Mahabharat 13 April 2020 Updates: भारत की ये कहानी सदियों से भी पुरानी है। राजा द्रुपद की कन्या द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना कुंती और पांचों पांडवों को लगती है। द्रोपदी के जन्म की कहानी सुन कुंती उसके दर्शन को लालायित होती हैं। वह भी स्वयंवर में जाने की बात कहती हैं। बता दें द्रुपद अपनी बेटी का विवाह अर्जुन से करना चाहते थे। लेकिन द्रौपदी के स्वयंवर से पहले ही लाक्षा गृह की घटना हो चुकी थी और सभी को लगता था कि पांचों पांडव और कुंती उस लाक्षा गृह की अग्नि की भेंट चढ़ गए। जबकि पांचों पांडव सकुशल उस गृह से बच निकलते हैं। द्रुपद की कन्या के स्वयंवर के बारे में सुन सभी भाई ब्राह्मण वेष में द्रौपदी के स्वयंवर में पहुंचते हैं।
मछली की आंख को भेद द्रोपदी का वर बनने को लेकर कर्ण आगे आते हैं और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने को होते ही हैं कि द्रोपदी को कृष्ण इशारे में मना कर देते हैं। इसके बाद द्रोपदी कर्ण को रोकते हुए कहती हैं- ‘वह कहती हैं कि मेरी वरमाला किसी सूत पुत्र के लिए नहीं बनी है।’ इसके बाद क्रोधित हो कर्ण स्वयंवर सभा में खुद को अपमानित महसूस करते हैं और कहते हैं कि ऐसे में आपकी वरमाला सूख जाएगी। दुर्योधन भी क्रोधित हो जाता है।
सुबह के एपिसोड में आपने देखा कि भीम पर राक्षस हमले कर देते हैं। भीम बैलगाड़ी लेकर राक्षस को मारने चल पड़ते हैं। रास्ते में भीम को भूख लग जाती है और वह राक्षस का खाना खाना शुरू कर देते हैं। इधर राक्षस बक्का को आभास होता है कि कोई मनुष्य उसका भोजन लेकर और भोजन बनकर पहुंच गया है। लेकिन वह यह नहीं जानता कि भीम राक्षस का वध करने आया है। भीम राक्षस का सारा खाना चट कर जाते हैं। राक्षस अपनी गुफा से बाहर निकलता है तो वह देखता है कि विशाल काया वाला भीम फलों के छिलके फैलाए बैठा खाना खा रहा है। राक्षस ये देख बौखला जाता है।
बक्का सुर और भीम के बीच युद्ध शुरू होता है। भीम राक्षस के दोनों सींग निकाल कर उसकी छाती में घोप देता है और राक्षस का अंत हो जाता है। ऐसे में भीम की विजय होती है। भीम इसके बाद अपनी मां और भाइयों के पास विजय होकर लौटता है। गांव वाले भीम को जिंदा देख कर खुश हो जाते हैं और उत्सव मनाते हैं। अब आगे…


द्रोपदी कर्ण को प्रत्यंचा चढ़ाने और मत्स्य संधार करने से ये कहते हुए रोक देती हैं कि वह किसी सूत पुत्र से विवाह नहीं करेंगी। कर्ण इससे अपमानित महसूस करते हैं जिसके बाद द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न कहता है कि अगर अर्जुन के साथ लाक्षा गृह की घटना नहीं होती तो ये नौबत नहीं आती। क्या इस सभा में कोई वीर नहीं है। ब्राह्मण वेष में मौजूद अर्जुन सब बातें सुनते रहते हैं। इसके बाद युधिष्ठिर से आशीर्वाद लेते हुए खुद वह आगे आते हैं ...
