गीतकार और लेखक जावेद अख्तर जब शुरू-शुरू में मायानगरी आए थे तब उन्हें तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। शुरुआत में वे बंबई में जिन दोस्तों के साथ रुके वे पेशेवर जुआरी थे। जुए में कमाए पैसों से ही खर्च भी चलता था। दोस्तों ने जावेद अख्तर को भी पत्ते लगाना सिखा दिया था।
जावेद अख्तर ने अपनी किताब “तरकश” में अपनी जिंदगी से जुड़े तमाम किस्सों को पेश किया है। शुरुआती दिनों में कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था और किन हालात से गुजरना पड़ा था, इसपर विस्तार से बात की है। उन्होंने लिखा है कि मैं बांद्रा के जिस कमरे में दोस्त के साथ रुका था वह पेशेवर जुआरी था। वो और उसके दो साथी जुए में पैसे लगाते थे। कुछ दिनों तक उनके साथ ताश के पत्ते पर गुजारा होता रहा।
कमरे का किराया कैसे देंगे? : जावेद अख्तर लिखते हैं कि थोड़े दिनों बाद वो लोग कमरा खाली कर चले गए और मेरे सामने फिर वही समस्या खड़ी हो गई कि अगले महीने इस कमरे का किराया कौन देगा। इस दौरान एक मशहूर राइटर ने उन्हें बुलाया और ऑफर दिया कि उनके लिए डायलॉग लिखें। हालांकि उसपर नाम उस राइटर का जाता।
‘600 रुपये 6 करोड़ के बराबर थे’: बकौल, जावेद उस वक्त उस शख्स ने उन्हें 600 रुपये महीना ऑफर किया था। हालात ऐसे थे कि 600 रुपये 6 करोड़ के बराबर लग रहे थे। 3 दिन तक सोचते रहे, कशमकश से गुजरते रहे और यह सोचकर इंकार कर दिया कि एक बार नौकरी कर ली तो फिर कभी छोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाऊंगा।
5 साल खाते रहे धक्के: जावेद अख्तर के मुताबिक 5 साल उनके लिए बहुत मुश्किल भरे रहे थे। साल 1969 में उन्हें ब्रेक मेला इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आपको बता दें कि जावेद अख्तर ने 70 और 80 के दशक में एक से बढ़कर एक फिल्में लिखीं। जिनमें शोले, दीवार जंजीर, जैसी फिल्में शामिल हैं।
उस दौर में सलीम और जावेद की जोड़ी फिल्म के हिट होने का फार्मूला बन गई थी। हालांकि बाद में जावेद अख्तर और सलीम खान की राहें जुदा हो गई थीं।