों पर उसकी नौकरी छूटने का सच किस कदर कड़वा और नागवार गुजरता है, इसकी बेहद आम लेकिन दिलचस्प पेशकश घर वापसी में देखने को मिलती है।
शहरों के अपने ही अतरंगी से परिवेश, मित्रों-नातेदारों के बनते-बिगड़ते मिजाज, बरसों की यादों का नास्टेलज़िया घर-परिवार की नियत सीमाएं, सामाजिक मान्यताओं को लेखक द्वय भरत मिश्रा और तत्सत पाण्डेय और ने खूबसूरती से पटकथा और संवादों में पिरोया है। मध्य प्रदेश के मालवांचल के व्यावसायिक शहर इंदौर की खासियतों, बोल-चाल, पोहे-जलेबी, छप्पन दुकानों का स्वाद छह एपिसोड की इस शृंखला को रोचक बनाने में सहयोगी बने हैं।
निर्देशक रुचिर अरुण ने विभा छिब्बर और अतुल श्रीवास्तव सरीखे मंझे हुए कलाकारों के साथ ही, विशाल वशिष्ठ, अजितेश गुप्ता, अनुष्का कौशिक, साद बिलग्रामी, आकांक्षा ठाकुर और ज्ञानेंद्र त्रिपाठी से बेहतर काम करवाने में सफलता प्राप्त की है। मिलते-जुलते शीर्षक वाली शृंखला निर्मल पाठक की घर वापसी की तरह घर वापसी भी अपने तेवर की उम्दा वेब सीरीज बन पड़ी है।