Mahabharat 8th May 2020 Episode Online Updates: महाभारत का युद्ध भीषण होता जा रहा है। अर्जुन, जयद्रथ से कहते हैं कि तुम मेरे पुत्र के शव को हाथ नहीं लगाओगे अगर सूर्यास्त नहीं हुआ होता तो मैं तुम्हारा वध कर देता। अर्जुन, जयद्रथ से कहते हैं कि कल तुम सूर्यास्त नहीं देख पाओगे। अगर ऐसा हुआ तो मैं समाधि ले लूंगा। अर्जुन बेटे अभिमन्यु के शव को अग्नि को देते हैं। जयद्रथ, गुरुद्रोण से मिलने के लिए पहुंचते हैं और उन्हें सारी बात बताते हैं। दुर्योधन कहता है कि कल हमें जयद्रथ को बचाना होगा। अगर कल जयद्रथ बच जाएगा तो अर्जुन खुद समाधि ले लेगा और फिर हमारी जीत तय होगी।
अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि अब सूर्यास्त को बहुत देर नहीं है। अर्जुन रथ से उतर जाते हैं। वासुदेव कहते हैं कि नियम यह था कि जब कोई व्यक्ति रथ पर न हो तो उसे कोई योद्धा तीर नहीं मारेगा। अर्जुन रणभूमि पर रहकर दुर्योधन पर बाण चलाते हैं और दुर्योधन बुरी तरह घायल हो जाते हैं। वासुदेव और अर्जुन दोबारा रथ पर आ गए हैं। वासुदेव कहते हैं कि जयद्रथ का सिर कटकर भूमि पर न गिर जाए। जयद्रथ के पिता का वरदान था कि जो उसका सिर भूमि पर गिराएगा उसके सिर में एक विस्फोट होगा। इस बात का ध्यान रखना पार्थ कि जयद्रथ का सिर उसके पिता की गोद में कटकर गिरे। ऐसा बाण चलाना। उधर जयद्रथ परेशान है और वह प्रार्थना कर रहे है कि सूर्यास्त जल्दी हो जाए।
वहीं इससे पहले हमने देखा कि चारों तरफ त्रास्दी मची हुई है। सैनिक मारे जा रहे हैं, कुरुक्षेत्र की भूमि खून से सन गई है और लाल हो गई है। इधर, अभिमन्यु का भी युद्ध भूमि पर आगमन होता है। अभिमन्यु के समक्ष एक नहीं बल्कि कईं महाबलशाली योद्धा खड़े हैं। कर्ण, द्रोणाचार्य, शल्य, अश्वथामा, शकुनि, दुशासन, दुर्य़ोधन इन सभी से अभिमन्यु का मुकाबला है। कौरव पक्ष से अभिमन्यु डट कर मुकाबला करते हैं। तभी अचानक अभिमन्यु अपने रथ से नीचे गिर पड़ते हैं।
कौरव पक्ष को आभास होता है कि अभिमन्यु को परास्त करने के लिए वह पहली सीढ़ी पार कर चुके हैं। ऐसे में वह अपनी अपनी तलवारें लिए अभिमन्यु की तरफ बढ़ते हैं। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हार नहीं मानते वह एकाएक खड़े होते हैं।इधर,अर्जुन भी अकेले ही कईं महारथियों को युद्ध के मैदान में चित करते दिखाई देते हैं। अर्जुन और सुशर्मा के बीच भयंकर युद्ध हो रहा होता है। युधिष्ठर कहते हैं कि अर्जुन और सुशर्मा युद्ध भूमि से दूर चले गए हैं। यहां गुरुद्रोण भी अपने बिछाए जाल पर काम कर रहे हैं। चक्रव्यूह का निर्माण हो चुका है, बस अब चलाने की तैयारी में हैं।
अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि अब सूर्यास्त को बहुत देर नहीं है। अर्जुन रथ से उतर जाते हैं। वासुदेव कहते हैं कि नियम यह था कि जब कोई व्यक्ति रथ पर न हो तो उसे कोई योद्धा तीर नहीं मारेगा। अर्जुन रणभूमि पर रहकर दुर्योधन पर बाण चलाते हैं और दुर्योधन बुरी तरह घायल हो जाते हैं। वासुदेव और अर्जुन दोबारा रथ पर आ गए हैं। वासुदेव कहते हैं कि जयद्रथ का सिर कटकर भूमि पर न गिर जाए। जयद्रथ के पिता का वरदान था कि जो उसका सिर भूमि पर गिराएगा उसके सिर में एक विस्फोट होगा। इस बात का ध्यान रखना पार्थ कि जयद्रथ का सिर उसके पिता की गोद में कटकर गिरे। ऐसा बाण चलाना। उधर जयद्रथ परेशान है और वह प्रार्थना कर रहे है कि सूर्यास्त जल्दी हो जाए।
अर्जुन द्रोण से कहते हैं कि मेरे मार्ग से हट जाएं आज मुझे जयद्रथ के पास जाने से कोई नहीं रोक सकता। गुरुद्रोण कहते हैं कि मैं तुम्हारे मार्ग से नहीं हटूंगा। पहले मुझे मार्ग से हटाओ इसके बाद जयद्रथ के पास जाने के लिए आगे बढ़ना। अर्जुन और वासुदेव रथ लेकर युद्ध के मैदान से दूसरी ओर चले जाते हैं। इसके बाद अर्जुन दुशासन से युद्ध करता है। सूर्योदय होने से पहले उन्हें जयद्रथ का वध करना है ऐसे में वासुदेव कृष्ण योजना बनाते हैं। अर्जुन के सामने अश्वथामा होता है और दोनों के बीच युद्ध हो रहा होता है। अर्जुन, अश्वथामा को घायल कर कर्ण का सामना करता है। कर्ण घायल होकर रथ से नीचे गिर जाता है जिसके बाद अर्जुन जयद्रथ से सामना करने के लिए आगे बढ़ जाता है।
