पाकिस्तानी अभिनेता अदनान सिद्दीकी, जो दशकों से एंटरटेनमेंड इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं। उन्होंने 2017 में आई श्रीदेवी थ्रिलर फिल्म ‘मॉम’ से बॉलीवुड में भी कदम रखा, उनका कहना है कि दोनों पड़ोसी देशों में ऐसे लोग हैं जो महसूस करते हैं कि भले ही दोनों देशों की हकीकत अलग है, लेकिन राजनीति को कल्चर एक्सचेंज के बीच नहीं आना चाहिए।

एक्टर की 2019 पाकिस्तानी रोमांटिक ड्रामा सीरीज़ ‘मेरे पास तुम हो’ 2 अगस्त को भारत में जिंदगी डीटीएच पर प्रसारित होने वाली है। फिल्मों के बाद अब अदनान टीवी के दर्शक के बीच जगह बनाने के लिए तैयार हैं। जबकि देश के विभिन्न राजनीतिक संगठनों ने यह सुनिश्चित किया है कि उरी आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों को देश में काम करने की अनुमति नहीं दी जाए।

इंडियन एक्सप्रेस के साथ बात करते हुए अदनान ने भारतीय सिनेमा के जरिए लोकप्रियता पाने को लेकर बात की। उन्होंने बताया कैसे उरी मामले के बाद विवाद बढ़ने पर उनके बॉलीवुड एंबीशन कैसे कम हो गए और उन्हें लगता है कि पाकिस्तानी दर्शकों में भारतीयों की तुलना में अधिक सहनशीलता है।

अदनान ने अपने शो को लेकर कहा, “ऐसा लगता है जैसे मेरे पड़ोसी देश में भी कोई इसे देखने वाला है। इसका फेम सीमा पार जा चुका है। लोगों के लिए शो को दोबारा देखना एक अच्छी याद होगी। अब यह आधिकारिक तौर पर जिंदगी के साथ होने जा रहा है, जो अलग होगा क्योंकि पहले वे यूट्यूब जैसे विभिन्न प्लेटफार्मों पर शो देखते थे। उन्होंने कहा कि उनके शो को ऑफिशियली टीवी पर प्रसारित करने से पहले भी भारत के दर्शक पाकिस्तानी शोज देखा करते थे। दीवानगी बहुत ज्यादा है।”

एक्टर ने कहा,”मुझे इसका अनुभव 2017 में हुआ जब मैं ‘मॉम’ की शूटिंग कर रहा था। मैं पुरानी दिल्ली में कहीं खाना खाने गया था। बोनी कपूर (मॉम के निर्माता) ने मुझसे कहा कि मुझे सुरक्षा के साथ जाना चाहिए क्योंकि लोग मुझे पहचान सकते हैं, लेकिन मैंने सोचा कि यहां मुझे कौन जानता होगा? इसलिए, मैं गया और जिस तरह की फैन फॉलोइंग मुझे मिली उससे मुझे हैरानी हुई। मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मुझे वहां से निकलने के लिए कुछ सुरक्षा दिलाने के लिए बोनी को फोन करना पड़ा। मैंने हमेशा कहा है कि हमारे टीवी शो बॉलीवुड फिल्मों की तरह हैं, और हमारी फिल्में भारतीय टीवी शो की तरह हैं।”

राजनीति बीच में आ जाती है

एक्टरन ने कहा, “ये सब हमेशा ऐसा ही रहा है। अराजनीतिक नाम की कोई चीज़ नहीं है। कला की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन कलाकारों की एक निश्चित सीमा होती है, जो नहीं होनी चाहिए। एक हेल्थी कल्चरल एक्सचेंज होना चाहिए। मेरा मानना ​​है कि इस तरह की सहनशीलता- इतना स्पष्ट होने के लिए मुझे क्षमा करें-लेकिन भारतीय दर्शकों की तुलना में हमारी सहनशीलता बहुत अधिक है। हम भारतीय कलाकारों, भारतीय क्रिकेटरों को स्वीकार करते हैं, हम भारत के बारे में हर अच्छी चीज को स्वीकार करते हैं। लेकिन जब ये बात सीमा पार जाती है तो बेहद राजनीतिक हो जाती है। मुझे नहीं पता क्यों?”

“मुझे याद है जब मैं ‘मॉम’ फिल्म बना रहा था तो इसे बहुत ही गुप्त रखा गया था, क्योंकि फवाद खान वाला विवाद हो गया था। बोनी कह रहे थे कि हम इंटरव्यू, पब्लिक अपीयरेंस नहीं कर सकते। ऐसा नहीं होना चाहिए; सरकारों और राजनीतिक दलों दोनों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि जब कहीं कला शामिल हो तो कम से कम थोड़ी छूट दी जाए।