कान फिल्मोत्सव के निर्देशक खंड में दिखाई गई अनुराग कश्यप की नई फिल्म ‘रमण राघव 2.0’ का जबरदस्त स्वागत हुआ है। सोमवार (16 मई) सुबह 8.45 बजे के शो से पहले ही जे डब्लू मैरियट होटल का क्रोसेटे सभागार विदेशी दर्शकों से खचाखच भर चुका था। यूरोपीय मीडिया ने इस फिल्म को हाथोहाथ लिया है। अनुराग कश्यप और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए यह फिल्म मील का पत्थर साबित होने जा रही है। यह फिल्म भारत में 24 जून को रिलीज होने जा रही है।
यह फिल्म साठ के दशक में मुंबई के सीरियल किलर रमण राघव की जीवनी नहीं है। यह उससे प्रेरित जरूर है जिसे 2013-2015 के काल खंड में दिखाया गया है। रमण एक मनोरोगी था जिसने 41 हत्याएं की थी। वह इतना नृशंस था कि अपनी बहन से बलाकार करने के बाद उसे पति-बच्चे समेत मार डाला था। रमण बिना किसी कारण लगातार हत्याएं करता चला जाता है, उसे किसी बहाने की जरूरत नहीं है। उसकी अपनी नैतिकता और तर्क है।
रमण का चरित्र नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया है। उनका कहना है कि इस भूमिका को निभाने के लिए उन्होंने पांच साल गहन तैयारी की। यह काफी जटिल चरित्र है। तैयारी के दौरान कई बार दिमाग से सही-गलत का भेद मिट जाता था और खुद से ही डर लगने लगता था। जान-बूझकर बिना किसी अपराध बोध के हत्या करने वाले इंसान की मानसिकता में जाना जटिल चुनौती थी। वे कहते हैं कि मुंबई जाने के दस बारह साल बाद तक उनके पास कोई काम न होने के कारण उन्हें अभिनय की गहन तैयारी का समय मिला, जिसका असर आज दिखाई देता है। वे अपनी सफलता का श्रेय राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय को देते है। आने वाले दिनों में बड़े बजट की उनकी कई फिल्में आने वाली हैं। नवाज चौथी बार कान आए हैं। इससे पहले ‘मिस लवली’, ‘मानसून शूटआउट’ और ‘गैंग्स ऑॅफ वासेपुर’ (भाग एक और दो) के लिए कान आए थे। पहले हिचक होती थी। अब सब आसान लगता है। इरफान के बाद अब नवाज दूसरे ऐसे भारतीय अभिनेता हैं जिनका एक बड़ा दर्शक वर्ग यूरोप में तैयार हो चुका है। उन्होंने फिल्म के प्रदर्शन के बाद देर तक केवल हिंदी में दर्शकों के सवालों के जवाब दिए।
आठ अध्यायों वाली फिल्म में न तो पर्दे पर खुली हिंसा है न हिंसा को न्यायोचित ठहराया गया है। अनुराग कहते हैं कि दुनियाभर में लोग किसी न किसी बहाने लोगों को मार रहे हैं। कुछ लोगों के पास मारने का लाइसेंस होता है। यह पूछे जाने पर कि क्या हत्यारे की कोई नैतिकता होती है? वे कहते हैं, यह निजी मामला है। सबकी नैतिकता अलग-अलग होती है। रमण के साथ-साथ एक पुलिस अफसर (विकी कौशल) की कहानी चलती है। पिता (विपिन शर्मा) की क्रूरता की प्रतिक्रिया में वह गुस्सैल नशेड़ी बन गया है। वह भी हत्याएं करता है। यहां तक कि अपनी प्रेमिका की भी हत्या कर देता है। पुलिस थाने में समर्पण करते हुए रमण कहता भी है-आपके पास लोगों को मारने का लाइसेंस है। सरकार इसके लिए आपको पैसा भी देती है। यहां हर कोई किसी न किसी को मार रहा है- मारना चाहता है। कोई धर्म की आड़ में तो कोई बदला लेने के लिए। मंैने कभी किसी को अनजाने मे नहीं मारा। मेरा उद्देश्य ज्यादा पवित्र है।
अनुराग कश्यप का सिनेमाई व्याकरण इस फिल्म में भी है। लेकिन यहां वे दो कदम और आगे हैं। संगीत का ऐसा विलक्षण इस्तेमाल पहली बार सुना जा रहा है। अनुराग कहते हैं-मैं बिना संगीत के फिल्म नहीं बना सकता, पर संगीत का इस्तेमाल मेरी फिल्म में बिल्कुल अलग तरह से होता है जो कहीं और सुनने को नहीं मिलता। बिना किसी भावुकता- मेलोड्रामा और घालमेल के वे पटकथा को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं। जिस तरह से कैमरा तलछट की सचाइयों को धुंधली रोशनी में दिखाता है, वह किसी कविता का दृश्यबंध रचते हैं। उन्होंने सभी कलाकारों से अभिनय की साधारणता में असाधारण काम करवाया है। वे कहते हैं -हमारे पास बहुत ही कम बजट था। ऐसे में हमने बुद्धिमानी से काम चलाया।
रमण राघव 2.0 भारत की अकेली फिल्म है जो कान में सबसे अधिक सफल रही है, सराही गई है। इसकी वजह इसकी सिनेमाई गुणवत्ता है। नवाजुद्दीन का अभिनय एक क्षण के लिए भटकने नहीं देता। मुकेश छाबड़ा की कास्टिंग में छोटा से छोटा चरित्र भी असरकारी है। बांबे वेलवेट की असफलता के बाद अनुराग के लिए यह फिल्म राहत लेकर आई है। वे कहते हैं – मैंने उस गलती से बहुत कुछ सीखा। अब मैं बड़े बजट की फिल्म करने की गलती नहीं करूंगा। यह फिल्म मैं वर्षों से बनाना चाहता था। मैं इसी तरह की फिल्में बेहतर बना सकता हूं।