शंकर जालान

सब को मालूम है मैं शराबी नहीं…, चांदी जैसा रंग है तेरा…, चिट्ठी आई है…। ये ऐसी गजलें हैं जिनको सुनते ही आंखों के सामने मखमली आवाज के स्वामी गजल गायक पद्मश्री पंकज उधास की तस्वीर आने लगती है। उधास का कहना है कि संगीत की दुनिया में गजल का एक विशेष महत्व था, है और रहेगा। पेश है बातचीत के चुनिंदा अंश…

सवाल : मौजूदा वक्त में गजल को कहां पाते हैं?
’गजल का इतिहास चार सौ सालों से भी अधिक पुराना है और अभी भी हजारों लोग गजल सुनने के शौकीन हैं। हां, युवा वर्ग जरूर गजल से दूरी बनाए हुए है, जिसका कारण है उन्हें हिंदी व उर्दू में विशेष रुचि नहीं। जीवन के तीस से ज्यादा वसंत देख चुके लोगों को भलीभांति पता है गजल क्या है, लेकिन इससे कम उम्र वालों को विशेष ज्ञान नहीं है।

सवाल : आपके नजरिए से श्रोता किस तरह की गजल सुनने की चाहत रखते हैं और आप किस तरह की गजलों को पसंद करते हैं?
’ मेरे विचार से श्रोता ऐसी गजल को सुनना पसंद करते हैं, जो उनके जीवन के ईद-गिर्द घूमती हो। श्रेष्ठ गजल वही है जिसे सुन हर श्रोता को लगे कि उसी के लिए लिखी गई है। जहां तक मेरी बात है, तो मैं रुमानी गजल गाना और सुनना पसंद करता हूं। इसके अलावा श्रोताओं की फरमाइशों के मुताबिक गजलें गाता हूं।

सवाल : फिल्मी गीतों की एक लाइफ होती है, समय के साथ-साथ लोग कुछ गीतों को भूल जाते हैं, क्या गजल के साथ भी ऐसा ही है?
’ नही, कतई नहीं। गजल से प्रेम करने वाले लोग गजल को कभी नहीं भूलते। गजल ताउम्र जिंदा रहती है। इसका मुख्य कारण है कि तीन शब्दों के गजल में तीनों चीजों का समावेश रहता है। पहली- शायरी, दूसरीा- धुन और तीसरी- संगीत। मेरी नजर में गजल संगीत की सबसे उम्दा नस्ल है।

सवाल : आपने देश-विदेश में न जाने कितने कार्यक्रम पेश किए होंगे, आपको कहां के श्रोता श्रेष्ठ लगे और क्यों?
’ हां मेरे जीवन का एक यादगार पल है। बात 1986 की है। न्यूयॉर्क में मेरा कार्यक्रम था। मैंने वहां पहली बार चिट्ठी आई है…को स्वर दिया। सभागार में साढ़े चार हजार से ज्यादा श्रोता थे। गायकी समाप्त होने पर सभागार में सन्नाटा छा गया। मैं थोड़ा मायूस हो गया, लेकिन तभी एक-एक कर श्रोता खड़े होने लगे और उनकी तालियों की आवाज से सभागार गूंज उठा।

सवाल : मंच पर सीधे श्रोताओं के समक्ष गाने और फिल्मों में पर्दे के पीछे गाने में मूलत: क्या फर्क है?
’मेरे हिसाब में पर्दे के पीछे और मंच गायन में मूलत: जो फर्क है वह यह है कि पर्दे की पीछे गायक को सुधरने का मौका मिलता है, लेकिन मंच गायन में यह सुविधा नहीं। मेरा मानना है कि पर्दे के पीछे गायन की तुलना में मंच गायन ज्यादा रोमांचक व प्रभावशाली है।
मंच गायन में श्रोताओं की सीधी प्रतिक्रिया मिलती है, जो गायक में ऊर्जा का संचार करती है।