प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा (Guneet Monga) आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने करियर में कई बेहतरीन फिल्में बनाई हैं। गुनीत ने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ ‘द लंचबॉक्स’, ‘शाहिद’, ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ और ‘कटहल’ जैसी फिल्मों का निर्माण किया है। पंजाबी फैमिली में जन्मी प्रोड्यूसर के लिए सफलता हासिल करना कोई आसान नहीं था। वो भी जब नॉन फिल्मी बैकग्राउंड हो तो ये सफर और भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में निर्मात्री ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए अपने जीवन के अनछुए उस पन्ने को खोला है, जिसमें बताया कि फिल्मों में आने से पहले उनके पिता के पास ग्रैंड प्लान था। वो उनकी लाइफ को सेट करना चाहते थे।

गुनीत मोंगा ने बचपन से ही काफी बड़े सपने देखे थे। वो अपने मम्मी-पापा के सभी सपनों को पूरा करना चाहती थीं। मां ने 3 बेडरूम वाला ख्वाब देखा था। अब उनके सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने 16 साल की उम्र में छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिए थे। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में निर्मात्री ने बताया कि ‘उनके छोटे बिजनेसमैन थे। उनका कॉन्ट्रेक्टर और प्रॉपर्टी डीलर्स के साथ उठना-बैठना था। उनके काफी अच्छे कॉन्टेक्ट थे। वो गुनीत का करियर सेट करना चाहते थे इसलिए ग्रैंड प्लान बनाया था।’

इश्योरेंस बेचने का था आइडिया

गुनीत मोंगा के पिता ने उन्हें इश्योरेंस बेचने का आइडिया था। उन्होंने उनसे कहा था कि वो क्यों नहीं इंश्योरेंस की पढ़ाई करतीं? प्रोड्यूसर ने बताया, ‘पापा मेरे लिए इश्योरेंस बेचने के लिए तैयार थे। मुझसे कहा था कि तुम पढ़ाई करो और मैं तुम्हारे इश्योरेंस बेचूंगा। मेरे सारे दोस्त तुमसे इश्योरेंस खरीदेंगे। तुम हर साल रिन्युवल के समय पैसे पाओगी तो ये उनकी तरफ से मेरे लिए ग्रैंड प्लान था। वो मेरा भविष्य सिक्योर करना चाहते थे। फिर क्या था मैंने रितु नंदा इंश्योरेंस स्कूल में एडमिशन लिया और पढ़ने जाने लगी। मैंने एग्जाम दिए और जॉब पा गई। जब आप 18 साल के होते हैं और आपको बिजनेस कार्ड मिल जाए तो वो सब बहुत ही बेहतरीन लगता है।’

पढ़ाई के दौरान क्या सीखा?

इश्योरेंस की पढ़ाई के दौरान सीखने की बात पर जोर देते हुए गुनीत मोंगा कहती हैं, ‘मैंने स्कूल में पढ़ाई के दौरान क्या सीखा? हमें वहां बताया गया कि जब हम इश्योरेंस बेचने जाते हैं तो ये कोई आसान काम नहीं है। क्योंकि किसी मीडिल क्लास फैमिली को ऐसे प्लान बेचना बहुत कठिन होता है क्योंकि उनके पास काफी टाइट बजट होता है। कम पैसे में ज्यादा खर्च चलाना होता है और ऊपर से उस बजट में एक खर्च ऐड करना काफी मुश्किल होता है। अगर हम 10 के पास जाएंगे तो कहीं जाकर 11वां इंसान इसे खरीदेगा। ये काफी मुश्किल भरा काम रहा है। इस दौरान मैं जब भी इश्योरेंस बेचने जाती तो लोग मना कर देते थे ऐसे में मैंने रिजेक्शन झेलना सीख लिया। कभी भी जाती तो अब मन में ये रहता था कि ये जल्दी से मना करे मैं अगले के पास जाऊं। ये क्योरिसिटी बनी रहती थी। मैंने हार मानना नहीं सीखा बल्कि सिचुएशन से लड़ना सीखा और आज एक सफल प्रोड्यूसर बन पाई।’

आपको बता दें कि निर्मात्री गुनीत मोंगा नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी हैं। उन्होंने 95वें अकादमी पुरस्कारों में भारतीय फिल्म निर्माण के लिए पहला ऑस्कर जीतकर अपने देश को गौरवान्वित किया है। उन्हें तेलुगू शॉर्ट फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ के लिए ऑस्कर जीता था।