राग भैरवी फिल्म संगीतकारों का प्रिय राग रहा है। इसका इस्तेमाल लगभग हर संगीतकार ने किया और उन्हें कभी निराश नहीं होना पड़ा। सहगल ने ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए…’, रफी ने ‘इंसाफ का मंदिर है ये भगवान का घर है…’, मन्नाडे ने ‘लागा चुनरी में दाग…’, महेंद्र कपूर ने ‘मेरे देश की धरती…’ जैसे गाने भैरवी में गाए और सभी लोकप्रिय हुए। मगर भैरवी मेहरबान हुई शंकर-जयकिशन पर और यह जोड़ी ‘आवारा हूं…’, ‘घर आया मेरा परदेसी…’, ‘जीना यहां मरना यहां…’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ…’, ‘मैं पिया तेरी तू माने या न माने…’, ‘दिल अपना और प्रीत पराई…’ जैसे गानों के दम पर चोटी पर जा पहुंची। यहां तक कि जयकिशन ने अपनी बेटी का नाम भैरवी रख इस राग के प्रति अपनी श्रद्धा जताई।
लेकिन संगीत बैठकों के सबसे अंत में गाए जाने वाले इस राग में बिठाया दान सिंह का गाना ‘जिक्र होता है जब कयामत का तेरे जलवों की बात होती है, तू जो चाहे तो दिन निकलता है तू जो चाहे तो रात होती है…’ आज भी संगीतप्रेमियों को भाव-विभोर कर देता है। आनंद बख्शी ने 1970 की ‘माय लव’ में यह गाना लिखा था। दूसरा गाना था ‘वो तेरे प्यार का गम…’ दोनों ही गाने मुकेश ने गाए थे। ‘वो तेरे प्यार का गम…’ गाने के बाद तो मुकेश ने दान सिंह से कहा था कि यह गाना दान सिंह को लंबे वक्त तक जिंदा रखेगा। ‘जिक्र होता है जब कयामत का…’ सुनने के बाद मशहूर संगीतकार मदन मोहन ने कहा था, ‘भैरवी का इस्तेमाल तो हम भी करते हैं लेकिन तुमने कौनसा सुर लगाया है।’ भैरवी में बिठाए इस गाने ने दान सिंह को निधन के बाद भी जिंदा रखा है।
मगर इस गुणी संगीतकार की मात्र चार फिल्में -‘माय लव’, ‘तूफान’, ‘बवंडर’ और ‘भोभर’ (राजस्थानी) रिलीज हुई। चार फिल्में-‘रेत की गंगा’, ‘भूल न जाना’ (भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी), ‘मतलबी’ और ‘बहादुरशाह जफर’ कभी पूरी नहीं हुर्इं। फिल्म इंडस्ट्री ने उनकी कदर नहीं की, जैसे कब्बन मिर्जा की नहीं की थी। कब्बन आॅल इंडिया रेडियो के मुंबई स्टेशन पर उद्घोषक थे। वे वापस रेडियो की दुनिया में चले गए। रेडियो की दुनिया से ही आए थे दान सिंह। युवावस्था में जब उन्होंने सुमित्रानंदन पंत की कविता को संगीतबद्ध किया था, तो इस मशहूर कवि ने उन्हें गले लगा लिया था। दान सिंह ने कई साहित्यकारों की रचनाओं को सुरीला बनाया। फिल्मजगत में जब उनकी कदर नहीं हुई, तो वे भी वापस रेडियो की दुनिया में जयपुर चले गए। मगर दान सिंह भैरवी में बिठाए अपने गाने, ‘जिक्र होता है जब कयामत का…’ के जरिए आज भी संगीत प्रेमियों की यादों में समाए हैं।
