निर्देशक- बेहजाद खंबाटा, कलाकार- सनी देओल, करण कपाड़िया, करणवीर शर्मा, इशिता दत्ता,जमील खान: वैसे तो सनी देओल इस फिल्म के नायक नहीं है। वो तो करण कपाड़िया हैं, जो एक जमाने की सुपरस्टार डिंपल कपाड़िया की बहन सिंपल कपाड़िया के बेटे हैं। फिर भी इस फिल्म का प्रचार ज्यादा सनी देओल के नाम पर हो रहा है क्योंकि उनका नाम बड़ा है वरना करण कापड़िया के नाम पर फिल्म देखने कौन आएगा? वैसे पूछा तो यह भी जा सकता है कि सनी देओल के नाम पर कितने लोग देखने आएंगे क्योंकि उनकी हालिया फिल्में तो बॉक्स आफिस पर धड़ाम धड़ाम गिरी हैं। इसके बावजूद इस फिल्म को सनी देओल के नाम का फायदा तो होगा और सनी को भी इसका लाभ होगा। कम से कम चुनाव में। गुरुदासपुर से चुनाव लड़ते हुए सनी इसके डॉयलाग को जनता के सामने बार-बार दुहरा भी सकते हैं।
बहरहाल, यह बताना जरूरी है कि ‘ब्लैंक’ आतंकवाद पर आधारित फिल्म है। करण कपाड़िया ने इसमें हनीफ नाम के शख्स का किरदार निभाया है। हनीफ मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा होता है कि एक दुर्घटना होती है और वो बेहोश हो जाता है। जब उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है तो मालूम होता है कि वो एक सुसाइड बॉम्बर है। अब फटा कि तब फटा। दिक्कत है कि वो बेहोश शख्स अपनी याददाश्त खो चुका है। कैसे पता चले कि वो कौन है? अब तो पुलिस तहकीकात में जुट जाती है कि हनीफ के तार किससे किससे जुड़े हैं? इसकी जिम्मेदारी आती है आतंक निरोधी दस्ता (एटीएस) के प्रमुख एसएस दीवान (सनी देओल) पर। क्या पता चलता है पुलिस या एटीएस को? कौन है इसके पीछे? किस आतंकवादी संगठन ने इस जाल को बिछाया है? हनीफ पुलिस की गिरफ्त से भाग भी निकलता है, इसलिए भी मामला पेचीदा हो जाता है। जांच पड़ताल के बाद मालूम होता है कि आतंक के मंसूबे के पीछे मकसूद (जमील खान) नाम का शख्स है, जो जेहाद के नाम पर दहशत फैलाना चाहता है। पर हनीफ कौन है, जो इस योजना में शामिल हो गया और वो चाहता क्या है? क्या वो जो दिखता है वही है या कुछ और? क्या पुलिस इस सारे षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर पाएगी? फिल्म एक अच्छी शुरुआत के बाद धीरे-धीरे थकने लगती है। करण अपने चेहरे पर अलग-अलग तरह के जज्बात नहीं दिखा पाते। वहीं सनी देओल भी ठंडे-ठंडे दिखते हैं। हां, बतौर खलनायक जमील खान में विविधता है। इशिता दत्ता और करणवीर शर्मा भी पुलिस अधिकारी बने हैं। दोनों सामान्य हैं। कुल मिलाकर एक परिवार अपनी फिल्मी विरासत को आगे बढ़ाने में लगा है।
सेटर्स – सवाल शिक्षा का
निर्देशक- अश्विनी चौधरी, कलाकार- आफताब शिवदासानी, श्रेयस तलपड़े, सोनाली सहगल, जमील खान, पवन मल्होत्रा, विजय राज: इसका मूल विचार भी हाल में फिल्म ‘माय चीट इंडिया’ से मिलता-जुलता है। मेडिकल, इंजीनियरिंग, रेलवे और बैंकिंग भर्ती की प्रतियोगी परीक्षाओं में लोगों को जालसाजी और सेटिंग के सहारे पास कराना। इस फिल्म में हास्य के दृश्य अधिक हैं। हां, स्टार प्रभाव थोड़ा कम है क्योंकि आफताब शिवदासानी और श्रेयस तलपड़े अपने बूते किसी भी फिल्म को एक सीमा के बाद बहुत आगे नहीं ले जा सकते। यहीं, फिल्म मार खा जाती है। फिर भी पवन मल्होत्रा के शानदार काम की वजह से इसमें रोचकता बनी रहती है। फिल्म चोर-पुलिस के खेल की तरह बनी है। युवावस्था के आरंभिक दिनों में दो दोस्त हैं- आदित्य (आफताब शिवदासानी) और अपूर्वा (श्रेयस तलपड़े)। दोनों दोस्तों की जीवनयात्रा अलग-अलग दिशाओं में चली जाती है। आदित्य पुलिस महकमे में जाकर एसपी बन जाता है और अपूर्वा वाराणसी के भैया जी (पवन मल्होत्रा) के संगत में आकर ऐसा जालसाल बन जाता है, जिसका काम परीक्षाओं में पेपर लीक कराने का काम करता है। इसी क्रम में उसका भैया जी की बेटी प्रेरणा (इशिता दत्ता) से इश्क भी हो जाता है। पेपर लीक कराने का काम इतनी सफाई से होता है कि प्रशासन को समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है और कैसे हो रहा है। फिर जिम्मेदारी मिलती है आदित्य को कि इस मामले की जड़ तक पहुंचे। आखिर वह कैसे इस काम को अंजाम देता है इसी का किस्सा है ‘सेटर्स’।