हीराबाई बड़ोदेकर (29 मई, 1905- 20 नवंबर, 1989)
सुना-पढ़ा खूब है कि राजा-महाराजा किसी कलाकार की कला पर खुश होकर गले से मोतियों का हार निकाल इनाम दे देते थे। मगर ऐसे उदाहरण कम ही मिलेंगे जब दर्शकों-श्रोताओं के सामने कोई कलाकार गाए और वे उस पर सोने की बरसात कर दें। हीराबाई कोलकाता के सार्वजनिक समारोह में गा रही थीं। उनके गायन पर श्रोता और आयोजक सभी सम्मोहित थे। तभी मंच पर मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल (कुछ का मानना है कि सहगल के सेक्रेटरी) आए और उन्होंने हीराबाई का गाना रुकवाकर कर घोषणा की कि हीराबाई के गाने से प्रसन्न 12 लोगों ने उन्हें इनाम में सोना दिया है। इस घटना की प्रामाणिकता हीराबाई के मराठी में दिए इंटरव्यू में भी मिलती है।
हीराबाई ने संगीत के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। उनकी मां ताराबाई माने बड़ोदा के राजपरिवार से थीं, जिन्हें किराना घराने के प्रमुख गायक करीम खां संगीत सिखा रहे थे। दोनों के दिल मिले। मगर ताराबाई के परिवार को उनका साथ पसंद नहीं आया, तो ताराबाई ने परिवार को अलविदा कह दिया और करीम खान के साथ मुंबई आ गर्इं। ताराबाई करीम खां की पांच संतानों की मां बनीं, जिनमें से एक थीं हीराबाई उर्फ चंपाकली। मगर एक दिन पांच बच्चों को लेकर ताराबाई ने करीम खां को भी अलविदा कह दिया। एक संगीत स्कूल खोल लिया। जिस ताराबाई ने संगीत की खातिर परिवार और राजसी वैभव त्यागा था, वही ताराबाई चाहती थीं कि हीराबाई गायिका नहीं डॉक्टर बने। मगर हीराबाई की रगों में संगीत ऐसा समाया था कि मां को हार माननी पड़ी और उन्हें संगीत की तालीम देने की व्यवस्था करनी पड़ी। उनके गुरु बने करीम खान के चचेरे भाई अब्दुल वहीद खान, जो मशहूर पार्श्व गायक मोहम्मद रफी के गुरु भी थे।
वहीद खान और करीम खान ने सही मानो में कैराना (उप्र) से निकले किराना घराने को दुनिया भर में मशहूर किया। वहीद खान की बहन गफूरन बीवी से करीम खान ने निकाह किया था। मगर जब करीम खान ताराबाई की ओर आकृष्ट हुए, तो वहीद खान का दिल खट्टा हो गया। सार्वजनिक समारोहों में गाने से परहेज करने वाले और सूफी तबीयत के वहीद खान उसके बाद करीम खान से अलग हो गए। इन्हीं वहीद खान ने एक बार होली पर हीराबाई को इंदौर के एक कार्यक्रम में सुना, तो हीराबाई के सिर पर हाथ रख कर कहा कि मैं तुम्हें संगीत सिखाऊंगा। तुम जहां कहोगी, वहां संगीत सिखाऊंगा। इसके बाद मुंबई में हीराबाई का कड़ा प्रशिक्षण शुरू हुआ। तीन-तीन महीने एक-एक राग सिखाया वहीद खान ने। राग को बिना एक भी तान के दोहराव के सवा घंटे तक गाकर आकार देने का गुर सिखाया। बहुत कठोर गुरु थे वहीद खान। इसी कठोरता के कारण ही हीराबाई ने सुर की मजबूती वाले किराना घराने पर लय और तान की कमजोरी का आरोप लगाने वालों के मुंह बंद कर दिए थे। मशहूर गायक रामकृष्ण बुवा वजे का कहना था कि हीराबाई का गायन सुनकर बीमार भी सेहतमंद महसूस करने लगता था, ऐसी ताकत थी हीराबाई के गायन में।