सत्तरवें कान फिल्म समारोह के प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई हंगरी के कोरनेल मुंड्रूजू की फिल्म ‘जुपिटर मून’ एक तरह से उनकी पिछली फिल्म ‘वाइट गॉड’ की अगली कड़ी है। इस फिल्म को कान के अनसर्टेन रिगार्ड खंड में (2014) बेस्ट फिल्म का अवार्ड मिला था। कोरनेल मुंड्रूजू सिनेमा में बिना राजनीतिक हुए कला के जरिए परेशान करने वाले सवाल उठाते रहे हैं। इंगमार बर्गमान की तरह उनका मुख्य विषय है, धार्मिक आस्था। उनकी पिछली फिल्मों, ‘जोआना’, ‘डेल्टा’, ‘टेंडर सन’ को काफी सराहा गया है। लाज्लो नेमेस की फिल्म ‘सन आॅफ साउल’ को पिछले साल आॅस्कर मिलने के बाद हंगरी का सिनेमा एक बार फिर फोकस में आया है। पिछले साल लाज्लो नेमेस को कान ने जूरी का सदस्य बनाया था।

आर्यन दाशनी को सीरिया से अवैध रूप से सीमा पार करते समय गोली लगती है। पिता से बिछुड़कर वह हंगरी के शरणार्थी शिविर में पहुंच जाता है। उसे यह पता चलता है कि वह उड़ सकता है। उसकी इस अतिंद्रीय शक्ति से पैसा कमाने के लालच में डॉक्टर स्टर्न, जो एक नास्तिक है, उसे वहां से भगाकर अपने घर लाता है। इमीग्रेशन अधिकारी लाज्लो उनका पीछा करता है। आगे की फिल्म चूहा बिल्ली के खेल की तरह चलती है। जादुई यथार्थ से भरी इस फिल्म में घटनाएं वास्तविक तरीके से घटती हैं। आर्यन दाशनी को अपने खो गए पिता की तलाश है, जो एक दूसरे शिविर में मृत पाए जाते हैं। डॉक्टर स्टर्न और आर्यन का रिश्ता जो दोनों की जरूरत से शुरू हुआ था वह बदलता है और मानवीय बनता है। बुडापेस्ट शहर की सड़कों, इमारतों, मेट्रो, दफ्तरों और शरणार्थी शिविर के दृश्य वास्तविक तरीके से फिल्माए गए हैं, सिवाय आर्यन के उड़ने के। जिस तरह से वह उड़ता है तो ऐसा लगता है कि कोई पक्षी अपने घर लौट रहा है। अंतिम दृश्य में उसे सातवें आसमान में उड़ते हुए दिखाया गया है। यह फिल्म आज की शरणार्थी समस्या की पृष्ठभूमि में वैश्विक सवालों से टकराती है कि मनुष्य का एक विश्वास ऐसा होगा जो देश, काल, धर्म, समाज से ऊपर सबका होगा।

अनसर्टेन रिगार्ड में ईरान के मोहम्मद रसूलौफ की ‘अ मैन आॅफ इंटेग्रेटी’ दुनिया भर में कारपोरेट कंपनियों के बढ़ते आतंक पर है, जहां देशज लोगों की आजादी लगातार छीनी जा रही है। उत्तरी ईरान के एक गांव में रजा अपनी पत्नी और बच्चे के साथ खुशहाल जीवन जी रहा है। वह मछली पालन करता है। उसकी पत्नी स्कूल टीचर है। एक बड़ी कंपनी अचानक वहां आती है और अपने मुनाफे के लिए सरकारी अफसरों से मिलकर किसानों की जमीन हड़पने लगती है। रजा के विरोध करने पर उसे चारों ओर से घेरकर मजबूर कर दिया जाता है। अब उसके सामने एक ही रास्ता बचता है कि स्थानीय माफिया से बदला लेकर आगे बढ़े।