बॉलीवुड और म्यूजिक वर्ल्ड का बड़ा नाम कैलाश खेर (Kailash Kher) आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। आज भले ही उनकी गिनती इंडस्ट्री के बड़े नामों में होती है लेकिन, एक समय ऐसा था जब वो दिल्ली की सड़कों पर दर-दर भटकने को मजबूर थे। यहां तक कि खाने तक का नहीं पता होता था कि मिलेगा या नहीं। कैलाश की लाइफ में काफी उतार-चढ़ाव आए। एक समय ऐसा भी आया जब वो सुसाइड करने के बारे में सोचने लगे। ऋषिकेश संत बनने तक चले गए थे। कैलाश खेर ने जिस भी इंडस्ट्री में करियर बनाने की सोच उसमें ही उन्हें असफलता हाथ लगी। ऐसे में चलिए आपको उनकी स्ट्रगल लाइफ के बारे में बताते हैं।

दरअसल, कैलाश खेर आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म 7 जुलाई, 1973 को हुआ था। वो मेरठ से ताल्लुक रखते हैं। कैलाश ने अपने करियर में 21 भाषाओं में 2000 से ज्यादा गाने गाए हैं। उन्हें पद्मश्री से नवाजा जा चुका है। लेकिन, यहां तक कि जर्नी उनके लिए आसान नहीं थी। सिंगर का दिल्ली में काफी बड़ा स्ट्रगल रहा है। उन्होंने दर-दर की ठोकरें खाई हैं। वो झुग्गी में रहे, सड़कों पर कपड़े धोए और भी ना जाने ऐसे ही कितने काम किए तब जाकर वो यहां तक पहुंचे हैं।

कैलाश खेर ने रजत शर्मा के शो ‘आपकी अदालत’ में अपने स्ट्रगल को लेकर बात की थी और इस दौरान उन्होंने काफी कुछ बताया था। इस बातचीत में रजत ने उनसे सवाल किया, ‘दर्जी बने, ट्रक ड्राइवर बने, चार्टेड अकाउंटेंट के असिस्टेंट बने आप बने क्या?’ इस पर कैलाश ने जवाब दिया था, ‘मुझे ऐसा लगता है कि तुमने उस्तादों से सीखा है और हमने हालातों से सीखा है।’ आग रजत शर्मा उनके स्ट्रगल की बात को कबूलते हुए कहते हैं, ‘ये तो सही है कि आपको काफी स्ट्रगल से गुजरना पड़ा। कभी झुग्गी में रहे, कभी सड़कों पर कपड़े धोने पड़े तो कभी खाने को नहीं था और फिर आप एक्सपोर्टर बनना चाहते थे?’

कैलाश खेर ने किया एक्सपोर्टर का काम

कैलाश खेर उनके सवाल के जवाब में कहते हैं, ‘साहब मैं बना भी एक्सपोर्टर। जर्मनी के एक शहर हेमबर्ग में भेजता था। हेंडी क्राफ्ट जैसी कई चीजों को सुंदर नगर और लाल किला के पास कई डिलर थे, जिनसे हम कलेक्ट करते थे तो मेरा सही चलता था जुगाड़ हमारा। एक शिपमेंट भेजकर लगा कि अब गाड़ी सही चल रही है। अब लगा था कि मैं सफल बन गया हूं। नोएडा में अट्टा पीर के पास मैंने एडवांस भी दे दिया था। लेकिन, कहते हैं कि कश्तियां लाख साहिल सही, पर खुदा फिर कोई चाल चल जाएगा। तूने मखमूर नजरों से देखा तो है क्या करोगे अगर दिल मचल जाएगा। तो वो हुआ, जो जिस काम में विफल होता है वो उस काम को खोल लेता है। दिल्ली इसका बड़ा उदाहरण है, इसलिए मैं इसे जुगाड़ नगर कहता हूं। आईएएस नहीं बन पाए तो कोचिंग खोल ली, जिसका घर ना हो वो प्रोपर्टी डीलर बन जाता है।’

घर छोड़ने के बाद क्या-क्या हुआ?

कैलाश खेर ने बताया कि जिस उम्र में उन्होंने घर छोड़ा था उस उम्र में कुछ पता नहीं था। उस समय ऐसा था कि वक्त ने पहली चुनौती लाकर खड़ी कर दी कि नून-तेल-लक़ड़ी जुटाओ और सर्वाइव होकर दिखाओ। गायक बताते हैं, ‘कई बार तो मैंने ऐसे ऑड ऑड जॉब किए कि साल-साल तक मेरे खाने का ठिकाने का ही नहीं रहता था। क्योंकि ऑड टाइमिंग्स में मैं जॉब करता था, जिनके पास कोई डिग्री होती थी उनका ना टाइमिंग होता ना ही कोई शेड्यूल होता। उन पर सब लोग रोब झाड़ते हुए ही काम लेते हैं। वैसे हमारी ट्रेनिंग अलग तरीके से हुई।’

कर्मकांड पंडित बनना चाहते थे कैलाश खेर

कैलाश बताते हैं, ‘जब मैं पक चुका था तब पिता जी की याद आई। सफरजंग में पिता के एक मित्र से मिला। उन्होंने ऋषिकेश चलने के लिए कहा और कहा कि कर्मकांड सीख लेना। फिर मुझे लगा कि हर चीज में असफलता हाथ लगी ही है। अब विदेश चलकर क्या पता पंडित बनकर ही कुछ हो जाए। इसलिए मैं ऋषिकेश भी चला गया। जिंदगी से तंग आकर एक बार मैंने गंगा जी में छलांग भी लगा दी थी।’

गाने के मिलते थे 50 रुपये

कैलाश खेर इससे पहले भी अपने स्ट्रगल को लेकर कई बार बात कर चुके हैं। एक बार उन्होंने बताया था कि ऋषिकेश में घाट पर गाना शुरू किया था और इस दौरान उन्हें गाने के लिए 50 रुपये मिल जाते थे। वो ऋषिकेश में आरती के समय गाते थे। संत उनके गाने पर दुशाले लहराकर नाचते भी थे। उस समय उनको ख्याल आया कि वो कुछ तो जानते नहीं हैं लेकिन, जब भी गाते हैं तो सभी लोग झूमने लगते हैं। कैलाश ने बताया कि स्वामी परिपूर्णानंद जी महाराज ने उनको नसीहत दी थी कि वो गाते हैं तो अलख जलती है। उन्होंने उन्हें इसका लाभ उठाने के लिए कहा और नसीहत दी कि कैलाश जो भी गाते हैं उसका एक एलबम बनाना चाहिए। इसके बाद वो 2001 में मुंबई आ गए थे। वो मुंबई विले पार्ले स्थित एक संन्यास आश्रम का पता लेकर आए थे।

कैलाश खेर को मिला करियर का ब्रेक

कैलाश खेर को पहला ब्रेक एक विज्ञापन गीत गाने के लिए मिला था। उन्होंने पहली बार नक्षत्र डायमंड्स का जिंगल गाया। इसके लिए उन्हें 5000 रुपये मिले थे। इसके बाद विज्ञापनों के गानों की लाइनें ही लग गईं। 2003 में संगीतकार विशाल शेखर फिल्म ‘वैसा भी होता है’ में ‘अल्लाह के बंदे’ गवाया, जिससे वो हिट हो गए। इसके बाद सिंगर ने ‘स्वदेस’ में ‘यूं ही चला चल हो’ और ‘मंगल पांडे’ में ‘मंगल मंगल हो’ गाया और इंडस्ट्री में धाक जमा ली फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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