फिल्ममेकर राम गोपाल वर्मा अब अपनी फिल्मों के लिए नहीं बल्कि अपने बयान और ट्वीट के लिए चर्चा में रहते हैं। अब राम गोपाल वर्मा ने अपनी सबसे चर्चित फिल्म ‘सत्या’ का जिक्र करते हुए एक कन्फेशन किया है। उन्होंने बताया है कि वो अहंकार में चूर हो गए थे, उन्होंने कई लोगों का विश्वास तोड़ा था और इसका उन्हें पछतावा हुआ था। जिसके बाद वो खूब रोए थे।

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राम गोपाल वर्मा ने ट्विटर पर लिखा है, “खुद के साथ सत्या का एक कन्फेशन। जब ‘सत्या’ का एंड हो रहा था,  2 दिन पहले इसे 27 साल बाद पहली बार देखते समय मेरा दम घुटने लगा था और मेरे गालों पर आंसू बह रहे थे और मुझे इसकी कोई परवाह नहीं थी कि कोई देखेगा भी या नहीं। आंसू सिर्फ फिल्म के लिए नहीं थे, बल्कि उसके बाद जो हुआ उसके लिए ज्यादा थे।”

“फिल्म बनाना एक बच्चे को जन्म देने जैसा है, बिना यह जाने कि मैं किस तरह के बच्चे को जन्म दे रहा हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक फिल्म को टुकड़ों-टुकड़ों में बनाया जाता है, बिना ये जाने कि क्या बन रहा है और जब ये तैयार हो जाती है तो सारा ध्यान इस बात पर होता है कि दूसरे इसके बारे में क्या कह रहे हैं और उसके बाद, चाहे ये हिट हो या नहीं, मैं इस बात से ऑब्सेस्ड होकर आगे बढ़ता हूं…”

दो दिन पहले तक मैंने इससे पैदा होने अनगिनत प्रेरणाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया था…’सत्या’ की स्क्रीनिंग के बाद होटल वापस आकर, और अंधेरे में बैठे हुए मुझे समझ नहीं आ रहा है कि अपनी सारी तथाकथित बुद्धिमत्ता के बावजूद, मैंने इस फिल्म को भविष्य में जो कुछ भी करना चाहिए उसके लिए एक बेंचमार्क क्यों नहीं बनाया। मुझे ये भी एहसास हुआ कि मैं सिर्फ उस फिल्म की ट्रैजडी के लिए नहीं रोया था, बल्कि मैं खुद के उस वर्जन के लिए खुशी में भी रोया था .. और मैं उन सभी के साथ अपने विश्वासघात के लिए पछतावे में रोया था, जिन्होंने ‘सत्या’ के कारण मुझ पर भरोसा किया था।”

राम गोपाल वर्मा ने पोस्ट में आगे लिखा,”मैं शराब के नशे में नहीं, खुद की सक्सेस और घमंड के नशे में रहने लगा था। और ये मुझे दो दिन पहले ही समझ आया कि कब ‘सत्या’ और ‘रंगीला’ की चकाचौंध ने मुझे अंधा कर दिया था। मैं समझने की शक्ति खो चुका था और इससे पता चलता है कि मैं शॉक वैल्यू के लिए या गिमिट इफेक्ट के लिए फिल्में बनाने या अपनी तकनीकी को अन्य चीजों का अश्लील प्रदर्शन करने में लापरवाही से आगे बढ़ रहा था। इतने से सच को भूल जाता हूं कि तकनीक किसी कंटेंट को ऊपर उठा सकती है लेकिन उसे आगे नहीं बढ़ा सकती।”

मेरी बाद की कुछ फिल्में सफल रही होंगी लेकिन मैं नहीं मानता कि उनमें से किसी में भी वो बात थी जो ‘सत्या’ में है। राम गोपाल वर्मा ने इस पोस्ट में काफी कुछ लिखा है और खुद की कमियों को भी स्वीकार किया है। उन्होंने लिखा, “मैं वास्तव में हर फिल्म निर्माता के लिए एक चेतावनी के रूप में यह कहना चाहता हूं, जो किसी भी समय अपनी मनःस्थिति के कारण आत्म-भोग में बह जाता है, बिना खुद या दूसरों द्वारा निर्धारित मानकों के खिलाफ मापे। आखिरकार अब मैंने एक प्रतिज्ञा ली है कि मेरे जीवन का जो भी थोड़ा सा हिस्सा बचा है, मैं उसे ईमानदारी से बिताना चाहता हूं और सत्या जैसा कुछ बनाना चाहता हूं और इस सत्य की मैं सत्या की कसम खाता हूं।”

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