(4 जनवरी, 1925- 27 अक्तूबर, 2001)
कई लोगों के लिए यह हैरानी की बात रही है कि आखिर बांग्लाभाषी होते हुए भी प्रदीप कुमार अपनी फिल्मों में उर्दू का इतना साफ उच्चारण कैसे कर लेते थे। उनका उर्दू उच्चारण और राजसी व्यक्तित्व ऐसा था कि उनके धुर विरोधी भी इसे कभी नजरंदाज नहीं कर सके। खासकर कमाल अमरोही, जिन्हें प्रदीप कुमार-मीना कुमारी की नजदीकी सुहाती नहीं थी, बावजूद इसके कमाल अमरोही ने उन्हें अपनी फिल्मों ‘शंकर हुसैन’ (1972) और ‘रजिया सुलतान’ (1977) में लिया।
प्रदीप कुमार ने 1951 तकबांग्ला फिल्मों में काम करने के बाद मुंबई जाकर किस्मत आजमाना तय किया। उन दिनों मुंबई में फिल्मिस्तान स्टूडियो का डंका बज रहा था, जो बांबे टॉकीज को छोड़ कर आए अशोक कुमार, उनके जीजा शशधर मुखर्जी और ज्ञान मुखर्जी ने शुरू किया था। इसके प्रोडक्शन कंट्रोलर थे संगीतकार मदन मोहन के पिता राय बहादुर चुन्नीलाल। बाद में इसे सेठ तोलाराम जालान ने खरीद लिया था। प्रदीप कुमार ने फिल्मिस्तान की ‘आनंदमठ’ (52), ‘अनारकली’ (53) और ‘नागिन’ (54) में काम कर अपनी पहचान बना ली। इन तीनों फिल्मों के गाने उन दिनों गली गली गूंज रहे थे। तब फिल्मों में कई कलाकार तो अपने संवाद तक उर्दू लिपि में मांगते थे। बांग्लाभाषी प्रदीप कुमार ने भी उर्दू सीखना तय किया। इस काम में उनकी मदद की मीना कुमारी ने, जिन्हें उर्दू सिखाई थी कमाल अमरोही ने।
उर्दू प्रेम के कारण ही मीना कुमारी के जीवन में कमाल अमरोही का प्रवेश हुआ था। दरअसल ‘सनम’ (1951) की शूटिंग के दौरान एक दुर्घटना में मीना कुमारी के हाथ की दो उंगलियां कट गई थीं और वह पुणे के ससून अस्पताल में भर्ती थीं। अमरोही ने पटकथा लेखन के लिए महाबलेश्वर में एक अस्थायी कमरा ले रखा था और वह रोज मीना कुमारी का हालचाल पूछने ससून जाते रहते थे। रोजाना की मुलाकात में उर्दू ने अहम भूमिका निभाई। कमाल अमरोही की सोहबत से मीना कुमारी के करियर में बहुत फायदा हुआ। साथ ही दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा और उन्होंने 1952 में निकाह कर लिया। उर्दू प्रेम के कारण मीना कुमारी के जीवन से कई लोग जुडेÞ जिनमें प्रदीप कुमार के साथ-साथ गुलजार, सावन कुमार, धर्मेंद्र भी शामिल थे।
मीना और प्रदीप कुमार ने पहली बार ‘अद्ल-ए-जहांगीर’ (1954) में काम किया। 1956 की ‘बंधन’ तक आते-आते मीना कुमारी और प्रदीप कुमार एक दूसरे के करीब आ गए थे। इतने कि सबके सामने तो मीना प्रदीप कुमार को प्रदीपजी बोलती थी और अकेले में प्रदीप। प्रदीप भी अकेले में उन्हें मीनू कहते थे। दोनों ने सात फिल्मों में काम किया और उनके बीच जो प्रगाढ़ता हुई, उससे कमाल अमरोही की नींद उड़ने लगी। मीना कुमारी पहले ही भावनात्मक रूप से गुलजार, धर्मेंद्र के करीब थीं। मीना की जिंदगी में आ रहे पुरुषों के कारण कमाल अपने सहायक वकार के जरिये मीना कुमारी पर नजर रख रहे थे। बतौर निर्देशक पहली फिल्म ‘महल’ (1949) से लता मंगेशकर और मधुबाला को फिल्मजगत में पहचान दिलाने वाले अमरोही के कहने पर वकार मीना कुमारी की फिल्मों के सेट पर उपस्थित रहते थे।
प्रदीप कुमार मीना कुमारी से शादी करना चाहते थे मगर अपने परिवार और बच्चों का खयाल कर हिम्मत नहीं जुटा पाए। मीना को वह दिल से चाहते थे, उनका सम्मान करते थे। इसी कारण उन्होंने अपनी एक बेटी का नाम तक मीना कुमारी के नाम पर रखा था। लगातार शराबनोशी के कारण मीना कुमारी बीमार हुईं और 31 मार्च, 1972 को उनका निधन हो गया। कमाल अमरोही और प्रदीप कुमार, जिनकी कभी आमने-सामने बातचीत भी नहीं हुई थी, के बीच की कड़वाहट भी मीना कुमारी के निधन के साथ खत्म हो गई। ‘शंकर हुसैन’ (1977) इसका उदाहरण थी, जिसके संवाद अमरोही ने लिखे थे और उन्होंने अपने निर्माता बेटे ताजदार से फिल्म में प्रदीप कुमार को लेने की सिफारिश की थी। बाद में जब अमरोही ने 1983 में ‘रजिया सुल्तान’ बनाई, तब भी प्रदीप कुमार को उसमें लिया। यह था प्रदीप कुमार के व्यक्तित्व का कमाल, जिसकी अनदेखी कमाल अमरोही नहीं कर सके थे।
