फिल्म- मां
डायरेक्टर- विशाल फुरिया
स्टारकास्ट- काजोल, रॉनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता और अन्य
रन टाइम- 2 घंटे 13 मिनट
रेटिंग- 3.5/5

दुनिया में कई रिश्ते होते हैं, जिन पर दाग लग सकते हैं। लेकिन ‘मां’ का जो रिश्ता होता है वह अनमोल होता है। एक पल के औलाद कुपुत्र-कुपुत्री हो सकती है लेकिन, माता कुमाता नहीं हो सकती है। मां और बच्चे का जो रिश्ता होता है वो अमूल्य होता है। ‘मां’ केवल शब्द नहीं बल्कि ये वो शक्ति है, अपने बच्चे और परिवार के लिए दुनिया की किसी भी ताकत से लड़ सकती है। मां के आंचल और दूध का कर्ज ना कोई उतार पाया है और ना उतार पाएगा। मां अनमोल हैं।

दरअसल, भारतीय सिनेमा में हर रिश्ते को बहुत ही बारिकियों के साथ दिखाया गया है। हम मां की चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि काजोल अपनी एक फिल्म लेकर आई हैं, जिसका टाइटल ही सिर्फ ‘मां’ है। अब आप सोच रहे होंगे कि मां क्यों और इसमें ऐसा क्या है, जो सिर्फ ढाई अक्षर से ही फिल्म को पारिभाषित कर दिया गया। ये एक माइथोलॉजिकल हॉरर फिल्म है, जिसमें पौराणिक कथाओं पर आधारित है। काजोल अभिनीत ये फिल्म अजय देवगन की ‘शैतान’ यूनिवर्स की फ्रेंचाइजी है। ऐसे में अगर आप इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो चलिए बताते हैं इस फिल्म के बारे में।

समाज की कुंठित सोच पर प्रहार करती है ‘मां’ की कहानी

भारत के इतिहास में कई कुरीतियां रही हैं, जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को नीचा दिखाने और दबाने का काम किया है। सदियों से भ्रूण हत्या सबने देखा। सती प्रथा का दर्द सहा। आज भले ही हम आधुनिक और इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन, महिलाओं और लड़कियों के प्रति कई जगह ऐसी हैं, जहां पर सोच आज भी बाबा आदम के जमाने की है। पौराणिक कथाओं में कई डरावनी कहानी रही हैं, जो रूह कंपा देने वाली है। इसी में से एक कहानी राक्षस रक्तबीज और अमसजा की रही है, जिसका एक छोटा सा अंश काजोल की फिल्म ‘मां’ में दिखाया गया है। रक्तबीज का नरसंहार तो देवी काली ने कर दिया था। लेकिन, उसके रक्त की एक बूंद से जन्मा अमसजा की कहानी को फिल्म ‘मां’ में दिखाया गया है।

काजोल की फिल्म ‘मां’ की कहानी भले ही पौराणिक कहानी से प्रेरित है मगर ये समाज की कुंठित पर प्रहार करती है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा ऐसे ही नहीं सफल है। बेटियों को लेकर फिल्म में समाज की सोच पर वार किया गया है। इसकी कहानी पश्चिम बंगाल के चंद्रपुर से शुरू होती है, जो कुरीतियों का शिकार होता है। यहां से निकला एक परिवार अंबिका (काजोल) और शुभांकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) अपने बेटी के साथ कुंठित सोच के गांव से दूर रहता है। लेकिन, बाद में कुछ ऐसे ट्विस्ट आते हैं, जिसके बाद कहानी मोड़ लेती है और अंबिका पर फिल्म आकर टिक जाती है, जो बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) को बचाने के लिए शैतान से भी लड़ जाती है। इसकी पूरी कहानी को समझने के लिए आपको सिनेमाघर का रुख करना होगा।

