जयनारायण प्रसाद
भारतीय फिल्मों के इतिहास में ‘शोले’ एक ऐसी फिल्म है, जिसे बार-बार देखने की इच्छा होती है। 15 अगस्त, 1975 को रिलीज हुई ‘शोले’ को 45 साल हो गए। इस फिल्म के कई कलाकार जीवित हैं, तो कुछ गुजर गए। ‘शोले’ के निर्देशक रमेश सिप्पी और फिल्म के कलाकार धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी, हेलेन, जगदीप, असरानी और पटकथा लेखक सलीम-जावेद ने फिल्म को यादगार बना दिया। वर्ष 2002 में ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट ने एक सर्वे में ‘शोले’ को सर्वकालिक दस सर्वश्रेष्ठ (टॉप टेन) भारतीय फिल्मों की श्रेणी में शामिल किया।
यह पहली भारतीय फिल्म है जिसमें स्टीरियोफोनिक साउंड ट्रेक का इस्तेमाल किया गया और 70 एमएम के स्क्रीन पर दिखाई गई। इसकी शूटिंग 3 अक्तूबर, 1973 को शुरू हुई थी और कुल ढाई साल में यह फिल्म बनकर तैयार हुई, फिल्म के कुछ दृश्यों को काटने-छांटने के बाद 15 अगस्त, 1975 को देशभर में रिलीज किया गया।
‘शोले’ के कैमरामैन द्वारका दिबेचा और कला निर्देशक राम यादेकर थे। दोनों अपने फन में माहिर थे और इन्होंने फिल्म को बेहतरीन बनाने में जी-जान लगा दिया था। आर्ट डायरेक्टर राम यादेकर ने ‘शोले’ की शूटिंग के लिए बेंगलुरु हाईवे पर यानी कर्नाटक के दक्षिणी सिरे पर रामनगर नामक एक पहाड़ी को टाउनशिप में बदल दिया था। अब भी इस जगह को ‘शोले’ की शूटिंग के लिए जाना जाता है। ‘शोले’ 198 मिनट की फिल्म थी और इसके निर्माण पर 30 मिलियन लगे थे। फिल्म ने बॉक्स आॅफिस पर 350 मिलियन की कमाई की। विदेशों में यह खूब चली। कहते हैं कि इस फिल्म को देखने के लिए सोवियत रूस में लोग टूट पड़े थे। मुंबई के मिनर्वा थिएटर में लगातार पांच साल से भी ज्यादा समय तक यह फिल्म चली।
मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा जैसे फिल्म के महारथियों ने इसकी कहानी और पटकथा को रिजेक्ट कर दिया था। तब इसकी पटकथा लेखक सलीम और जावेद की जोड़ी ने जीपी सिप्पी से संपर्क किया। वे इसमें पैसा लगाने को राजी हुए और उनके बेटे रमेश सिप्पी ने इसका निर्देशन संभाला। ‘शोले’ का एक इतिहास यह भी है कि पचासवें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे ‘बीते पचास वर्षों की सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म’ मानी गई है। संगीतकार आरडी बर्मन ने इसका ओरिजनल साउंड ट्रेक तैयार किया था। इस साउंड ट्रेक और ‘शोले’ के गब्बर सिंह और कालिया वाले डायलॉग ने बिक्री का एक अनोखा रेकॉर्ड तैयार किया है। वर्ष 2014 के जनवरी में इस फिल्म के 3डी फॉर्मेट को रिलीज किया गया था। कहा जाता है कि इस फिल्म पर जापान के मशहूर निर्देशक अकीरा कुरोसोवा की एक ख्यात फिल्म ‘सेवन समुराई’ का असर है।
अभिनेता अमजद खान ने जिस गब्बर सिंह के खूंखार रोल को निभाया था, उसे डैनी डेन्जोंगपा करने वाले थे। डैनी उस समय फिरोज खान की फिल्म ‘धर्मात्मा’ (1975) करने वाले थे। डैनी ने इस किरदार के लिए ना कह दिया तब जाकर अमजद खान को यह फिल्म मिली। इसी तरह, अमिताभ बच्चन के किरदार जय के लिए पहली पसंद शत्रुघ्न सिन्हा और संजीव कुमार की ठाकुर वाली भूमिका को दिलीप कुमार करने वाले थे। लेकिन बात बनी नहीं और अंतत: अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार ही परदे पर दिखे।