निदा फाजली (12 अक्तूबर 1938 -08 फरवरी 2016)
गीतकार शैलेंद्र की एक मुशायरे में सुनी कविता ‘जलता है पंजाब में’ ऐसा क्या था, जिसने शोमैन राज कपूर 1948 में अपनी फिल्म ‘आग’ में इस्तेमाल कर उसे मुकम्मल करना चाहते थे? तब ‘साहित्य ऊंचा सिनेमा नीचा’ की धारणा के कारण ही शैलेंद्र ने राज कपूर को टका-सा जवाब देकर टरका दिया था। यह वक्त का कमाल ही था कि बाद में शैलेंद्र सिनेमा की दुनिया के लोकप्रिय व राज कपूर के प्रिय गीतकार बने। गीतकार साहिर लुधियानवी को ऐसा क्यों लगा था कि ‘फिर सुबह होगी’ फिल्म में उनके लिखे गीतों को संगीतकार खय्याम ही मुकम्मल बना सकते हैं, सबसे महंगे संगीतकार शंकर जयकिशन नहीं। शंकर-जयकिशन को सिर्फ इसलिए ‘फिर सुबह होगी’ में नहीं लिया जा सकता कि वह राज कपूर की फिल्मों का संगीत तैयार करते थे और फिल्म के हीरो राज कपूर थे। आखिर खय्याम को राज कपूर के सामने अपने हुनर की परीक्षा देनी पड़ी, तब कहीं जाकर राज कपूर को लगा कि ‘फिर सुबह होगी’ शंकर जयकिशन के बजाय खय्याम के संगीत से भी मुकम्मल हो सकती है। और यश चोपड़ा को ऐसा क्यों लगा था कि उनकी फिल्म ‘सिलसिला’ को निदा फाजली का लिखा गाना ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’ ही मुकम्मल बना सकता है।
वह इसे अपनी फिल्म में इस्तेमाल करने के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार थे। मगर निदा ने पैसों पर अपना ईमान और नैतिकता नहीं बेची और यश चोपड़ा को ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’ दोगुने दाम की बोली लगा कर भी नहीं मिला। मगर यश चोपड़ा ने इसे पाने की दूसरी तरकीब जुटा ली और इस गाने को आखिर अपनी फिल्म में इस्तेमाल करके ही माने। हर रचनाकार अपनी रचना को मुकम्मल बनाने की जद्दोजहद करता है और उसके लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। निदा से इनकार सुनने के बाद यश चोपड़ा ने भी ऐसा ही किया था।
किस्सा 1980 के आसपास का है। यश चोपड़ा तब अपने असिस्टेंट डायरेक्टर दिलीप नाइक से ‘नाखुदा’ निर्देशित करवा रहे थे और ‘सिलसिला’ खुद निर्देशित कर रहे थे। ‘नाखुदा’ के गाने लिख रहे थे निदा फाजली। इसी बीच निदा का एक गाना ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता…’ फिल्मकार सिब्ते हसन रिजवी को पसंद आया था और वह इसे अपनी फिल्म ‘आहिस्ता आहिस्ता’ में इसे इस्तेमाल करना चाहते थे। दूसरी ओर यश चोपड़ा चाहते थे कि यह गाना ‘सिलसिला’ में हो। निदा धर्मसंकट में थे। उनके गाने के दो खरीदार थे। पहला प्रस्ताव रिजवी की ओर से आया था लिहाजा निदा ने रिजवी को गाना दे दिया। यश चोपड़ा को जब पता चला कि निदा ने ‘कभी किसी को…’ रिजवी को दे दिया, तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्होंने निदा से कहा कि रिजवी ने उन्हें जितने पैसे दिए हैं, वह उसके दोगुने देने के लिए तैयार है। गाना तो उन्हें ही चाहिए। मगर निदा ने विनम्रता से इनकार कर दिया।
यश चोपड़ा किसी भी कीमत पर उस गाने को अपनी फिल्म में इस्तेमाल करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि वह गाना उनकी फिल्म के लिए फिट है। जब निदा तैयार नहीं हुए तो चोपड़ा ने एक नया तरीका ढूंढ़ा। उन्होंने कहा कि वह इसे अपनी फिल्म में बैकग्राउंड में इस्तेमाल करेंगे। निदा तैयार हो गए और यश चोपड़ा ने ‘सिलसिला’ के बैकग्राउंड में इसे इस्तेमाल किया। चोपड़ा बड़े दिलवाले थे, लिहाजा इस घटना के बाद भी दोनों के रिश्तों में कड़वाहट नहीं आई और यश चोपड़ा ने 1988 में निदा को बुला कर अपनी फिल्म ‘विजय’ में गाने लिखवाए।
निदा फाजली ने मीरा और सूर से जीवन-रस खींचा और गहराई तक गोता लगा मीर- गालिब को समझा था। उनके दोहों में कबीर-सा तेवर और मिजाज में उनके ही जैसा फक्कड़पन था। निदा फाजली ने देश के विभाजन को कभी स्वीकार नहीं किया और जब पूरा परिवार पाकिस्तान जाने लगा, तो निदा ने साफ कह दिया कि जिस मिट्टी से उनका खमीर उठा है, वह उसी मिट्टी दफन होंगे। दिल्ली में पैदा होने, ग्वालियर में परवरिश पाने और मुंबई में खिल कर अपनी खुशबू बिखेरने वाले शायर निदा फाजली की आज दूसरी पुण्यतिथि है।

