वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने मोदी सरकार कैबिनेट विस्तार को इवेंट करार दिया है और मोदी सरकार पर निशाना साधा है। अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, मोदी सरकार का एक पैटर्न है। वह अपनी छवि बदलने के लिए एक ईवेंट का आयोजन नहीं करती है। मंत्रिमंडल में बदलाव एक ईवेंट था। इसके आस-पास कई ऐसे छोटे-छोटे ईवेंट आयोजित किए जाएंगे जिनके क्रम से एक धारणा बनेगी कि सरकार वापस काम करने लगी है।
रवीश ने लिखा, मई के महीने से कई मुद्दों को आज़माया गया और इसी क्रम में मंत्रिमंडल में बदलाव किया गया। श्रम मंत्री संतोष गंगवार को हटा दिया गया। लेकिन उन्हें बेरोज़गारी का आंकड़ा देने से कौन रोक रहा था, कोरोना के समय में कितने लोगों की नौकरी गई, उनकी क्या स्थिति है इसे लेकर कोई सर्वे नहीं हुआ।
इस दौरान श्रम मंत्रालय को यह काम अपने आप करना चाहिए था। ज़ाहिर है कोई नहीं करने दे रहा था क्योंकि बेरोज़गारी के आंकड़े आते तो हंगामा मचता। 2019 में ही जब बेरोज़गारी के आंकड़े देने की व्यवस्था बंद की गई और कहा गया कि नई व्यवस्था आएगी, उसके बाद से नई व्यवस्था का अता-पात नहीं है।
उन्होंने आगे लिखा, अब लोग भूल चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों से कहा था कि कोरोना से संबंधित आंकड़ों को न छुपाएं। बताएं। कुछ नहीं हुआ। आप आज तक नहीं जानते हैं कि कोरोना से दूसरी लहर में कितने लोग मरे। सरकार के आंकड़ों को मीडिया ने प्रमाण के साथ चुनौती दी लेकिन सरकार ने आराम से किनारे लगा दिया। विपक्षी दलों की सरकारों ने भी एलान किया कि मरने वालों की संख्या बताने के लिए वे अपने स्तर पर पहल करेंगे। कुछ नहीं हुआ।
रवीश ने अपनी पोस्ट में कुंभ बनाम यूरो कप की तुलना और कोरोना की तीसरी लहर की आशंका पर टिप्पणी करते हुए लिखा, यूरोप के कई देशों में हुए यूरो कप की तस्वीरों को दिखा कर कहा जा रहा है कि पश्चिम का मीडिया इस तरह के आयोजन पर चुप है। भारत का मीडिया चुप है।
पश्चिम का मीडिया भारत को बदनाम करने के लिए कुंभ के आयोजन की तस्वीरों को छाप रहा था। इस चालाकी को समझिए। मार्च, अप्रैल और मई का महीना याद कीजिए। क्या उस दौरान लोग बिना आक्सीजन, वेंटिलेटर और दवाओं के नहीं मर रहे थे? क्या उस वक्त श्मशानों में लाशों की लाइन नहीं लगी थी? क्या उस वक्त सरकार मरने वालों की संख्या कम नहीं बता रही थी? लोगों को मरता छोड़ सरकार नदारद थी।
केंद्र सरकार की नीतियों पर अक्सर हमलावर रहने वाले रवीश कुमार ने आगे लिखा, मेरा मानना है कि यूरो कप और विंबलडन में भीड़ की इजाज़त न दी जाती तो दुनिया में बेहतर संदेश जाता कि कोरोना की तलवार अभी भी सर पर लटक रही है। यह बिल्कुल ज़रूरी नहीं था। हमें याद रखना चाहिए कि ब्रिटेन अपने नागरिकों को दोनों डोज़ देने के मामले में भारत से कहीं ज्यादा बेहतर स्थिति में है।
विबंलडन और क्रिकेट के मैच के दर्शकों के व्यवहार में आप कोई तुलना नहीं कर सकते। याद कीजिए 12 मार्च को जब अहमदाबाद में क्रिकेट मैच हुआ तब बिना किसी खास सतर्कता के 57000 दर्शकों को स्टेडियम में आने दिया गया। जब टीका नहीं था तब इसकी अनुमति क्यों दी गई?
रवीश ने कहा कि इस बार कुंभ को लेकर पश्चिमी मीडिया में तमाम बातें इसलिये छपीं, क्योंकि कोरोना की तैयारी ज़ीरो थी। सबको दिख रहा था कि लोग सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं। सरकार की तैयारी का दावा झूठा साबित हो रहा है। तब सवाल उठा कि लोग मर रहे हैं और देश का मुखिया रैलियों में भाषण दे रहा है। कुभ में लाखों लोगों के आने की अपील कर रहा है। तब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा था कि मां गंगा के आशीर्वाद से कोरोना नहीं होगा।
क्या इस तरह के अवैज्ञानिक बयानों से भारत की छवि ख़राब नहीं हो रही थी? कमी पश्चिमी मीडिया की नहीं थी और न है, कमी है मोदी सरकार की जिसने लोगों की जान बचाने की तैयारी भी नहीं की और तरह तरह के झूठ भी बोले।