मछली की आंख को भेद द्रोपदी के वर बनने को लेकर कर्ण आगे आते हैं और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने को होते ही हैं कि द्रोपदी को कृष्ण इशारे में मना कर देते हैं।कर्ण को रोकते हुए वह कहती हैं कि मेरी वरमाला किसी सूत पुत्र के लिए नहीं बनी है। द्रोपदी से ऐसी बात सुन कर्ण भरी सभा में खुद को अपमानित महसूस करते हैं। वह कहते हैं कि ऐसे में आपकी वरमाला सूख जाएगी।
लाक्षा गृह की घटना को देखते हुए पांचों पांडव द्रोपदी के स्वयंवर में ब्राह्मण रूप में शामिल होते हैं। इस स्वयंवर में दुर्योधन के साथ कर्ण भी मौजूद होता है। पांडवों को ब्राह्मण रूप में देख कोई पहचान नहीं पाता है।
लाक्षा गृह की घटना को देखते हुए पांचों पांडव द्रोपदी के स्वयंवर में ब्राह्मण रूप में शामिल होते हैं। इस स्वयंवर में दुर्योधन के साथ कर्ण भी मौजूद होता है। पांडवों को ब्राह्मण रूप में देख कोई पहचान नहीं पाता है।
राजा द्रुपद की कन्या द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना कुंती और पांचों पांडवों को लगती है। द्रोपदी के जन्म की कहानी सुन कुंती उसके दर्शन को लालायित होती हैं। वह भी स्वयंवर में जाने की बात कहती हैं।
द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहाँ यज्ञकुंड से होता है। द्रोपदी को ‘यज्ञसेनी’ की भी संज्ञा दी गई। महाराज द्रुपद ने याज और उपयाज से उनके कहे अनुसार यज्ञ करवाया। उनके यज्ञ से प्रसन्न हो कर अग्निदेव ने उन्हें एक ऐसा पुत्र दिया जो सम्पूर्ण आयुध एवं कवच कुण्डल से युक्त होता है। उसके पश्चात् उस यज्ञ कुण्ड से एक कन्या उत्पन्न हुई, द्रोपदी।
बक्का सुर और भीम के बीच युद्ध शुरू हो जाताहै। भीम राक्षस के दोनों सींग निकाल कर उसकी छाती में घोप देता है और राक्षस का अंत हो जाता है। ऐसे में भीम की विजय होती है। भीम इसके बाद अपनी मां और भाइयों के पास विजय होकर लौटता है। गांव वाले भीम को जिंदा देख कर खुश हो जाते हैं और उत्सव मनाते हैं।
भीम बैलगाड़ी लेकर राक्षस को मारने चल पड़ता है। रास्ते में भीम को भूख लग जाती है औऱ वह राक्षस का खाना खाना शुरू कर देता है। इधर राक्षस बक्का को आभास होता है कि कोई मनुष्य उसका भोजन लेकर और भोजन बनकर पहुंच गया है। लेकिन वह यह नहीं जानता कि भीम राक्षस का वध करने आया है। भीम राक्षस का सारा खाना चट कर जाता है। राक्षस अपनी गुफा से बाहर निकलता है तो वह देखता है कि विशाल काया वाला भीम फलों के छिलके फैलाए बैठा खाना खा रहा है। राक्षस ये देख बौखला जाता है।
कुंती बोलती हैं कि मैं आपकी मदद करूंगी। मेरे 5 बेटे भी हैं । कुंती वचन देती हैं कि कल बक्का सुर राक्षस के पास एक कुंती पुत्र जाएगा। कुंती इस सारी घटना का वर्णन पांडवों के आगे करती है। वह कहती हैं कि क्षत्रीय होने के नाते मेरे पुत्रों का ये कर्तव्य है। पांचों पांडव अब लड़ने लगते हैं कि कौन राक्षस के पास जाएगा? अंत में निर्णय निकलता है कि भीम राक्षस को मारने जाएगा।
बक्का सुर- नगर के बाहर एक गुफा में रहता है जो यहां के मनुष्यों को पकड़ ले जाता है औऱ खा जाता है। ऐेसे में नगरवासी उसे हफ्ते में एक व्यक्ति औऱ भोजन देते हैं। कुंती को इस बारे में बताया जाता है।
कुंती के पुत्र भिक्षा लेकर वापस कुटिया में आते हैं। वहीं भीम भी हिडिम्बा के पास लौटते हैं। हिडिम्बा कहती है, कि स्वामी अब आपका जाने का वक्त आ गया है। आप अपने भाई औऱ माता जी के पास वापस जाने वाले हैं। हिडिम्बा मायूस हो जाती है। वह कहती है कि आप हमारे बेटे को भी अपने साथ ले जाएंगे? तो भीम कहते हैं बच्चे के लिए मां की गोद आवश्यक है। मैं अपने पौधे से उसकी भूमि नहीं छीन सकता। इसी के साथ ही भीम कुंती और अपने चारों भाइयों के पास आ जाते हैं।
जीवनयापन हेतु पांडू पुत्र घर घर जाकर भिक्षा मांग रहे हैं। इधर कुंती गहन सोच में डूबी हुई है। तभी एक महिला कुंती के पास आती है कुंती अपनी व्यथा को उसके सम्मुख दर्शा नहीं पाती। महलों में रहने वाले आज घर घर भिक्षा मांग रहे हैं औऱ कुंती मां कुटिया के एक कोने में बैठी है। सब विधाता का विधान है।
पांडव वारणाव्रत पहुंचते हैं। वहां दुर्योधन को खबर पहुंचती है कि वारणाव्रत में पांडवों और उनकी माता कुंती का अंत हो गया है। इस समाचार को सुन दुर्योधन बहुत ज्यादा खुश होता है वहीं शकुनि अपने भांजे से कहता है कि आज उसका सपना पूरा हुआ। शकुनि सपने देखने लगता है कि अब दुर्योधन हस्तिनापुर का महाराज बनेगा। अब उसके रास्ते का कांटा हट चुका है। इस समाचार को सुनने के बाद वह आशंका जताता है कि धृतराष्ट्र तो वनवास चले जाएंगे। हालांकि पांडव शकुनि और दुर्योधन की इस कूटनीति के बारे में जान गए थे। इस बीच वह पहले ही वारणाव्रत से सुरक्षित निकल गए थे। अब पांडवों की सूझबूझ का दुर्योधन को पता चलता है तो वह चकित रह जाता है।