के आसिफ
(14 जून, 1922- 9 मार्च, 1971)
26 साल के करिअर में मात्र ढाई फिल्म बनाने वाले करीमुद्दीन आसिफ अपने जुझारूपन और जुनून के लिए याद आते हैं। वक्त उनके लिए हमेशा बुरा रहा मगर उन्होंने उसकी आंख में आंख डाल कर मुकाबला किया। ‘मुगले आजम’ शुरू हुई तो हीरो चंद्रमोहन और ‘लव एंड गॉड’ शुरू की तो हीरो गुरु दत्त का निधन हो गया। आखिर इसके निर्माण के दौरान आसिफ का भी इंतकाल हो गया और उनकी बीवी (दिलीप कुमार की बहन अख्तर) को ‘लव एंड गॉड’ रिलीज करनी पड़ी।
लगभग चौदह सालों में बनी ‘मुगले आजम’ के निर्माण के दौरान एक बार ऐसी स्थिति भी आ गई थी, जब इसके निर्देशक के आसिफ को निकाल कर सोहराब मोदी को निर्देशक बना दिया गया था। मगर आसिफ के जुनून ने हालात को पलट कर फिल्म पूरी की।आसिफ की यह फिल्म 1946 में शुरू हुई थी, तब इसमें शिराज अली हकीम पैसा लगा रहे थे, जो 1945 में आसिफ की पहली फिल्म ‘फूल’ के निर्माण का काम देखते थे। शिराज अली के लिए मशहूर बिल्डर शापूरजी पालोनजी ने महालक्ष्मी में फेमस स्टूडियो बनाया था। विभाजन के दौरान जब कर्ज में डूबे शिराज पाकिस्तान चले गए तो फेमस स्टूडियो के साथ-साथ ‘मुगले आजम’ की बनी दो रीलें शापूरजी को दे गए, जो पांचेक साल धूल खाते पड़ी रहीं। इस बीच 1949 में सलीम की भूमिका करने वाले चंद्रमोहन का निधन हो गया।
फिल्मों से दूर रहने वाले मगर नाटकों के प्रेमी पारसी शापूरजी ने पृथ्वीराज कपूर के कहने पर 1951 में इसे पूरा करना तय किया। यह पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ शुरू हुई। आसिफ ने शापूरजी के सामने लिस्ट रख दी कि उन्हें फिल्म बनाने के लिए क्या-क्या चाहिए। आठ हजार सिपाही, चार हजार घोड़े, दो हजार ऊंट और हाथियों के अलावा जरूरी सरकारी अनुमति के अलावा कुछ और भी मांगें थीं। मसलन, फिल्म के कलाकारों के कपड़े सिलने के लिए दर्जी दिल्ली से और उन कपड़ों पर एंब्रायडरी करने वाले गुजरात से आएंगे। जेवर हैदराबाद के सुनार बनाएंगे और शाही ताज कोल्हापुर के कारीगर। युद्ध में जो ढाल, भाले तलवार लगेंगे वे राजस्थानी लुहार बनाएंगे आदि आदि। 62 साल के शापूरजी 29 साल के इस निर्देशक का मुंह ताकते रह गए। उन्होंने सारी मांगें पूरी की। मगर फिल्म बनने के दौरान आसिफ की अंतहीन मांगों ने शापूरजी को नौ सालों तक तिगनी का नाच नचाया। कभी असली मोतियों की मांग, कभी सलीम के लिए सोने के जूते, कभी किसी गांव के बिजली के सारे खंभे उखड़वाने जैसी मांगें जारी थीं।
तब दस लाख में महंगी फिल्में बन जाती थी, मगर बेलजियम से मंगाए कांच से शीशमहल का सेट ही 15 लाख में बना था और उस पर शूटिंग करना मुश्किल हो रहा था। शीशमहल के इतने चर्चे थे कि इंग्लैड के फिल्मकार डेविड लीन से लेकर इटालियन फिल्मकार राबर्टो रोजेलिनी तक इसे देखने आए। शापूरजी के बुलाए यूरोपीय विशेषज्ञों ने कहा कि इस सेट पर प्रकाश परावर्तन के कारण शूटिंग नहीं की जा सकती, तो जुनूनी आसिफ ने कहा कि अगर नहीं हो सकती शूटिंग तो तोड़ देंगे शीशमहल। शूटिंग ठप पड़ी थी।
उधर शापोरजी पर फिल्म के वितरक लगातार दबाव बना रहे थे कि जल्दी फिल्म पूरी करें। शापूरजी बीते आठ सालों से फिल्म के कलाकारों और तकनीशियनों की फीस चुकाते आ रहे थे। 10-15 लाख का बजट करोड़ को उलांघ चुका था और वे परेशान हो चुके थे। उन्होंने यूनिट से कहा कि सेट के सभी हिस्से खोल कर अलग रख दें। आसिफ से कहा कि उन्हें आगे वित्तीय मदद नहीं मिलेगी। फिर सोहराब मोदी से मिल कर कहा कि वे किसी तरह महीने भर में शूटिंग पूरी कर दें। अगले दिन मोदी और शापोरजी शीशमहल में पहुंचे। दोनों फिल्मांकन की योजना बना रहे थे तभी आसिफ की आवाज आई-जो इस शीशमहल को तोड़ेगा उसकी टांग टूट जाएगी- फिर हैरान शापोरजी और मोदी के सामने आकर आसिफ ने सबसे पहले माफी मांगी। एक मौका देने की बात कही। बताया कि वे शूटिंग करेंगे। नेगेटिव लंदन जाएंगे। शापूरजी मान गए। लंदन से फिल्मांकन के नतीजे सकारात्मक आए और फिल्म आसिफ ने ही पूरी की, जो मील का पत्थर बन गई।