वासुदेव से अर्जुन कहते हैं कि मुझे जयद्रथ की ओर ले चलिए। वासुदेव अर्जुन को समझाते हैं कि कि कर्म और धर्म में फर्क समझो पार्थ। कल जयद्रथ ने महादेव का कवच पहना हुआ था इसलिए लक्ष्य को भेदने पर ध्यान दो पार्थ। तुम्हारी आंखों पर धूल जम चुकी है। लेकिन अर्जुन कृष्ण की नही सुनते और कहते हैं कि मुझे जयद्रथ के पास ले चलिए। युद्ध के मैदान में जयद्रथ के साथ सभी कौरव हैं और उसने आचार्य द्रोण के कमल चक्रव्यूह का कवच पहना हुआ है, जिसे तोड़ना बहुत ज्यादा मुश्किल है।
भीष्म पितामह के पास अर्जुन आते हैं। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु से बहुत दुखी हैं और रोते हुए भीष्म पितामह से कहते हैं कि आज के युद्ध में अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो गया है। रोते हुए अर्जुन कहते हैं कि गुरुद्रोण आचार्य, अश्वथामा, दुर्योधन, दुशासन, शकुनि और कर्ण ने उसका वद्ध कर दिया। अर्जुन की बात सुनकर भीष्म कहते हैं कि लेकिन निर्णय तो यह लिया गया था कि एक से एक लड़ेगा। अर्जुन कहते हैं कि लेकिन इसका किसी ने पालन नहीं किया। सात योद्धाओं ने मेरे पुत्र को घेरकर मार डाला।
अभिमन्यु की मृत्यु ने सभी को हिला कर रख दिया है। कुंती कहती हैं कि आज रणभूमि में जो कुछ भी हुआ उसे टाला जा सकता था। कुंती को दुखी देखकर गांधारी उन्हें दिलासा देती हैं। एक तरफ कुंती परेशान हैं तो दूसरी ओर गांघारी को भी नींद नहीं आ रही है। दोनों ही सोते हुए रो रही होती हैं। देर रात गांधारी कुंती के पास आकर उन्हें अपनी व्यथा बताती है।
महाभारत का युद्ध भीषण होता जा रहा है एक तरफ कुंती परेशान हैं तो दूसरी ओर गांघारी को भी अपने पुत्रों की चिंता सता रही है। दोनों ही सोते हुए रो रही हैं। देर रात गांधारी कुंती के पास आती हैं। दोनों को नींद नहीं आ रही होती है। गांधारी कहती हैं कि जिन मां के पुत्र रणभूमि में होते हैं उन्हें न तो नींद आती है और न जगा जाता है।
अर्जुन और सुशर्मा के बीच भयंकर युद्ध होता है। युधिष्ठर कहते हैं कि अर्जुन और सुशर्मा युद्ध भूमि से दूर चले गए हैं। वहीं गुरुद्रोण भी अपने बिछाए जाल पर काम करते हैं। चक्रव्यूह का निर्माण होता है और अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं।
महाभारत का युद्ध भीषण होता जा रहा है। अर्जुन, जयद्रथ से कहते हैं कि तुम मेरे पुत्र के शव को हाथ नहीं लगाओगे अगर सूर्यास्त नहीं हुआ होता तो मैं तुम्हारा वध कर देता। अर्जुन, जयद्रथ से कहते हैं कि कल तुम सूर्यास्त नहीं देख पाओगे। अगर ऐसा हुआ तो मैं समाधि ले लूंगा। अर्जुन बेटे अभिमन्यु के शव को अग्नि को देते हैं। जयद्रथ, गुरुद्रोण से मिलने के लिए पहुंचते हैं और उन्हें सारी बात बताते हैं। दुर्योधन कहता है कि कल हमें जयद्रथ को बचाना होगा। अगर कल जयद्रथ बच जाएगा तो अर्जुन खुद समाधि ले लेगा और फिर हमारी जीत तय होगी।
इधर शकुणि कहता है कि अर्जुन का अंत कल निश्चित है। जयद्रथ के वध के साथ उसके पिता का श्राप भी चल रहा है। पुत्र मोह पिता से क्य़ा नहीं कराता। इधर, जयद्रथ परेशान नजरआता है। वह कहता है कि मैं तो सिंधु लौटने की सोच रहा हूं। तभी शकुणि कहता है कि आप चिंता न करें, कि अर्जुन के बाणों से हम कल आपको बताएंगे। दुर्य़ोधन कहता है कि आप चले गए तो मेरी सैना भयभीत हो जाएगी। जयद्रथ फंस जाता है औऱ दुर्य़ोधन क बातों में आ जाता है। (राम बाण की ही तरह है अर्जुन का बाण चूक न करसकता कभी जब करले संधार, दिए जा रहे सांत्वना जयद्रथ को सब लोग, पर सबके मन खा रहा भय का भीषण रोग....)
