ललिता पवार (18 अप्रैल, 1916-24 फरवरी, 1998)
वाकया 1948 का था। 1942 की ‘जंगे आजादी’ की शूटिंग में अभिनेता भगवान के हाथ का थप्पड़ खाने के बाद अभिनेत्री ललिता पवार के चेहरे का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। ढाई साल तक उन्हें कोई फिल्म नहीं मिली थी। जिन फिल्मों में वह काम कर रही थीं, उनके अनुबंध खत्म कर दूसरी हीरोइनें ले ली गईं थीं। ग्लैमर की दुनिया में किसी अभिनेत्री का करिअर खत्म होने के लिए यह हादसा काफी था। ललिता पवार का भी बतौर हीरोइन करिअर इस घटना के बाद खत्म हो गया। मगर ललिता पवार ने हार नहीं मानी थीं और चरित्र भूमिकाएं करनी शुरू कर दी थीं। 1948 में वह दो फिल्में एक साथ कर रही थीं। एक थी वी शांताराम की फिल्म ‘दहेज’, जिसमें वह दहेज की लोभी सास की भूमिका कर रही थीं, जो अपनी बहू पर अत्याचार करती है। दूसरी थी आइना पिक्चर्स की फिल्म ‘गृहस्थी’, जिसमें वह उदार मां बनीं थी जो अपने परिवार की चिंता करती है और सबको साथ लेकर चलती है। दो बिलकुल विपरीत भूमिकाएं एक ही वक्त में।
‘गृहस्थी’ में सुलोचना चटर्जी, श्यामा, कुलदीप कौर और उनके परम मित्र प्राण की प्रमुख भूमिकाएं थीं। इसका निर्देशन किया था एसएम यूसुफ ने। यूसुफ थे तो अभिनेता मगर 1936 की फिल्म ‘भारत के लाल’ से निर्देशक बन गए थे। वे भारतीय परंपरा और परिवार में विश्वास करते थे और सामाजिक फिल्में बनाते थे। अभिनेत्री निगार सुलताना से उन्होंने निकाह किया था और 1960 में पाकिस्तान चले गए थे। ‘गृहस्थी’ प्रदर्शित हुई और दर्शकों ने इसे सिर-आंखों पर उठा लिया। इसके गाने खूब चले। फिल्म ने डायमंड जुबिली मनाई थी। खुश होकर इसके निर्माता ने फिल्म का कारोबार और बढ़ाने के लिए एक प्रतियोगिता भी रख दी थी।
यह अपनी तरह की अनोखी प्रतियोगिता थी। ‘गृहस्थी’ के लिए दर्शकों की राय ली गई थी कि फिल्म में जिस कलाकार ने सबसे बढ़िया काम किया है, वे उसे वोट दें। फिल्म देखने वाले दर्शकों ने वोटिंग की थी। उदार मां की भूमिका में ललिता पवार को दर्शकों ने खूब पसंद किया था और सभी कलाकारों में से उन्हीं का चुनाव किया गया था। इस तरह से विजेता बनी थीं ललिता पवार। पुरस्कार के रूप में उन्हें सोने का पांच तोले का पदक दिया गया था, जो दरअसल सोने का बना हुआ सितारा था।
फिर एक समारोह रखा गया, जिसमें ललिता पवार का सम्मान किया गया। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में बालासाहेब गंगाधर खेर को बुलाया गया था, जो तब मुंबई प्रांत के प्रधानमंत्री थे। वे 1937 में मुंबई प्रांत के पहले प्रधानमंत्री बने थे। दूसरी बार खेर 1946 से 1952 तक प्रधानमंत्री रहे। ललिता पवार को बालासाहेब ने सोने का सितारा दिया था। ललिता पवार के लिए यह पुरस्कार हमेशा दिल के करीब रहा।