निर्देशक– शेली चोपड़ा धर
कलाकार-अनिल कपूर, सोनम कपूर आहूजा, राज कुमार राव, जूही चावला

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ स्त्री समलैंगिकता (लेसबियनिज्म) की वकालत करनेवाली फिल्म है। कह सकते हैं कि फिल्म बोल्ड विषयवाली है। लेकिन सिर्फ विषय के स्तर पर, लहजे में बोल्डनेस नहीं है। फिर भी जिस तरह आज यौन-आजादी को लेकर नए विचार सामने आ रहे हैं, उसे देखें तो ये परंपरा से भिन्न राह पर चली तो है। खासकर भारतीय समाज में। हालांकि इस विषय पर हिंदी में पहले भी कुछ फिल्में बन चुकी हैं।

एक लड़की है स्वीटी (सोनम कपूर आहूजा)। अपने में सिमटी-सी रहती है। एक दिन वह छुपते-छुपते एक नाटक के रिहर्सल में पहुंच जाती है। नाटक एक लव स्टोरी है। इसका लेखक साहिल मिर्जा (राज कुमार राव) उससे पूछता है कि वहां किससे छुपने आ गई। लड़की सीधे जवाब देने के बजाय कहती है जिस लव स्टोरी में कोई स्यापा न हो वो सही ढंग की लव स्टोरी नहीं होगी। खैर वहां से लड़की फिर भागती है। लड़के को पता चलता है कि वह मोगा (पंजाब) की रहनेवाली है। लड़के को तो अपनी तरफ से उससे इश्क हो चुका है इसलिए वह भी मोगा पहुंच जाता है। वहां जाने पर उसे पता चलता है कि लड़की को भी इश्क है लेकिन उससे नहीं बल्कि किसी लड़की से। अब क्या होगा? लड़की उस लड़के की होगी या लड़की की? क्या लड़की के भाई और पिता उसकी समलैंगिकता को स्वीकार करेंगे या उस पर दबाव बनेगा कि वह सामान्य यानी नॉर्मल जिंदगी जिए?

फिल्म हल्के-फुल्के ढंग से आगे बढ़ती है। जूही चावला इसमें छत्रो नाम की एक प्रौढ़ा औरत है जो हीरोइन बनना चाहती है। उसने अभिनय कोचिंग भी ली है। यह फिल्म का मजाकिया पहलू है। दूसरा मजाकिया पहलू यह है कि स्वीटी के पिता की भूमिका उनके वास्तविक पिता अनिल कपूर ने निभाई है। वह बलबीर चौधरी नाम से मोगा में कपड़े की फैक्ट्री चलाता है। हालांकि उसका असल शौक खाना बनाना है। छत्रो भी खाना बनाने में कुशल है। फिल्म में दोनों के बीच इश्क भी पनपने लगता है। यह भी हंसी के कई मौके देता है।
एक जमाने में स्त्री समलैंगिकता भारतीय समाज में वर्जित विषय रहा है।

हालांकि धीरे धीरे मान्यताएं बदल रही हैं लेकिन ऐसी नहीं बदली हैं कि समाज उसे पूरी तरह से स्वीकार कर ले और बॉक्स आफिस पर ये फिल्म दनादन पैसे की बारिश करने लगे। फिर भी फिल्म की निर्देशक शैली चोपड़ा धर के बारे में ये तो कहना होगा कि उन्होंने साहसिक काम किया है और इस विषय को इतने फुल्के ढंग से पेश किया है कि दर्शक को जोर का झटका नहीं लगता। सोनम कपूर ने एक डरी-सहमी सी लड़की की भूमिका निभाई है। अगर उनके चरित्र में थोड़ा धाकड़पन होता तो शायद फिल्म बहस तलब होती है। लेकिन निर्देशक की मंशा इसे बहस तलब फिल्म बनाने की नहीं है बल्कि हौले हौले तरीके से एक विवादास्पद विषय को ठंडा करके परोसने की रही है।