इस बीच अर्जुन प्रतिज्ञा करते हैं कि अगर उन्होंने सुबह होने से पहले जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह अग्नि समाधि ले लेंगे। अंतिम संस्कार के वक्त गुरु द्रोण, दुर्योधन भी वहां अन्य लोगों के साथ पहुंचते हैं। अर्जुन कहते हैं कि मेरे पुत्र के अंतिम संस्कार मे आपका स्वागत है। दुर्योधन कड़वे वचनों के साथ कहता है कि अब तुम्हारी बारी है। तभी गुरु द्रोण कहते हैं कि वह महारथी के शव को नमन करने आए हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं उठो पुत्री और अपने पति वो वीरबलिदानियों की तरह विदा करो। ऐसी मृत्यु किसी किसी को मिलती है। यह ऐसे योद्धाओँ से लड़ा है जिनसे सेनाएं नहीं लड़ सकतीं। अग्नि के चारों ओर घूमते हुए इसने जो वचन तुम्हें दिए थे, उनसे इसे मुक्त कर दो। इसी के साथ ही श्रीकृष्ण कहते हैं पार्थ अभिमन्यु को उसकी अंतिम यात्रा के लिए तैयार करो। अब अर्जुन रो पड़ते हैं।
केशव अर्जुन को समझाते हैं कि अभिमन्यु के इस बलिदान पर गर्व करो, वह वीर बलिदानी बड़े बड़े महारथियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ है। अब अर्जुन अपने पुत्र का पार्थिव शरीर मांगते हैं। वह श्रीकृष्ण औऱ सेना से पूछते हैं कि मेरे पुत्र का शव कहां है? ऐसे में एक बार फिर से सन्नाटा पसर जाता है। अर्जुन पुत्र के पार्थिव शरीर के पास पहुंचते हैं। वह पुत्र वधु को बताते हैं कि भूमि पर खून से लथपथ यह मेरा पुत्र नहीं बल्कि बल्कि उसकी आत्मा का वस्त्र है।
अर्जुन रोते हुए सबसे एक ही सवाल पूछते हैं मेरे अभिमन्यु का स्थान रिक्त क्यों है? ऐसे में वह श्रीकृष्ण से पूछते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भागते नहीं है उन्हें किसी न किसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त होना पड़ता है।हमारा अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ है। कैशव की बात सुन अर्जुन जोर जोर से रो पड़ते हैं।
अब सारथी केशव से अर्जुन कहते हैं कि अब चलिए यहां से पार्थ मेरा मन बहुत घबरा रहा है। लगता है कुछ अनहोनी हो गई है। श्रीकृष्ण को इस बारे में सब पता होता है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अपने आप पर काबू रखो। इधर युधिष्ठर को सदमा लगता है कि अब महावीर अभिमन्यु नहीं रहे। शिविर में सन्नाटा छाया हुआ है। ये देखते ही अर्जुन सवाल पूछते हैं कि ऐसा क्यों? अर्जुन धीरे धीरे अपने कदम आगे बढ़ाते हैं और युधिष्ठर के पास पहुंचते हैं। अर्जुन सैनिक से पूछते हैं कि क्या हुआ सैनिक? महाराज को बंदी बना लिया गया है क्या? सैनिक बताते हैं कि गुरू द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की थी। अर्जुन समझ जाते हैंकि इससे तो सिर्फ मैं ही बाहर निकल सकता था। इसके बाद अर्जुन पूछते हैं चक्रव्यूह में अभिमन्यु तो नहीं गया था ना? अर्जुन अब समझ जाते हैं।
कुरुक्षेत्र से मां को अभिमन्यु का पुत्र आता है। पत्र पढ़ कर वह बहुत भावुक हो जाती हैं। अभिमन्यु का वध हो चुका है। इस खबर को सुन कर अभिमन्यु की माता जोर जोर से रोने लगती हैं। इधर, धृतराष्ट्र युद्ध का हाल समाचार सुनाया जाता है। जिसमें धृतराष्ट्र कहते हैं, अभिमन्यु के साथ ऐसा होने और मौत के घाट उतारने पर कौरवों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। अभिमन्यु की मां भी रो रो कर श्रीकृष्ण से कहती हैं कि वह अपना अभिमन्यु वापस चाहती हैं। 'मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं, मुझे मेरा अभिमन्यु चाहिए।'