लगभग दो दशकों के बाद, स्मृति ईरानी ने टेलीविजन पर बहुप्रतीक्षित वापसी की है और ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी 2’ में तुलसी विरानी के रूप में अपनी प्रतिष्ठित भूमिका को दोहरा रही हैं। बताया जा रहा है कि रीबूट शो रेटिंग में जबरदस्त प्रदर्शन कर रहा है। इंडिया टुडे के साथ बातचीत में, स्मृति ईरानी ने एंटरटेनमेंट में चल रही कई बहसों को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने पुरुष और महिला कलाकारों दोनों के लिए आठ घंटे की कार्य शिफ्ट की मांग पर भी चर्चा की।
इसके बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरा कोई ग्रुप नहीं है। मेरे पास कभी कोई ग्रुप नहीं रहा। टेलीविजन,एक तो ये सब नखरे बर्दाश्त नहीं कर सकता। दूसरी बात, मेरे पास कभी कोई ग्रुप नहीं रहा। मैं सुरक्षाकर्मियों के साथ नहीं घूमती, इसलिए मुझे पता है कि ये बकवास भी आई थी। मैं कभी सुरक्षाकर्मियों के साथ नहीं घूमती, ये बात मुझे तब भी बताई गई थी जब मैं कैबिनेट मंत्री थी। तो, अगर ऐसे लोग और अभिनेता हैं जिन्हें इस नकली व्यक्तित्व को जीने से खुशी मिलती है, तो मेरा मतलब है, आपको ऐसा करने के लिए बहुत दुखी होना चाहिए।”
काम के घंटों की सीमा पर चल रही बहस में, उन्होंने टेलीविजन प्रोडक्शन की चुनौतियों को स्वीकार किया, लेकिन प्रोफेशनल कमिटमेंट्स पर भी जोर दिया। दिया। उन्होंने कहा, “काम के घंटे अभी भी एक चुनौती हैं, क्योंकि हमें काम करना ही पड़ता है। आपको हर रात एक निश्चित दर्शक वर्ग के लिए एक प्रोडक्ट तैयार करना होता है, आपका एक नेटवर्क के लिए कमिटमेंट होता है। आप यह नहीं कह सकते कि निर्माता की कमिटमेंट का सम्मान नहीं किया जाएगा। ‘आज मेरा काम करने का मन नहीं है’ कहना प्रोफेशनली स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
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अभिनेता दीपिका पादुकोण की आठ घंटे की कार्य सीमा की मांग को लेकर हाल ही में हो रही चर्चाओं के बारे में पूछे जाने पर स्मृति ने इसे एक व्यक्तिगत मुद्दा बताया। उन्होंने कहा कि पुरुष और महिलाएं अलग-अलग वास्तविकताओं का सामना करते हैं और इसलिए उनकी तुलना नहीं की जा सकती, खासकर जब गर्भावस्था की बात आती है। अपना अनुभव साझा करते हुए, उन्होंने ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की शूटिंग के दौरान दो प्रेग्नेंसी के दौर से गुजरने को याद किया। उन्होंने कहा, “मैंने इसी सेट पर एक महिला निर्माता के साथ दो प्रेग्नेंसी के दौर से गुजरने के दौरान काम किया। मैं उनके शो को सफल बनाने के लिए दृढ़ थी। ये मेरा फैसला था और मैं दूसरों से ये उम्मीद नहीं कर सकती कि वे मेरे काम करने के तरीके के आधार पर अपना फैसला लेंगे। अगर मैं काम पर नहीं आती, तो उस दिन 120 लोगों को वेतन नहीं मिलता। यह उनके साथ अन्याय है। काम के प्रति मेरा नजरिया जवाबदेही और अनुशासन पर निर्भर करता है।”
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