काजोल ने दी दमदार परफॉर्मेंस, जानें बाकी कलाकारों की एक्टिंग

माइथोलॉजिकल हॉरर फिल्म ‘मां’ में काजोल की परफॉर्मेंस देखने लायक है। इसमें वो अंबिका के रोल में हैं, जो कि एक वर्किंग वुमन हैं। वो शहर में पली-बढ़ी हैं। कामकाजी महिला के साथ ही परिवार का बखूबी ख्याल रखती हैं। पौराणिक कथाओं में विश्वास रखती हैं साथ ही परिवार और बेटी के लिए किसी से भी लड़ने का दम रखती हैं। अंबिका के रोल के लिए काजोल से परफेक्ट तो कोई हो ही नहीं सकता। एक्ट्रेस ने अपनी रोल के साथ न्याय किया है लेकिन, उनके कॉस्ट्यूम आपको निराश करते हैं। खासकर मां काली की पूजा और गीत में।

फिल्म में रॉनित रॉय भी हैं, जो पहले चंद्रपुर के सरपंच जॉयदेव होते हैं लेकिन, बाद में ट्विस्ट आता है और कहानी आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि वो राक्षस अमसजा होते हैं। शुरुआत में तो उनके लुक को देखकर यकीन कर पाना मुश्किल होता है। फिल्म में उनका कमाल का ट्रांसफॉर्मेशन देखने के लिए मिलता है, जो काफी इंप्रेसिव है। वहीं, खेरिन शर्मा चाइल्ड आर्टिस्ट हैं, जो काजोल की बेटी श्वेता के रोल में हैं। वो डरी सहमी से बच्ची के रोल में अच्छा करती हैं। फिल्म में जतिन गुलाटी (सरफराज), इंद्रनील सेनगुप्ता (काजोल के पति शुभांकर), सुर्ज्याशिक्षा दास (नंदिनी) अपने-अपने रोल में खूब जंचते हैं।

कसा हुआ डायरेक्शन

काजोल की फिल्म ‘मां’ का डायरेक्शन विशाल फुरिया ने किया है। उन्होंने कहानी के अनुसार एकदम कसा हुआ निर्देशन किया है। लेकिन, फिल्म का स्क्रीनप्ले शुरुआत में थोड़ा स्लो है मगर कहानी के साथ ही ये रफ्तार पकड़ लेती है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है तो सस्पेंस भी वैसे ही बढ़ते जाते हैं लेकिन, क्लाइमैक्स के करीब आते-आते हर राज खुल जाते हैं। फिल्म की कहानी आपको कुर्सी से बांधे रखती है और पलक भी नहीं छपका पाते हैं। काजोल का ऐसा अवतार पहली बार देखा गया है। विशाल ने अपने डायरेक्शन से फिल्म में जान फूंक दी है।

गाने अच्छे हैं मगर निराश करते हैं बैकग्राउंड स्कोर

कजोल की फिल्म ‘मां’ के गाने और बैकग्राउंड स्कोर की बात की जाए तो इसमें खास गाने नहीं हैं लेकिन, जो भी हैं ठीक हैं। एकाध गाने हैं, जो आपको अच्छे लगेंगे। काली की अराधना वाला सॉन्ग ‘काली शक्ति’ जोश से भरपूर होता है लेकिन, इसमें कोरियोग्राफी की कमी दिखती है और कॉस्ट्यूम डिजाइन भी अट्रेक्ट नहीं करता है। मगर गाना अच्छा लगता है। वहीं, फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर की बात की जाए तो ये खास नहीं लगते हैं। फिल्म का म्यूजिक ‘सिंघम’ टाइप की फिल्मों की तरह रिंग करता हुआ दिखता है। कुल मिलाकर इसका म्यूजिक ठीक-ठाक कह सकते हैं।

‘मां’ देखें या नहीं

इसके साथ ही अंत में अगर काजोल की फिल्म ‘मां’ को देखने और ना देखने की बात की जाए तो आप इसे फैमिली के साथ देख सकते हैं लेकिन, छोटे बच्चे कुछ सीन्स देखकर डर सकते हैं। अगर आप हॉरर फिल्मों के दीवाने हैं और डरावनी चीजें देखना पसंद करते हैं। माइथोलॉजी में विश्वास रखते हैं तो आपके लिए ये एक परफेक्ट एंटरटेनमेंट है। फिल्म का प्लॉट अच्छा है, जो समाज की सोच पर प्रहार करती है। कुल मिलाकर आप फिल्म को देख सकते हैं।

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