संजय दत्त पर अब उम्र का असर दिखने लगा है। क्या उनके भीतर देव आनंद की रूह का प्रवेश हो गया है, जो उम्रदराज होने के बावजूद छलिया का किरदार निभाने को बेकरार हैं। चित्रागंदा सिंह के साथ ‘साहब बीवी और गैंगस्टर 3’ के एक दृश्य में संजय दत्त नाचते और गाते हुए बेमेल जोड़ी की तरह लगते हैं।  बहरहाल, सब मिलाकार ‘साहब बीवी और गैंगस्टर 3’ एक ढीली ढाली फिल्म बनके रह गई है। मध्यांतर के पहले बेहद धीमी गति से चलती है और उसके बाद अचानक बहुत तेज हो जाती है। इसी कारण इसमें असंतुलन भी है। हां, फिल्म की कहानी में एक नया तत्व आ गया है और वह है रुसी रूले का। रूसी रूले का प्राणघातक खेल है और इसमें दो प्रतिद्वंद्वी रिवाल्वर के छह खांचों में से तीन में गोलियां भर के खुद पर चलाते हैं। किस खांचे भी गोली है इसका अनुमान मुश्किल है। इसलिए एक का मरना तय है।

लंदन में बरसों से रह रहा उदय प्रताप सिंह (संजय दत्त) इस खेल में माहिर है और अपने कई प्रतिद्वंद्वियों को ऊपर भेज चुका है। भारत लौटने के बाद उसकी आखिरी बाजी साहब यानी आदित्य प्रताप सिंह (जिमी शेरगिल) के साथ होनी है। आदित्य अपनी तरह का शख्स है, जो इस खेल की बारीकी को समझता है हालांकि इस खेल का खिलाड़ी वह कभी नहीं रहा है। लेकिन उसकी षडयंत्रकारी और शराबी बीवी माधवी सिंह (माही गिल)उसे फंसाने के लिए चाल चलती है। क्या उसकी चाल सफल होगी? आदित्य मारा जाएगा या उदय सिंह?
आदित्य के परिवार में उसकी षडयंत्रकारी बीवी है तो उदय के परिवार में उसके षडयंत्रकारी पिता और भाई, जिनकी भूमिकाएं क्रमश: कबीर बेदी और दीपक तिजोरी ने निभाई है। दोनों परिवार पुराने रजवाड़ों से जुड़े हैं और ऊपरी तामझाम के अलावा उनके पास कुछ बचा नहीं है। आदित्य की अपनी राजनैतिक पार्टी है और पत्नी सांसद है। लेकिन आदित्य उसे हटाकर खुद सांसद बनने की फिराक है। क्या ऐसा होगा? वैसे, माही गिल के चेहरे पर भी उम्र ने दस्तक दे दी है। तिग्मांशु ने सोहा अली खान के चरित्र बहुत कम जगह दी है। ‘साहिब बीवी और गैंगस्टर 3’ उस तरह दमदार नहीं है जैसी कि इस शृंंखला की पहली दो फिल्में थीं। फिल्म में एक संवाद है ‘जब नाम के अलावा कुछ न बचा हो तो नाम को बचा बचा के चलना चाहिए।’ शायद निर्देशक ने फिल्म में इसी का खयाल रखा है।

व्हेन ओबामा लव्ड ओसामा फिल्म समीक्षा: सतही हास्य

निर्देशक- सुधीश कुमार शर्मा, कलाकार-मौसम शर्मा, स्वाति बख्शी, राहुल अवाना, अमृता आचार्य, मोहित बघेल, हेमंत पांडे, मनोज बख्शी, हिमानी शिवपुरी

नाम से भ्रम हो सकता है कि यह अंग्रेजी फिल्म है लेकिन है यह हिंदी में। इसकी एक खासियत यह है कि इसमें ज्यादातर कलाकारों के साथ निर्देशक और निर्माता दिल्ली के ही है। यह एक कॉमेडी है जो ओसामा और ओबामा नाम के चरित्रों के साथ खेलती है। फिल्म एक सीमा तक हंसाती है हालांकि हास्य में मौलिकता और नयापन नहीं है। इसमें अमन ओसामा नाम का एक मुसलिम युवा है, जो आगरा का रहनेवाला है। संयोग से उसकी मुलाकात मैगी ओबामा नाम की एक लड़की से होती है जो ग्रेटर नोएडा के एक नेता सागर ओबामा की बेटी है। अमन ओबामा बचपन से ही नाना पाटेकर का फैन रहा है। वह जब भी तनाव में होता है नाना के निभाए किसी चरित्र के संवाद बोलने लगता है। इससे कई ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं जो हंसी का कारण बनती है। उसका एक दोस्त जॉय है, जो शाहीन नाम की मुसलिम लड़की से प्रेम करता है। शाहीन का पिता जफर अब्बासी भी ग्रेटर नोएडा का नेता है। क्या अमन और जॉय की अंतर्जातीय शादी हो पाएगी? जाहिर है इसमें अड़चनें आएंगी और इन्हीं अड़चनों से जुड़े हास्य को दिखाती ये फिल्म दर्शकों को गुदगुदाती रहती है।