आप किसी से बेपनाह मुहब्बत करें और वो अचानक आपकी जिंदगी से गायब हो जाए। फिर क्या होगा। आपको सदमा लगेगा। सदमे को आप कुछ समय तक झेल जाते हैं। फिर एक लंबा वक्त बीत जाए और पता चले कि जिसे आपने चाहा वो किसी और की पत्नी बनने जा रही है। बल्कि यों कहें कि किसी और की नहीं बल्कि आपके किसी खास दोस्त की। फिर क्या होगा। डबल सदमा। क्या इस डबल सदमे को झेला जा सकता है। जाहिर है कि इस विषय पर और भी फिल्में बनीं हैं और ‘माई फ्रेंड्स दुल्हनिया’ भी इसी विषय पर है। फिल्म में एक रहस्य जरूर है और यही इसकी बड़ी खासियत है। ये दीगर बात है कि इससे मिलते जुलते विषय पर और भी फिल्में बनीं हैं।
आर्यन (मुदासिर जफर) और माहिरा (शाइना बावेजा) आपस में बेपनाह मुहब्बत करते हैं। हालात की वजह से दोनों अलग अलग शहरों में रहते हैं। आर्यन मुंबई में और माहिरा दिल्ली में। फिर भी दोनों का आपसी प्रेम कम नहीं होता। फिर आर्यन सोचता है कि अब शादी कर ही ली जाए। आखिर माहिरा के बिना जिंदगी कैसे कटे। शादी का प्रस्ताव लेकर वो दिल्ली आता है। लेकिन यह क्या? माहिरा उसे मिलती ही नहीं। अचानक कहीं गायब हो जाती है। आर्यन उसे बहुत ढूंढ़ता है लेकिन माहिरा नहीं मिलती। ऐसे में प्रेमी तो उदास होगा ही। सो आर्यन भी उदासी के दौर से गुजरने लगता है। एक लंबा वक्त बीत जाता है।
एक दिन आर्यन को एक दिन फोन आता है। उसे पता चलता है कि कश्मीर के भदरवाह से उसके दोस्त सज्जाद (सौरभ राय) की शादी होनेवाली है। उसके दोस्त हर्ष (मयूर मेहता) और स्नेहा (पूजा राठी) को भी इस शादी का निमंत्रण है। तीनों वहां जाना तय करते हैं। वहां जब वे पहुंचते हैं तो पूरा खुशी का माहौल है।
चारों दोस्त- आर्यन, हर्ष, स्नेहा और सज्जाद-एक साथ बैठते हैं और मौजमस्ती की बातें करते हैं। बात बात में सज्जाद को कहा जाता है कि अपनी होनेवाली दुल्हनिया का फोटो तो दिखाए। सजाद थोड़ा सकुचाते हुए फोटो दिखाता है। पर ये क्या? आर्यन को इस फोटो को देखकर जबरदस्त झटका लगता है। क्यों? इसलिए कि सज्जाद की होनेवाली दुल्हन कोई और नहीं बल्कि उसकी पुरानी प्रेमिका माहिरा है। क्या माहिरा से आर्यन पूछेगा कि वह अचानक उसे छोड़कर कहां चली गई और क्यों? माहिरा क्या कहेगी? क्या इसके बाद कहानी में कोई मोड़ आएगा या माहिरा सज्जाद की हो जाएगी?फिल्म औसत किस्म की है। विषय के खयाल से भी और अभिनय के खयाल से भी। ये मुख्य रूप से संगीत पर टिकी है। वही इसकी ताकत है। अगर ताकत है तो इसके तीन गाने अच्छे हैं। एक तो ‘मस्ती में…’ बोल वाला जो यात्रा के मिजाज वाला है। दूसरा है ‘रेडियो सी बातें…’ बोल वाला जो मधुरता लिए हुए है। और तीसरा है ‘नच ले रे…’ बोल वाला जो ऊर्जा से भरा हुआ है। काश फिल्म भी उतनी ही ऊर्जावान होती।