भोजपुरी सिनेमा को आजकल अश्लीलता से जोड़ा जाता है। आज के दौर की फिल्मों के कई सीन और खासतौर पर गानों पर अश्लीलता के आरोप लगते रहते हैं, इसलिए कई दशक के बाद भी भोजपुरी इंडस्ट्री आज अपनी जगह तलाश रही है। हालांकि भोजपुरी सिनेमा हमेशा से ऐसा नहीं था- एक वक्त था जब इसे इसकी सादगी, संस्कृति और इमोशनल कहानियों के लिए जाना जाता था। भोजपुरी फिल्मों में गांव की प्यारी कहानियां होती थीं जिससे लोग खुद को जोड़ते थे। चलिए आज हम आपको बताते हैं देश में भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत कैसे हुई और कैसे ये इंडस्ट्री पतन की तरफ बढ़ने लगी।
भोजपुरी इंडस्ट्री की पहली फिल्म: गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो
देश की आजादी के बाद जब भारतीय सिनेमा अपनी नई पहचान बना रहा था उस वक्त एक क्षेत्रीय भाषा ने बड़े पर्दे दस्तक दी और वो भाषा थी- भोजपुरी। ये बात साल 1961 की है, जब भोजपुरी इंडस्ट्री की पहली फिल्म रिलीज हुई- गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो। इस फिल्म के साथ भोजपुरी सिनेमा की नींव रखी गई और पहली ही फिल्म ने साबित कर दिया कि ये लोकभाषा भी सिनेमा में अपनी जगह मजबूती से बना सकती है। गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो फिल्म एक श्रद्धा से भरी फिल्म थी, फिल्म के नाम का मतलब ही है कि हे गंगा मैया मैं तुम्हें पीली साड़ी चढ़ाऊंगी। यह गांव की एक स्त्री की आस्था, संघर्ष और उसके समर्पण की कहानी थी। जिसकी जिंदगी में बहुत सारी समस्याएं थीं मगर वो गंगा मैया पर आस्था रखती है। इस फिल्म का निर्देशन किया था काजी हसन ने जबकि फिल्म की कहानी लिखी थी विश्वनाथ शाहाबादी ने, वे इस फिल्म के निर्माता भी थे। वहीं फिल्म में कुमकुम, अशोक कुमार, नाजिर हुसैन और हेलन ने लीड रोल प्ले किया था। विश्वनाथ शाहाबादी एक पत्रकार थे और उनका सपना था कि भोजपुरी इंडस्ट्री को नाम मिले और उसकी पहचान देशभर में हो।
भोजपुरी की पहली फिल्म को मिला डॉ. राजेंद्र प्रसाद का समर्थन
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद खुद भी बिहार से थे और वे हमेशा से चाहते थे कि भोजपुरी में सिनेमा बने। उन्होंने न सिर्फ फिल्म का सपोर्ट किया बल्कि प्रीमियर में भाग लिया, उनके इस कदम से भोजपुरी भाषा को मुख्यधारा में लाने की कोशिश कामयाब हुई।
पहली भोजपुरी फिल्म बजट और कमाई
इस फिल्म को 5 लाख के बजट में बनाया गया था जो 1960 के दशक में बड़ी रकम थी मगर फिल्म ने उम्मीद से कहीं ज्यादा प्रदर्शन किया और सुपरहिट साबित हुई। फिल्म ने 75 लाख का बिजनेस किया जिसकी कीमत आज समय के हिसाब से 61 करोड़ के करीब है। फिल्म ने बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मुंबई में अच्छा प्रदर्शन किया।
फिल्म का संगीत
गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो के गानों में लोकधुन, भोजपुरी बोली और देसी मिठास थी। इस फिल्म के लिए लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने की गाने गाए थे। इन गानों को दर्शकों का खूब प्यार मिला।
गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो की सफलता ने भोजपुरी इंडस्ट्री की नींव रखी, इसके बाद कई सारी फिल्में आईं जिनमें से लागी नहीं छूटे राम, हमार संसार और भौजी जैसी फिल्में खूब पसंद की गईं। हालांकि इसके बाद धीरे-धीरे भोजपुरी फिल्मों का पतन शुरू हो गया। भोजपुरी सिनेमा ने एक मजबूत शुरुआत की थी और अपनी संस्कृति को सिनेमा के जरिए पूरे भारत में फैलाया था, मगर धीरे-धीरे ये इंडस्ट्री पतन की तरफ बढ़ने लगी।
भोजपुरी सिनेमा के पतन की शुरुआत
1990 के दशक में भोजपुरी सिनेमा का स्तर गिरने लगा। मेकर्स ने छोटे बजट की फिल्में बनानी शुरू की, इसमें मसाला, ड्रामा और फूहड़ता बढ़ने लगी, इसका बहुत फायदा मेकर्स को मिलने लगा। मजदूर वर्ग को सस्ते में टिकट मिल जाता था और इस तरह की फिल्मों से उनका मनोरंजन होने लगा था। धीरे-धीरे भोजपुरी सिनेमा के मेकर्स फिल्म की गुणवत्ता से ध्यान हटाकर मुनाफे की तरह बढ़ने लगे। फिल्मों में अश्लीलता बढ़ने लगी लोगों को ये फूहड़ता पसंद आती थी और मेकर्स जमकर पैसा कमाने लगे।
जब हर मुद्दे पर बनने लगे भोजपुरी गाने
आज भी मुस्कान औऱ साहिल के केस पर नीले ड्रम पर भोजपुरी में गाना बन गया। ऐसे ही तमाम मुद्दों पर भोजपुरी गाने बनने की शुरुआत 2000 में ही हो गई थी। आपको याद होगा पवन सिंह के गाने ‘सानिया मिर्जा कट नथुनिया’ और खेसारी के गाने ‘टेनिस वाली सानिया दूल्हा खोजेली पाकिस्तान से’ पर काफी विवाद हुआ था।
2000 आते-आते भोजपुरी फिल्मों पर अश्लीलता का ठप्पा लगने लगा। कई फिल्में और गाने इस अश्लीलता का शिकार होने लगे। सिंगर्स एक्टर्स और मेकर्स फूहड़ता की तरफ बढ़ने लगे। फिल्मों में अश्लील आइटम नंबर रखे जाने लगे। डबल मीनिंग संवाद और अश्लील कॉन्टेंट से मेकर्स को मुनाफा होने लगा और दर्शकों को भी इसमें मजा आने लगा। आज भोजुपरी इंडस्ट्री में अश्लीलता और फूहड़ता बड़ी समस्या बनी है। बीच-बीच में कई मेकर्स पुरानी फिल्मों की तरह पारंपरिक और संवेदनशील फिल्में बनाते रहें और आज भी कई अच्छी फिल्में भोजपुरी में बनती हैं। मगर जो ठप्पा भोजपुरी पर लग गया उससे इसे बाहर निकलने में शायद समय लगे वो भी तब जब सब मिलकर कोशिश करें और वाकई इस मुद्दे के लिए गंभीर हों।