आरती सक्सेना

बालीवुड में निर्माता-निर्देशक से लेकर वितरक, हर कोई असुरक्षा की भावना से जूझ रहा है। लिहाजा वे अपनी फिल्म को लेकर कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं। मुनाफा न भी मिले, पर लागत निकल आए, इस मानसिकता के साथ वे अपनी फिल्में सिनेमाघर में रिलीज करने के बाद जल्द ही ओटीटी पर प्रदर्शित करवा देते हैं। इसी असुरक्षा के कारण निर्माता ओटीटी के साथ फिल्म प्रदर्शन से पहले ही सौदा कर लेते हैं। अगर फिल्म छविगृहों में सफल भी है तो भी वह एक महीने बाद ओटीटी पर आ जाती है। इस वजह से फिल्मों के सिनेमाघरों में लंबे समय तक चलने का दौर भी खत्म होता लग रहा है…

सिनेमाघरों में फिल्म प्रदर्शन से पहले ही सौदा हो जाता है कि कितने महीने बाद वह ओटीटी पर दिखाई जाएगी। इसके लिए एक महीने की अवधि होती है। लेकिन असुरक्षा के कारण कई बार वितरक के साथ मिलकर निर्माता फिल्म निर्धारित तिथि से पहले ओटीटी पर दिखा देता है। जैसे कि धाकड़ फिल्म निर्धारित समय से पहले ही ओटीटी पर आने वाली है।

इसी तरह सम्राट पृथ्वीराज फिल्म भी तय की गई अवधि से पहले ही ओटीटी पर आने की खबर है। कुछ फिल्में ऐसी भी थीं जो सफल होने के बावजूद अनुबंध के तहत ओटीटी पर दिखा दी गईं। इनमें भूल भुलैया-2 छविगृह में कमा भी रही थी। राजा मौली के अनुसार कोई भी फिल्म तीन महीने के बाद ही ओटीटी पर रिलीज होनी चाहिए। इसी के कारण राजामौली ने अपनी फिल्म आरआरआर और केजीएफ-2 ओटीटी पर जल्दी प्रदर्शित नहीं कीं, क्योंकि उनके अनुसार फिल्म देखने का असली मजा सिनेमाघर में ही है। कई बड़ी फिल्में और हालीवुड फिल्में ओटीटी पर नहीं दिखाई जातीं क्योंकि वे छविगृहों में ही अच्छी कमाई कर लेती हैं। उन्हें ओटीटी की जरूरत नहीं पड़ती।

तीन साल में कोविड के कारण ओटीटी मंच ने जहां दर्शकों को दीवाना बना लिया है, वहीं अब छविगृह पूरी तरह खुलने के बावजूद दर्शक नहीं पहुंच रहे हैं। वैसे तो इसके पीछे काफी वजहें हैं। इनमें कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य को लेकर चिंता, महंगा टिकट और ओटीटी पर अच्छी सामग्री ने दर्शकों को सयाना बना दिया है। लिहाजा दर्शक अब सिनेमाघर तभी जाते हैं जब सलीके से बनाई गई कोई फिल्म आती है। उसमें ग्राफिक और वीएफ एक्स का शानदार प्रदर्शन होता हो। या फिर हालीवुड की कोई फिल्म हो। लेकिन इन सबके साथ सिनेमाघरों में फिल्मों की विफलता का कारण हर फिल्म का एक महीने बाद ओटीटी पर दिखाया जाना है। इससे पहले कोई भी फिल्म ओटीटी पर चार से छह महीने बाद ही दिखाई जाती थी। उसके बाद ओटीटी पर फिल्में तीन महीने बाद प्रदर्शित होने लगीं।

कुछ समय पहले तक ओटीटी पर फिल्म प्रदर्शन की अवधि आठ हफ्ते की थी। यही कारण है कि दर्शक छविगृह में जाकर अपना पैसा और वक्त बर्बाद करने के बजाय वही फिल्म ओटीटी पर देखने लगा है। इसी वजह से कई फिल्में अच्छी होने के बावजूद दूसरे-तीसरे हफ्ते में ही दम तोड़ देती हैं। फिर चाहे जुग जुग जीयो हो, रन वे 34 हो या जर्सी ही क्यों न हो, तकरीबन हर फिल्म सिनेमाघर में एक हफ्ते से ज्यादा नहीं चल रही।

अपवाद के रूप में भूल भुलैया-2 फिल्म ने अच्छा कारोबार किया। इसके पीछे खास वजह है दर्शकों के बीच आज भी डरावनी फिल्मों के प्रति आकर्षण बना हुआ है। इसके अलावा अभिनेता कार्तिक आर्यन के प्रशसंक भी बहुत ज्यादा हैं। भूल भुलैया-2 अच्छी चलने के बावजूद एक महीने बाद ही ओटीटी पर आ गई क्योंकि निर्माता ने एक महीने का सौदा पहले से कर रखा था। भूल भुलैया-2 का अच्छी कमाई होने के बावजूद ओटीटी पर प्रदर्शित कर दी गई।

इससे साफ है कि इस व्यवस्था में जल्द सुधार नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब सिनेमाघरों को भारी नुकसान से गुजरना पड़ेगा। दर्शकों का छविगृहों से मुंह मोड़ना फिल्म उद्योग के लिए अच्छा नहीं होगा। ऐसे में बहुत जरूरी है निर्माता अपनी वर्तमान स्थिति को मजबूत करने के बजाय भविष्य की चिंता करें, क्योंकि अगर नुकसान के कारण सिनेमाघर बंद होने लगे तो उनकी फिल्में कहां रिलीज होंगी? लिहाजा बहुत जरूरी है ओटीटी मंच पर फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघरों में आने के छह महीने बाद ही रखा जाए।