Nawazuddin Siddiqui: नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज किसी पहचान के मुहताज नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव बुधाना से निकल कर बॉलीवुड में पहचना बनाना नवाज के लिए आसान नहीं था। कद काठी छोटा होने और सांवले होने के चलते उनको कई रिजेक्शन झेलने पड़े। माना जाता है कि बॉलीवुड में लक और मेहनत दोनों का साथ हो तो कोई भी अपनी बुलंदी पा सकता है। नवाज के साथ भी ऐसा ही हुआ। अपनी पढ़ाई खत्म कर नवाजुद्दीन दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन ले लिया। इसके बाद वे साल 2004 में मुंबई चले गए। यह साल उनकी जिंदगी के सबसे बुरे दिनों में से एक था। उन दिनों पैसे ना होने के कारण वे किराए के मकान में भी नहीं रह सकते थे। इसलिए उन्होंने अपने एक सीनियर की मदद ली। वे उनके घर रहने लगे। लेकिन वहां उन्हें अपने और सीनियर का पूरा खाना खुद बनाना पड़ता था।
मुंबई पहुंचने के बाद नवाज फिल्मों में एक रोल करने को लेकर लगातार स्ट्रगल कर रहे थे। किसी तरह फिल्मों में इंट्री हो गई लेकिन जब नवाज अपने गांव जाते लोग उनको गाली दिया करते थे। दरअसल नवाज फिल्में तो कर रहे थे लेकिन उनकी कद काठी और रंग देखकर काफी छोटे रोल ऑफर होते थे। मुंबई में एक्टर बनने गए किसी के लिए बस किसी रोल की दरकार होती है। वो रोल छोटा हो या बड़ा ये मायने नहीं रखता। नवाज भी यही कर रहे थे। लेकिन इन छोटे रोल में नवाज को गांव वाले देखकर काफी गाली देते थे। उनके पिता भी कहते कि क्या फिल्मों में पीटकर आ जाता है।
बता दें कि नवाज ने अपने करियर की शुरुआत आमिर खान की फिल्म सरफरोश से की थी। इस फिल्म में उनका रोल काफी छोटा था। इसके बाद उन्होंने कई बड़े एक्टर्स की फिल्मों के साथ मुन्ना भाई एमबीबीएस में छोटा किरदार निभाया। इन्हीं फिल्मों में किए रोल को लेकर मां-बाप काफी कोसते थे। उनकी किस्मत और छवि तब बदली जब अनुराग कश्यप की फिल्म ब्लैक फ्राइडे और गैंग्स ऑफ वासेपुर मिली। उन्होंने इस फिल्म में मुख्य कलाकार का किरदार निभाया। इसके बाद जब नवाज गांव गए तो लोग तालियां बजाईं और उनके पिता ने भी कहा कि, ‘अब मेरा बेटा पीटाकर नहीं पीटकर आया है।’ इसके बाद वे पीपली लाइव, कहानी, पान सिंह तोमर, बदलापुर, मांझी, बजरंगी भाईजान, बाबुमोशाय बंदूकबाज जैसी कई जानी मानी फिल्मों में नजर आए।
(और ENTERTAINMENT NEWS पढ़ें)